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सुपौल : टूट रहा शिलापट नहीं हुआ शीत भंडार का निर्माण, आस में पथराई आलू किसानों की आंखें

सुपौल में त्रिवेणीगंज को आलू उत्पादक किसानों का गढ़ माना जाता है। यहां बड़े पैमाने पर आलू की खेती होती है। इसके लिए चार एकड़ जमीन पर 1997 में कोल्ड स्टोरेज की आधारशिला रखी गई थी लेकिन अब तक नहीं बन सकी।

By Amrendra TiwariEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 04:08 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 04:08 PM (IST)
सुपौल : टूट रहा शिलापट नहीं हुआ शीत भंडार का निर्माण, आस में पथराई आलू किसानों की आंखें
1997 में त्रिवेणीगंज में शीत भंडार निर्माण के लिए रखी गई थी आधारशिला।

सुपौल, जेएनएन। त्रिवेणीगंज के किसान शीत भंडार के लिए मोहताज हैं। शीत भंडार नहीं रहने के कारण किसानों को खेत में ही आलू बेच देना पड़ता है जिससे उन्हें उचित कीमत नहीं मिलता। किसानों की परेशानी देख 1997 में शीत भंडार की आधारशिला तो रखी गई अब यहां लगाया गया बोर्ड भी टूटने लगा है लेकिन शीत भंडार का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

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1997 में रखी गई थी आधारशिला

शीत भंडार निर्माण के लिए प्रखंड कार्यालय के समीप कृषि फार्म की चार एकड़ जमीन अधिग्रहित कर भूमिपूजन व शिलान्यास किया गया था। पांच जून 1997 को तत्कालीन कृषि मंत्री रामजीवन ङ्क्षसह ने कई मंत्रियों एवं विधायकों की मौजूदगी में भूमिपूजन व शिलान्यास कर किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने का संदेश दिया था। मौके पर पूर्व मंत्री अनूप लाल मंडल, केंद्रीय भंडारण नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मंडल, वाणिज्य प्रबंधक अजय खेड़ा, क्षेत्रीय प्रबंधक अरङ्क्षवद चौधरी एवं अधिशासी अभियंता आनंद मोहन शर्मा भी उपस्थित थे। तब आलू उत्पादक किसानों को लगा था कि अब आलू का उचित मूल्य प्राप्त हो सकेगा। किसानों का मानना था कि बिचौलियों से निजात मिलेगी और आर्थिक संपन्नता बढ़ेगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। शिलान्यास से आगे काम नहीं बढ़ पाया।

सरकार से शिकायत भी उम्मीद भी

प्रखंड मुख्यालय के मचहा, कुशहा, मयुरवा, योगियाचाही, तितुवाहा आदि ऐसे गांव हैं जहां गोभी, आलू आदि की खेती की जाती है। यहां किसानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन्हें सरकार से तो शिकायत है ही साथ ही उम्मीद भी। इस दिक्कत के बावजूद ये कर्मठ किसान अपनी राह खुद गढ़ लेते हैं। इन गांवों के किसान साइकिल, मोटरसाइकल व अन्य वाहनों पर सब्जियों को लाद त्रिवेणीगंज की मंडियों में लाते हैं। यह काम सूरज के निकलने के पूर्व पूरा हो जाता है। स्थानीय हटिया व नजदीक के बाजार में किसान औने-पौने दाम में सब्जी और आलू बेचने को विवश होते हैं। आलू के तत्काल नहीं बिकने पर तो उतनी परेशानी नहीं होती लेकिन सब्जियां बच जाने के बाद सडऩे के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।


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