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शंकर की तकलीफ, गणेश का संकल्प; रक्तकैंसर से पिता की मौत के बाद बना रक्तवीर

गणेश का कहना है कि अपने पिता के रक्त कैंसर के इलाज के दौरान उसने महसूस किया कि खासकर गरीब लोगों के लिए रक्त का प्रबंध कितना कठिन है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 01:28 PM (IST)Updated: Wed, 19 Aug 2020 06:47 AM (IST)
शंकर की तकलीफ, गणेश का संकल्प;  रक्तकैंसर से पिता की मौत के बाद बना रक्तवीर
शंकर की तकलीफ, गणेश का संकल्प; रक्तकैंसर से पिता की मौत के बाद बना रक्तवीर

सहरसा [कुंदन कुमार]। जिक्र अगर हीरो का होता है तो नाम भारत के वीरों का या रक्तवीरों का होता है। देशभक्ति क मतलब सिर्फ तिरंगा को लहराना नहीं, बल्कि जरूरतमंद के लिए रक्तदान करना भी है। यह कहना है सहरसा जिला मुख्यालय के कचहरी चौक निवासी गणेश भगत का। गरीबी के कारण पिता शंकर भगत की इलाज में रक्तप्रबंध करने की परेशानी झेल चुका गणेश भगत पिता की मौत के बाद रक्तवीर बन गया। अपनी 31 वर्ष की उम्र में वह 21 बार रक्तदान कर चुका है। वह अपनी जिदगी में कम- से- कम सौ बार रक्तदान करना चाहता है। वह न सिर्फ खुद तीन महीने की अवधि में जरूरतमंदों को रक्तदान करना है, बल्कि अपने दोस्तों को इसके लिए प्रेरित भी करता है। गणेश सोशल मीडिया के जरिए रक्तदान के लिए तरह- तरह के उत्तेजक नारे देकर लोगों को आकर्षित करने का अनवरत प्रयास कर रहा है।

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थैलीसीमिया बच्चों को मौत के मुंह से बचाना है मुख्य उद्देश्य

गणेश का कहना है कि अपने पिता के रक्त कैंसर के इलाज के दौरान उसने महसूस किया कि खासकर गरीब लोगों के लिए रक्त का प्रबंध कितना कठिन है। इसका जो मार्मिक अनुभव उसे प्राप्त हुआ, वह सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से अपने दोस्तों के बीच शेयर करता रहा। इस कार्य में उसके एक साथी कृष्णशेखर ने रक्तदान जागरूकता समिति गठित कर रक्तदान के साथ- साथ लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक करने का बीड़ा उठाया। जीविकोपार्जन के लिए एक निजी अस्पताल में नौकरी करते हुए उसने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी। इस बीच उसकी शादी भी हुई। इस प्रयास में मां मीना देवी, भाई महेश भगत और पत्नी कविता और दोस्तों ने काफी प्रोत्साहित किया। फिर वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रक्तदान करनेवाले उसके दोस्तों की एक टीम बन गई। इसमें संतोष कुमार, राहुल देव वर्मन, रीना कुमारी, पप्पू चौधरी, गुड्डू भगत, संतोष कुमार भगत, जितेन्द्र मिश्र, जावेद अख्तर, श्रवण कुमार, डे कुमार, रीना कुमारी, सोनम कुमारी आदि समय- समय पर रक्तदान कर रहे हैं। इन लोगों का मुख्य उद्देश्य थैलीसीमिया बच्चों व अन्य लोगो को रक्त की कमी के कारण मौत के मुंह में जाने से बचाना है।

कई मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं गणेश

गणेश अपने कार्यकलाप को सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से शेयर करता रहा। इसके कारण राज्य के अनेक भाग में उसका रक्तदाताओं से मधुर संबंध हो गया। पथ प्रदर्शक औरंगाबाद के द्वारा आयोजित रक्तदाता महाकुंभ उसे आमंत्रित किया गया। उसके बाद रक्तदान के लिए गणेश को युग परिवार बाढ़ पटना, मानव कल्याण मोकामा, आल इंडिया रोटी बैंक ट्रस्ट दरभंगा, आजाद युवा विचार मंच, लार्ड बुद्धा कोसी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अलावा स्वैच्छिक रक्तदान के लिए सदर अस्पताल से रक्तवीर के रूप में सम्मानित किया जा चुका है। उसका कहना है कि भले ही वह सौ वर्ष की जिंदगी पूरा नहीं करे, परंतु अपनी जिंदगी में सौ बार रक्तदान कर लोगों की जान बचाना चाहता है। इसके लिए वर्ष 2019 से लोगों को जागरूक करने के लिए संस्था गठित किया गया है। अभी उसका सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है। जिस दिन सैंकड़ों लोग इस कड़ी में जुड जाएंगे, वह अपनी जिंदगी को धन्य समझेगा। उसका नारा है कि आजादी की कभी शाम न होने देंगे। शहीदों की कुर्बानी बदनाम न होने देंगे, बची हो जबतक एक भी बूंद लहू की रगों में, तबतक भारत मां का आंचल नीलाम न होने देंगे।


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