जयंती पर विशेष : रामगढ़ जाने के क्रम भागलपुर आए थे नेताजी
लाजपत पार्क में संबोधित करते हुए तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था। उस दौरान सैकड़ों युवा उनकी विचारधारा से जुड़कर आजादी की लड़ाई में भाग लेने सक्रिय हुए थे।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भागलपुर से पारिवारिक रिश्ता रहा था। वे जनवरी 1940 में भागलपुर आए थे और अपने भाई के ससुराल में ठहरे थे। उनके बड़े भाई सुरेशचंद्र बोस का ससुराल खरमनचक के ढेबर गेट के सामने प्रभाष मंदिर में था। इस दौरान वे लाजपत पार्क में एक सभा को भी संबोधित किया था। लाजपत पार्क में सभा को संबोधित करते हुए तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था। उस दौरान भागलपुर के सैकड़ो युवा उनकी विचारधारा से जुड़कर आजादी की लड़ाई में भाग लेने को सक्रिय हुए थे। वे धनबाद के रामगढ़ हरिपुरा कांग्रेस सम्मेलन में भाग लेने के लिए कोलकाता से भागलपुर आए थे। नेताजी के संबंधी उन्हें काका बाबू कहते थे। उन्हें लाल चाय वह बहुत पसंद था। उनकी याद में लाजपत पार्क में बोस पार्क और झरना लगाया गया था। नेताजी की प्रतिमा भी स्थापित की गई।
नेताजी का नाथनगर से भी पुराना संबंध रहा है। नाथनगर प्रखंड के पुरानी सराय निवासी आशा चौधरी आजाद हिन्द फौज की सहयोगी रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में शामिल हुई थीं। इनके पिता आनंद मोहन सहाय नेताजी के निकट सहयोगी और आजाद ङ्क्षहद फौज के सेक्रेटरी जनरल थे। उनकी माता सती सहाय पश्चिम बंगाल के चोटी के कांग्रेसी नेता व बैरिस्टर चित्तरंजन दास की भांजी थीं। सती सहाय देशभक्त महिला व स्वतंत्रता सेनानी थी। गया कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष बोस अध्यक्ष चित्तरंजन दास के निजी सचिव बन कर आए थे। वहां श्रीमती चौधरी के पिता आनंद मोहन सहाय को चित्तरंजन दास के कैंप की सुरक्षा का दायित्व मिला था। नेताजी से सहायजी की पहली भेंट वहीं हुई थी।