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खोता जा रहा बचपन : पढ़ाई का बोझ और home work का टेंशन... बच्चों को बना रहे मनोरोगी Bhagalpur News

जेएलएनएमसीएच के मानसिक रोग विभाग में रोजाना 150 से 200 बच्चों का उपचार किया जा रहा है। इनमें 20 से 25 फीसद बच्चे स्कूली हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Fri, 02 Aug 2019 11:25 AM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2019 05:15 PM (IST)
खोता जा रहा बचपन : पढ़ाई का बोझ और home work का टेंशन... बच्चों को बना रहे मनोरोगी Bhagalpur News
खोता जा रहा बचपन : पढ़ाई का बोझ और home work का टेंशन... बच्चों को बना रहे मनोरोगी Bhagalpur News

भागलपुर [अशोक अनंत]। घर में लड़ाई-झगड़ा, एकाकीपन, पढ़ाई का अत्यधिक दबाव या मोबाइल की लत के कारण तनाव व अवसाद में जकड़ रहे बच्चे चिंता का एक बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। छह साल पहले तक भागलपुर में बच्चों में मानसिक समस्या जैसे मामले नहीं के बराबर थे, पर आज की तारीख में हर दिन करीब दो सौ बच्चों का उपचार किया जा रहा है। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं।

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20 से 25 फीसद स्कूली बच्चे

अकेले जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) के मानसिक रोग विभाग में रोजाना 150 से 200 बच्चों का उपचार किया जा रहा है। इनमें 20 से 25 फीसद बच्चे स्कूली हैं। विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. कुमार गौरव बताते हैं कि बच्चों में मनोरोग का पहला लक्षण है उनकी पढ़ाई-लिखाई में गिरावट और व्यवहार में बदलाव।

ये लक्षण हैं तो हो जाएं सावधान

बिस्तर पर पेशाब करना, भयभीत रहना, औरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए अजीब हरकतें करना आदि लक्षण मानसिक बीमारियों के लक्षण हैं। ऐसे बच्चे तनाव, सिरदर्द और अति चंचलता या सुस्ती आदि से पीडि़त होते हैं।

बच्चों की नहीं करें उपेक्षा

2012-13 में जेएलएनएमसीएच में ऐसे मामले शून्य थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई। डॉ. कुमार कहते हैं कि इसकी मुख्य वजह पढ़ाई का अत्यधिक दबाव, माता-पिता के झगड़े, माता-पिता द्वारा बच्चों की औरों से तुलना व उपेक्षा आदि हैं।

मानसिक रोग विभाग में इलाज

मानसिक रोग विभाग के ओपीडी में केवल बच्चों का इलाज किया जाता है। यहां भागलपुर के अलावा बांका, कटिहार, खगडिय़ा, मधेपुरा और झारखंड के गोड्डा जिले से भी मरीज आते हैं।

संस्थागत प्रसव जरूरी

तीन वर्ष तक के बच्चों में ऐसे लक्षण हैं तो वह जन्मजात मनोरोगी है। यह विकृति गर्भ के दौरान शरीर में रासायनिक असंतुलन से आती है। एक से पांच साल की उम्र में सिर में चोट लगने से भी ऐसी विकृति हो सकती है। बच्चे का संस्थागत प्रसव (चिकित्सक के निर्देशन में स्वास्थ्य केंद्र में) नहीं होने के कारण भी मानसिक विकृति आ सकती है। यदि बच्चा जन्म के तुरंत बाद नहीं रोता है तो आगे चलकर वह मानसिक रोग का शिकार हो सकता है। स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव के दौरान डॉक्टर इसका ध्यान रखते हैं।

देश में चार में से एक मनोरोगी

2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मनोरोग से जूझ रहे 50 फीसद लोग किशोरवस्था में ही इस समस्या से ग्रसित हो चुके थे। यह भी कि प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति मनोरोग से पीडि़त है।

186 में 20 बच्चे मानसिक अवसाद के शिकार

इंडियन साइकिएट्रिक सोसाइटी के मुताबिक 186 में से 20 बच्चे मानसिक अवसाद के शिकार होते हैं। इसका कारण अकेलापन, बीमारी से जूझते रहना, पढ़ाई या कॅरियर से जुड़ी परेशानी आदि होती है।

क्या करें अभिभावक

- बच्चों को ज्यादा देर तक मोबाइल या कंप्यूटर का उपयोग नहीं करने दें।

- बच्चों को समय पर सोने की आदत डालें।

- उपेक्षित महसूस नहीं होने दें, उनकी बातों को साझा करें।

- जब भी मौका मिले, साथ भोजन करें।

- खेलकूद के प्रति बच्चों में रुझान पैदा करें।

- जब भी लगे कि आपका बच्चा किसी परेशानी में है, मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।

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