कहां गुम हो गई चंपा : चंपा का दर्द भरा सवाल मैं नदी हूं.. या नाला
वह नदी जिसके तट पर आस्था के दीप जलते रहे हों। सामाजिक रीति-रिवाज का निर्वहन होता रहा हो। जिसकी धारा ने कितनी ही पीढ़ियों के बचपन को खेलते देखा हो।
भागलपुर [अश्विनी]। चंपा नाला पुल! भागलपुर से मुंगेर जाने के रास्ते नाथनगर में पड़ने वाले इस पुल का यही नाम है। लोगों से पूछिए तो वे भी पलक झपकते कहते हैं, हां! हां! चंपा नाला ही है। तो ऐतिहासिक तथ्य और पौराणिक कथा-कहानी में वर्णित चंपा नदी कहां है?
क्या वह नदी गुम हो गई? उसका अस्तित्व मिट गया! अगर यह चंपा नाला है तो चंपा नदी कहां गई? अगर यह वही नदी है तो नाला के नाम पर शहर की नालियां और कूड़े-कचरे इसमें क्यों? क्या आने वाली पीढ़ियां इसे नाले के रूप में ही जान पाएंगी? यह सवाल एक नदी के अस्तित्व को दरकिनार करने भर का नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक-आर्थिक परिवेश को होने वाली क्षति का भी है।
यह सवाल बिहुला विषहरी की कथा वाली उस चंपा का है, जिससे अंग क्षेत्र की आस्था जुड़ी है। उस तट का है, जिसने कभी भगवान बुद्ध और भगवान वासुपूज्य को यहां देखा। वैदिक काल से मौर्यकाल होते हुए मुगल और ब्रिटिशकाल के उस अतीत का भी है, जब इसी नदी में नाव-जहाज भी चला करते थे। तो फिर 1966 में बने लोहे के पुल पर चंपा नाला क्यों लिखा गया? नदी सिर्फ नाम से ही नहीं, हकीकत में भी नाले में परिवर्तित होती चली गई, क्योंकि इसे तो नाले का आधिकारिक प्रमाण पत्र मिल चुका था। जिसके तट पर गांव भी बसे हैं, शहरी आबादी भी। बांका की चानन नदी से फूटने वाली धारा भागलपुर आते-आते ही नाला नहीं बनी है। उद्गम स्थल से ही यहां तक पहुंचते-पहुंचते इसे इतने जख्म मिले हैं कि वह खुद को ही नदी के रूप में नहीं पहचान पा रही।
वह नदी, जिसके तट पर आस्था के दीप जलते रहे हों। सामाजिक रीति-रिवाज का निर्वहन होता रहा हो। जिसकी धारा ने कितनी ही पीढ़ियों के बचपन को खेलते देखा हो। जिसके पानी से दुनिया भर में मशहूर कतरनी धान की फसल ने सुगंध बिखेरी हो। जिसके तट पर गांवों का जीवन फला-फूला हो। आज वही चंपा नदी नाला बन चुकी है। ‘कहां गुम हो गई चंपा?’ दैनिक जागरण का यह अभियान इन्हीं सवालों को लेकर है, ताकि समाज, सरकार और प्रशासन की भागीदारी से इसे असली पहचान मिल सके। इसके जख्मों को भरा जा सके। चंपा को यह नहीं पूछना पड़े कि वह नदी है या नाला।
सवाल एक नदी के जीवन का है
-चंपा नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए दैनिक जागरण की टीम अपने पत्रकारीय दायित्वों के तहत हर वह तस्वीर सामने लाएगी, जिसने इसे नदी से नाला बना दिया।
-अतीत के दस्तावेजों को खंगालती हर वह कहानी, जो इसके सांस्कृतिक पहलुओं का दस्तावेज है।
-इसके सामाजिक-आर्थिक महत्व को रेखांकित करते आलेख। एक नदी से किस तरह जुड़े हैं जीवन के सरोकार।
-विशेषज्ञों के आलेख, जानकारों की बातें, जिन्होंने इस नदी को सिमटते, नाले में तब्दील होते देखा है।
-जगह-जगह चौपाल, चर्चा-परिचर्चा आदि, ताकि लोग रख सकें अपनी बात। बता सकें अपना अनुभव।
-नदी के हर उस भू-भाग की तलाश, जो या तो अस्तित्व में नहीं या अतिक्रमण ने लील लिया है।
-हम बताएंगे कि यह नदी अपने स्वरूप में आ जाए तो कैसी होगी इसकी तस्वीर। भागलपुर तक आते-आते यह हाल क्यों।
-एक नदी के गुम होने का क्या असर पड़ा है सामाजिक जीवन पर। इसने किस तरह प्रभावित किया अर्थव्यवस्था को।
-सरकार और प्रशासन तक पहुंचाएंगे हर हकीकत, ताकि अपना अस्तित्व खो रही नदी को मिल सके जीवन।
आप भी जुड़ें दैनिक जागरण के अभियान से
नाले में तब्दील हो चुकी चंपा नदी के जीवन को बचाने के लिए जुड़ें दैनिक जागरण के अभियान से-'कहां गुम हो गई चंपा।' आप चंपा नदी से जुड़ी यादें, अपने सुझाव, प्रतिक्रिया, इसकी पुरानी तस्वीरें आदि भी भेज सकते हैं।
ई-मेल : savechampa@bhl.jagran.com
वाट्सएप : 8429020186
फोन : 0641-2950045
लेखक दैनिक जागरण भागलपुर के संपादकीय प्रभारी हैं।
यह भी पढ़ें
कहां गुम हो गई चंपा : ...जब चंपा नदी पर लगा दिया नाला होने का आधिकारिक ठप्पा