Move to Jagran APP

हिंदी द‍िवस पर व‍िशेष: आख‍िर TMBU में क्‍यों उपेक्षित है 'हिंदी', शिक्षकों ने ही उठाए सवाल

हिंदी द‍िवस पर व‍िशेष एक ओर सरकार हिंदी को बढ़ावा दे रही है। इसके ल‍िए लगातार प्रयास क‍िए जा रहे हैं। सरकारी कार्यालयों में भी हिंदी भाषा को बढ़ावा द‍िया जा रहा है। इसके बावजूद TMBU में हिंदी उपेक्षित है। इस पर शिक्षकों ने ही कई सवाल उठाए हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Tue, 14 Sep 2021 10:52 AM (IST)Updated: Tue, 14 Sep 2021 10:52 AM (IST)
हिंदी द‍िवस पर व‍िशेष: आख‍िर TMBU में क्‍यों उपेक्षित है 'हिंदी', शिक्षकों ने ही उठाए सवाल
त‍िमांविव‍ि में श‍िक्षकों ने उठाए सवाल, क्‍यों उपेक्षित है हिंदी।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। एक ओर केंद्र सरकार हिंदी को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। सरकारी कार्यालयों में हिंदी में कामकाज कर हिंदी भाषा को बढ़ावा देने का निर्देश दिया जाता है। इसके बावजूद इसका पालन नहीं के बराबर हो रहा है। जिस तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के कुलपति हिंदी के राष्ट्रकवि रामधारी स‍िंह दिनकर रहे हैं वहीं पर हिंदी उपेक्षित है। टीएमबीयू में ज्यादातर अधिकारी पत्राचार, अधिसूचना आदि अंग्रेजी में ही कर रहे हैं।

loksabha election banner

नेट-जेआरएफ में बढ़ी है हिंदी छात्रों की संख्या

टीएमबीयू स्नातकोत्तर (पीजी) हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. योगेंद्र ने कहा कि हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए लगातार कार्य हो रहे हैं। इसके तहत यूजीसी को अलग-अलग विषयों पर शोध का प्रस्ताव दिया जाएगा। भाषा सुधार के लिए भी कक्षाओं में अलग से कार्यशाला आयोजित की जाएगी। उन्होंने कहा कि नेट-जेआरएफ में हिंदी के छात्रों की संख्या बढ़ी है। पिछले पांच साल में हिंदी के छात्रों में रुचि तो बढ़ी है, लेकिन वैकल्पिक प्रश्नों वाली नेट की परीक्षा के कारण इसका स्तर घटा है। उन्होंने कहा कि विभाग में लगातार इस पर कार्य हो रहा है।

हिंदी के उत्थान के लिए हस्ताक्षर से करें शुरुआत

स्नातकोत्तर (पीजी) हिंदी विभाग के डा. बहादुर मिश्र ने कहा कि जब तक विश्वविद्यालय के सारे कामकाज हिंदी में नहीं होंगे, तब तक हिंदी का उत्थान संभव नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम हिंदी की ओर छात्रों को तभी आकर्षित कर सकते हैं, जब विश्वविद्यालय में इसका प्रयोग हो। इसके लिए सभी अधिकारियों को अपने हस्ताक्षर से इसकी शुरुआत करनी होगी। तभी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सकेगा। डा. मिश्र ने कहा कि कई बार टीएमबीयू के सामने इसकी मांग की है, लेकिन कोई इस पर ध्यान नहीं देता।

हिंदी है राजभाषा, राष्ट्रभाषा समझने की करते हैं भूल

स्नातकोत्तर (पीजी) हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यानंद ने कहा कि अक्सर हिंदी को लेकर हम भूल करते हैं कि यह राष्ट्रभाषा है, जबकि यह एक राजभाषा है। देश में राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत की तरह कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। वर्तमान में राजभाषा हिंदी का हाल यह है कि बिना अंग्रेजी जाने भारत में सरकारी कामकाज करना या कराना दुष्कर कार्य है। आज अंग्रेजी जीने की एक शर्त बन चुकी है। इसका सीधा अर्थ है कि हिंदी का महत्व हमारे देश में प्रतीकात्मक ज्यादा और वास्तविकता कम है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.