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जमुई के रेलवे पॉली क्लीनिक का हाल... डॉक्टर साहब अंदाज से लिखते हैं दवा, रेलवे कर्मचारियों की नहीं होती जांच

कोरोना काल में भी जमुई के रेलवे पॉली क्‍लीनिक की व्‍यवस्‍था में सुधार नहीं हो सकी है। यहां पर संसाधनों और डॉक्‍टरों की भारी कमी है। बिना जांच के ही डॉक्‍टर दवा लिख रहे हैं। ज्‍यादाातर रेलवे कर्मी यहां जांच भी नहीं कराते हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 04:46 PM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 04:46 PM (IST)
जमुई के रेलवे पॉली क्लीनिक का हाल... डॉक्टर साहब अंदाज से लिखते हैं दवा, रेलवे कर्मचारियों की नहीं होती जांच
कोरोना काल में भी जमुई के रेलवे पॉली क्‍लीनिक की व्‍यवस्‍था में सुधार नहीं हो सकी है।

जमुई [सत्यम कुमार सिंह]। कोरोना महामारी के दौर में रेलवे पॉली क्लीनिक शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। लाखों के एक्स-रे मशीन को कौड़ी के भाव में बेच दिया गया। रेलवे कर्मचारियों के स्वास्थ्य की जांच नहीं होती। अंदाज पर ही चिकित्सक दवा लिख रहे हैं। यहां इलाज के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। गुरुवार को अस्पताल की पड़ताल की गई तो अस्पताल में मरीज को दवा खाने के पानी तक की व्यवस्था नहीं थे। इलाज कराने के दौरान मरीज को खुद पानी लेकर आना पड़ रहा है।

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कोरोना जांच के लिए किट तक नहीं मिले। 250 तरह का दवा तो है परंतु उक्त दवा की खपत कहा हो रही है या स्टॉक क्या है, उसकी जानकारी तक नहीं थी। प्रयोगशाला तकनीशियन की नियुक्ति तो है पर रेलवे कर्मचारी के खून की जांच नहीं होती या यूं कहे कि 25 बेड का बना इस अस्पताल में सुविधा न के बराबर है। डॉक्टर की कमी के साथ साथ अन्य कर्मचारी का घोर अभाव है, जबकि झाझा रेल नगरी में लगभग एक हजार रेलवे कर्मचारी अकेले या अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। अस्पताल का एम्बुलेंस झाझा में न चलकर दानापुर अस्पताल में चल रहा है।

रेलवे कर्मचारी भाड़े पर एम्बुलेस लेने को मजबूर हैं। इस स्थिति पर कई बार रेलवे यूनियन के पदाधिकारी से लेकर रेलवे कर्मचारियों ने आवाज उठाई पर कोई असर रेलवे के आला अधिकारी पर नहीं हुआ। स्वास्थ्य जांच करने से संबंधित कई उपकरण अस्पताल में धूल फांक रहा है या किसी कमरे में बंद पड़ा हुआ है। सामान्य बीमारी का इलाज तो होता है लेकिन कोई बड़ी बीमारी या दुर्घटना का इलाज यहां नहीं होता। पॉली क्लीनिक में नित्यदिन 30 से 40 मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं।

कई पद हैं खाली

पॉली क्लीनिक के रूप में जाने इस अस्पताल में डॉक्टर से लेकर अन्य कर्मचारी का घोर अभाव है। तीन डॉक्टर के पद में से महिला चिकित्सक का पद वर्षों से खाली पड़ा हुआ है। साथ ही नर्सर का भी पद रिक्त पड़ा हुआ है। इसके कारण महिला मरीज का इलाज न के बराबर होता है। रेलवे कर्मचारी को प्राइवेट अस्पताल या राज्य सरकार का रेफरल अस्पताल का सहारा लेना पड़ता है। ड्रेसर, डेंटल डॉक्टर का पद खाली पड़ा हुआ है। वहीं प्रयोगशाला तकनीशियन की नियुक्ति है पर प्रयोगशाला की सामग्री ही नहीं है।

रेल राज्य मंत्री का सपना रहा अधूरा

अंग्रेजों के द्वारा नींव रखी अस्पताल को वर्ष 2000 में तात्काल केीनन्द्रीय रेल राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने रेलवे कर्मचारियों की संख्या को देखते हुए 25 बेड का एक पॉली क्लीनिक का निर्माण किया था जिसमें मरीज के साथ-साथ रेलवे दुर्घटना को ध्यान रखकर ऑपरेशन रूम, एक्स-रे मशीन, जांच घर, माइक्रो मशीन, ड्रेसर आदि सभी सुविधा प्रदान की। इसके अलावा पॉली क्लीनिक में एक महिला चिकित्सक समेत पांच डॉक्टर, पांच कंपाउंडर, नर्सर, ड्रेसर, हेल्थ ऐटेंडस, फार्मांसिस्ट आदि की नियुक्ति की गई। पॉली क्लीनिक के चमचमाहट कुछ दिन तक ही दिखी और दो साल के बाद रेल राज्यमंत्री के बदलते ही पॉली क्लीनिक का सारा डॉक्टर एवं अन्य कर्मचारी को दानापुर में शिफ्ट कर दिया गया।

अस्पताल में तैनात डॉक्टर एवं अन्य

वर्तमान में पॉली क्लीनिक में तीन डॉक्टर में से मात्र एक डॉक्टर अशोक कुमार जो अस्पताल के सीएमओ हैं। एक होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. हिमाद्री मोहन चक्रवर्ती, ड्रैसर पद पर सुदर्शन सरदार एवं अमरेश कुमार, स्वा निरीक्षक संजीव कुमार सिन्हा, प्रयोगशाला तकनीशियन रामप्रवेश, परिचर में क्यूम अंसारी, योगेन्द्र प्रसाद सहित कई कर्मचारी कार्यरत हैं।

औने-पौने भाव में बिक गया एक्स-रे मशीन

वर्ष 1980 में पॉली क्लीनिक को एक्स-रे मशीन उपलब्ध कराया गया था जिसकी कीमत लाखों में थी। मामूली खराबी रहने के कारण विगत कई वर्षों तक कूड़े में पड़ा रहा था। हाल में उक्त एक्स-रे मशीन को तीन हजार रुपये में कबाड़े के पास बेच दिया गया है। हालांकि, उक्त मशीन की नीलामी हुई थी जिसकी कीमत मात्र तीन हजार लगाई गई थी। अस्पताल की व्यवस्था दिन ब दिन बदतर होती जा रही है।

पानी का नहीं है कोई व्यवस्था

पॉली क्लीनिक में मरीज से लेकर कर्मचारियों को गंदा पानी के सहारे रहना पड़ता है। 2017 में पूर्व मध्य रेलवे के महिला कल्याण संगठन द्वारा हजारों रुपये के एक आरो मशीन लगाकर उद्घाटन किया था जो वर्षों से मृत पड़ा हुआ है। शुद्ध पेयजल के लिए जब अस्पताल के प्रभारी डॉ. अशोक कुमार से बात की तो उन्होंने साफ लहजे से कहा कि में एक रुपया पानी के नाम पर खर्च नहीं कर सकता। जो सप्लाई पानी है वही पानी लोगों को पीना होगा, अन्यथा वे घर से खुद पानी लेकर आएं।

क्या कहते हैं अधिकारी

पॉली क्लीनिक के सीएमओ डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि जो सुविधा है उसके तहत रेलवे कर्मचारी का इलाज किया जाता है। दुर्घटना में भी यहां से मेडिकल टीम जाती है। एक्स-रे मशीन पूरी तरह जर्जर हो गई थी जिसकी नीलामी कर बेच दिया गया।


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