शिक्षक नेताओं पर लगाए कई बड़े आरोप, बोले-नियोजित शिक्षकों के अरमानों पर पानी फेरा
बिहार के नियोजित शिक्षक 70 दिनों से हड़ताल पर थे। इस बीच अचानक नियोजित शिक्षकों ने हड़ताल समाप्त कर दिया। शिक्षक नेताओं के इस रवैये की आलोचना हो रही है।
मुंगेर, जेएनएन। हड़ताल को एकाएक समाप्त करवा कर शिक्षक संघ के नेतृत्व ने अपना राजनीतिक बजूद को बरकरार रखने के लिए सरकार से सौदेबाजी कर ली और नियोजित शिक्षकों के अरमानों पर पानी फेर दिया। उक्त बातें खडगपुर अनुमंडल माध्यमिक शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक मनोज कुमार सिंह ने कही।
उन्होंने कहा कि जब बीते 25 फरवरी से बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर राज्य भर के माध्यमिक शिक्षक, उच्च माध्यमिक शिक्षक तथा पुस्तकालाध्यक्ष अनिश्चित कालीन हडताल पर एकजुटता के साथ डटे हुए थे। कोरोना महामारी को लेकर आगामी 17 मई तक लॉककडाउन है। तब हड़ताल समाप्त करवाना, वो भी बिना एक भी मांगों को मनवाए, इतना उतावलापन हमारे नेतृत्व ने आखिर क्यों दिखाया, यह समझ से परे है। अगर सिर्फ आशवासन पर ही हड़ताल समाप्त करना था तो फिर यह नाटक करने की जरूरत क्या थी। तीन मई तक बिना मांग पूरी हुए किसी कीमत पर हड़ताल वापस नहीं लेने की बात कही जा रही थी। फिर एकाएक ऐसी कौन सी परिस्थिति उत्पन्न हो गई कि चार मई दोपहर बाद एकाएक हड़ताल समाप्त कर दिया गया।
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर सरकारी विद्यालय के नियोजित उच्च माध्यमिक शिक्षकों द्वारा कॉपी मूल्यांकन का बहिष्कार किया गया। जिसके कारण शिक्षकों को काफी आर्थिक क्षति पहुंची। इतना ही नहीं 70 दिनों की हडताल अवधि में 65 शिक्षकों की असमय पैसे के अभाव में हुई मौत का जिम्मेदार आखिर कौन होगा। शिक्षकों के साथ विश्वासघात कर संघ के नेताओं ने अपना विश्वास समाप्त कर दिया।
यहां बता दें कि विश्व के लगभग प्रत्येक देश कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है। इस वायरस के संक्रमण से बचने और इसके प्रभाव को रोकने के लिए भारत में पूरी तरह लॉकडाउन है। 17 फरवरी से बिहार राज्य के सभी नियोजित शिक्षक हड़ताल पर चले गए थे। हड़ताली शिक्षकों ने ना सिर्फ स्कूलों में पठन-पाठन बाधित कर दिया, बल्कि मैट्रिक और इंटर की परीक्षाओं में भी किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं किया। 24 मार्च से भारत में लॉकडाउन है। इस कारण नियोजित शिक्षकों के प्रदर्शन, धरना, आंदोलन आदि पर ग्रहण लग गया। हड़ताल कमजोर होने के कारण नियोजित शिक्षकों की एकजुटता भी प्रभावित होने लगा।