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गांव-गलियों में नौरंगी के गीत सुन कांप गई थी ब्रिटिश हुकूमत

आजादी के दौरान अंग्रेजों ने गीत गाने पर लगा दी थी पाबंदी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Aug 2019 02:45 PM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2019 06:38 AM (IST)
गांव-गलियों में नौरंगी के गीत सुन कांप गई थी ब्रिटिश हुकूमत
गांव-गलियों में नौरंगी के गीत सुन कांप गई थी ब्रिटिश हुकूमत

संजय, भागलपुर ।

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'तैयार हैं हम जेल में चक्की चलाने के लिए

कटिबद्ध हैं हम मूंज की रस्सी बनाने के लिए।

जब तक नहीं स्वाधीन भारत, स्वर्ग में भी सुख नहीं

तैयार हैं हम नर्क का जीवन बिताने के लिए।'

जंग-ए-आजादी के दौर का यह वह गीत है, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को थर्रा दिया था। एक-एक शब्द में स्वतंत्रता संग्राम के सिपाहियों की दीवानगी और वतन पर मर मिटने का जज्बा।

कलम पर बंदिश लग गई थी, किताबें जब्त कर ली गई। भागलपुर के मनोहरपुर निवासी नौरंगी लाल वर्मा ने 'गजलों का सितारा' नाम से लघु पुस्तिका प्रकाशित की। इसका मुद्रण पटना में बजरंग सहाय सिंह द्वारा सेंट्रल प्रिटिंग प्रेस मुरादपुर में किया गया। गांधी जी का जादू सबके सिर चढ़कर बोल रहा था। नौरंगी लाल ने लिखा- 'ऐ गांधी अएलन पहुनमा हे गुजराती इलाइची.. ,नेता सब चले बरिआत हे गुजराती इलाइची।'

गांव-शहर की गलियों में ये गीत गुनगुनाए जा रहे थे। हुकूमत को इसकी भनक लग गई। नौरंगी लाल को पकड़ने के लिए सीआइडी की टीम लगा दी गई। वे फरार हो चुके थे। 26 मार्च 1923 को डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (डीआइजी) एचजे हिस्ट ने सरकार से पुस्तक जब्त करने की सिफारिश की। इस सिफारिश पर तत्कालीन मुख्य सचिव ईएलएल हॅाम ने सात जनवरी 1925 को पुस्तक जब्त करने का आदेश दिया। तिलकामांझी विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्राध्यापक रमन सिन्हा कहते हैं, राष्ट्रीयता में भौगोलिक इकाई के साथ- साथ राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इकाई को भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों में जनजीवन तथा राजनीति और समाज के विविध पत्रों पर रचित साहित्य कविता, गीत, तराने, गजल की काफी प्रभावशाली भूमिका थी। देशज साहित्य की इन्हीं विधाओं ने आजादी की लड़ाई में काफी बड़ा योगदान दिया है।


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