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फायदे ही फायदे : यूरिया का छिड़काव नहीं, फसलों पर स्प्रे करें किसान

अब तक किसान अधिक उत्पादन लेने के चक्कर में डोज से अधिक यूरिया का उपयोग कर रहे हैं। दुष्परिणाम अब सामने आने लगा है। इसके निजात के लिए एक बेतरीन उपाय निकाले गए हैं। जानिए

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 09:18 PM (IST)Updated: Wed, 09 Jan 2019 03:06 PM (IST)
फायदे ही फायदे : यूरिया का छिड़काव नहीं, फसलों पर स्प्रे करें किसान
फायदे ही फायदे : यूरिया का छिड़काव नहीं, फसलों पर स्प्रे करें किसान

भागलपुर [अमरेन्द्र कुमार तिवारी]। किसान प्रति एकड़ गेहूं की फसलों में 50 किलो यूरिया का डोज देने के बजाय 200 लीटर पानी में चार किलोग्राम यूरिया, आधा लीटर एग्रोमीन और आवश्यकता अनुसार स्टीकर का उपयोग कर चिपचिपा घोल बना लें फिर उसका फसलों पर स्प्रे करें। इससे यूरिया का दुरुपयोग रुकेगा। उत्पादन लागत कम होगी। उत्पाद गुणवत्तापूर्ण होगा। मिट्टी की संरचना नहीं बिगड़ेगी। खेतों की उर्वरा शक्ति बरकरार रहेगी। मिट्टी की जल धारण क्षमता भी कम नहीं होगी। खेती टिकाऊ होगी। इसकी जानकारी किसानों को समसामयिक सलाह में सहायक कृषि पदाधिकारी दिलीप कुमार सिंह ने दी।

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डोज से अधिक यूरिया का प्रयोग बिगाड़ रही मिट्टी की संरचना

अब तक किसान अधिक उत्पादन लेने के चक्कर में डोज से अधिक यूरिया का उपयोग कर रहे हैं। दुष्परिणाम अब सामने आने लगा है। जब तक मिट्टी की संरचना मजबूत रहती है तब उत्पाद बढ़ता रहता है। बेतहाशा रसायनिक खादों के उपयोग से उसकी संरचना बिगड़ी जाती है जिसकी जानकारी किसानों को नहीं हो पाती है। नतीजतन, दिन प्रतिदिन उत्पादन कम होने के साथ ही फसल भी कमजोर होने लगती है। किसान को घाटा लगने लगता है।

स्प्रे करने के फायदे

स्प्रे करने से फसल धीरे-धीरे यूरिया सहित अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को ग्रहण करते हैं। खेतों में सीधे छिड़काव करने से डोज का 60 फीसद यूरिया बर्बाद चला जाता है। फायदा होने के बजाय नुकसान होता है।

स्प्रे में एग्रोमीन का क्या है फायदा

प्रति एकड़ गेहूं के फसल में 200 लीटर पानी व स्टीकर के साथ आधा लीटर एग्रोमीन मिलाकर फसलों पर स्प्रे करने से पौधों को सात सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे बोरोन, जिंक, सल्फर, कैल्शियम एवं आयरन सहित अन्य तत्व सहजता से प्राप्त हो जाते हैं। जो फसल के दानों को पुष्ट एवं गुणवत्तापूर्ण बनाने का काम करता है।

80 हजार हेक्टेयर में होती है रबी फसल

उदाहरण के रूप में भागलपुर जिले के 80 हजार हेक्टेयर में गेहूं, मक्का, दलहनी, तेलहनी सहित अन्य रबी फसलों की खेती होती है। जिसमें सबसे अधिक 42 हजार हेक्टेयर में गेहूं एवं 17 हजार हेक्टेयर में किसान मक्का की खेती करते हैं। कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग अब किसानों को इस नई तकनीक से अवगत कराने के लिए योजना बना रहा है।

सहायक कृषि वैज्ञानिक दिलीप कुमार सिंह ने कहा कि किसान यदि यूरिया के स्प्रे का उपयोग करेंगे तो कम लागत में बेहतर उत्पाद मिलेगा। स्प्रे की जानकारी के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है।


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