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मुंगेर में धान खरीद की कहानी, समय पर किसानों के खाते में नहीं आती है राशि, जानिए वजह

किसान सलाहकारों को इस बार क्षेत्र के किसानों से संपर्क कर उन्हें संबंधित पंचायत के पैक्स में ही धान बेचने की जिम्मेवारी दी गई है। उनके प्रयास से धान की बिक्री तो हो रही है पर उनके खाते में बेची गई धान की राशि खाते में नहीं आ रही है।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 01:31 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 01:31 PM (IST)
मुंगेर में धान खरीद की कहानी, समय पर किसानों के खाते में नहीं आती है राशि, जानिए वजह
सबसे कम धान गाजीपुर पैक्स ने खरीदा

जागरण संवाददाता, मुंगेर । सरकार द्वारा किसानों से कृषि साख सहयोग समिति पैक्स एवं व्यापार मंडल के माध्यम से सरकारी समर्थन मूल्य पर धान खरीद रही है। किसान सलाहकारों को इस बार क्षेत्र के किसानों से संपर्क कर उन्हें संबंधित पंचायत के पैक्स में ही धान बेचने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेवारी दी गई है। प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी भोला दास के अनुसार धान खरीद का कार्य सभी पैक्सों में किया जा रहा है। अब तक 433 किसानों से धान की खरीद की जा चुकी है।

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एक बोरे में 40 के बजाय 42 किलो धान देने की विवशता

पैक्स द्वारा धान खरीद में वैसे किसानों को परेशानी है, जिनकी जमीन तो तारापुर अंचल में है परंतु वे किसी दूसरे जगह के निवासी हैं। ऐसी परिस्थिति में उनके धान को पैक्स द्वारा यह कह कर नहीं लिया जा रहा है कि आपका आवासीय संबंधित प्रखंड का नहीं है। वहीं, पैक्स द्वारा किसानों से प्रति क्विंटल पांच किलो अतिरिक्त धान लिए जा रहे हैं। यानी प्रति बोरी दो किलो अतिरिक्त धान लिया जा रहा है । एक बोरी में 40 किलो की जगह 42 किलो धान किसानों को देना पड़ रहा है। किसान द्वारा पैक्स को धान देने के बाद उनसे क्रय पंजी पर हस्ताक्षर करना होता है। पैक्स द्वारा खरीदे गए धान को आवश्यक प्रक्रिया कर एडवाइस बैंक को भेजना पड़ता है। जहां से नगद साख सीमा वाले बैंक किसान के खाता में आरटीजीएस के माध्यम से राशि का भुगतान करती है। सरकारी निर्देशानुसार 72 घंटे के अंदर धान बेचने के बाद किसानों के खाता में राशि मिल जानी चाहिए, परंतु अनेकों किसान ऐसे हैं जिन्हें धान देने के बावजूद उनके खाता में राशि नहीं आई है। कॉपरेटिव बैंक द्वारा किसानों के खाते में तय समय सीमा के अंदर राशि भेजने में परेशानी बनी हुई है।

पैक्स द्वारा किसानों से सरकारी समर्थन मूल्य 1868 रुपये की दर से धान लिया जा रहा है। प्रति क्विंटल बोरी की कीमत 25 रुपये भी देने की बात कहीं जा रही है, परंतु जिन किसानों का तकनीकी कारणों से ऑनलाइन पंजीकरण नहीं है, उन्हें बिचौलिए के हाथ ही धान बेचना मजबूरी बनी हुई है। किसानों को अपने घर से बोरी में प्रति बोरी 42 केजी धान का शुद्ध वजन कर अपने वाहन से पैक्स के गोदाम पर धान ले जाकर तौलवाना पड़ता है तथा उसे अपने खर्च पर उनके गोदाम पर रखवाना पड़ता है। इस एवज में किसान को कुछ भी नहीं मिलता है।

433 के किसान अब तक हुए हैं लाभान्वित

प्रखंड सहकारिता विभाग कार्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार तारापुर के 12 ग्राम पंचायत पैक्स एवं तारापुर व्यापार मंडल को मिलाकर सांकेतिक लक्ष्य 1 लाख 45 हजार 180 क्विंटल खरीद कर दिया गया है। जिसमें अब तक 26 हजार 755 क्विंटल धान की खरीद हो चुकी है। इसमें लाभान्वित किसानों की संख्या 433 के आसपास है। सबसे कम धान गाजीपुर पैक्स द्वारा खरीदा गया है। जबकि व्यापार मंडल द्वारा मात्र 100 क्विंटल धान की खरीद हुई है। धान खरीद के मामले में खैरा पैक्स द्वारा लगभग 12000 क्विंटल एवं मानिकपुर पैक्स के द्वारा 4500 क्विंटल की खरीद दिखाई जा रही है। अब तक अफजलनगर पैक्स ने 2526, बेलाडीह पैक्स द्वारा 1293, बिहमा पैक्स द्वारा 273, धोबई पैक्स द्वारा 1960, गनेली पैक्स द्वारा 706, गाजीपुर पैक्स द्वारा 8, खैरा पैक्स द्वारा 11850, लौना पैक्स द्वारा 848, मानिकपुर पैक्स द्वारा 4358, पड़भाड़ा पैक्स द्वारा 546, रामपुर विषय पैक्स द्वारा 1448, तारापुर पैक्स द्वारा 806 और व्यापार मंडल के द्वारा एक सौ क्विंटल धान की खरीद हुई है।

कॉपरेटिव बैंक की लापरवाही से किसानों के खाते में नहीं आती राशि

महमतपुर गांव के किसान गिरिजा देवी, मुश्कीपुर के बृजेंद्र सिंह, द्विजेन्द्र सिंह, हरेंद्र सिंह आदि को धान बेचने के 25 दिनों बाद भी राशि नहीं मिली है। नाम नहीं छापने की शर्त पर कई पैक्स अध्यक्ष ने कहा कि उनके द्वारा किसान से धान क्रय करने के बाद पीपीए जनरेट कर दे दिया जाता है। उसके बाद ऑटोमेटिक एडवाइस जेनरेट होता है। फिर मैनुअली चेक काटकर कॉपरेटिव बैंक को दिया जाता है । कॉपरेटिव बैंक की लापरवाही के कारण किसानों के खाते में राशि नहीं जाती है। अभी तक बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं, जिनके खाते में महीनों बाद भी राशि नहीं आई है। एक तरफ पैक्स के खाते से राशि कट जाती है और उस पर सूद प्रारंभ हो जाता है। सरकार को यह दिखाई पड़ता है कि भुगतान हो चुका है। परंतु वास्तविकता इससे अलग है।


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