श्रावणी मेला 2020: दो सौ साल की परंपरा पर पहली बार लगा ग्रहण, कोरोना के कारण कांवरिया पथ पर सन्नाटा
श्रावणी मेला 2020 कोरोना काल में इस बार श्रावणी मेला का आयोजन नहीं हुआ। 200 वर्षो से चली आ रही परंपरा और आस्था पर ग्रहण लग गया। सुल्तानगंज-देवघर कांवरिया पथ सूना पड़ा है।
उदय चंद्र झा, सुल्तानगंज। विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेला इस वर्ष कोरोना संक्रमण की भेंट चढ़ गया। पहली सोमवारी पर जुटने वाली अमूमन दो लाख श्रद्धालुओं की भीड़, इस वर्ष बस कल्पनाओं में ही रह गई। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार देवघर स्थित कामना ज्योतिर्लिंग अति महत्वपूर्ण है। श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा अर्थात् एक माह तक प्रत्येक वर्ष शिवभक्त सुल्तानगंज के अजगवीनाथ मंदिर के निकट उत्तर वाहिनी गंगा से जल लेकर 105 किलोमीटर पैदल यात्रा कर देवघर के रावणेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते थे, लेकिन इस वर्ष ये परंपरा टूट गई।
सैकड़ों बरसों से आध्यात्मिक एवं धार्मिक परंपरा के कारण लाखों लोगों की आस्था एवं विश्वास का केंद्र रहने के कारण देश के विभिन्न हिस्सों सहित नेपाल, भूटान, श्रीलंका के भी श्रद्धालु सुल्तानगंज पहुंचते थे और यहां से गंगाजल लेकर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते थे, लेकिन इस वर्ष कोरोना के संक्रमण की रोकथाम के लिए बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर और सुल्तानगंज के बाबा अजगवीनाथ मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए बंद रखा गया है। फिर भी सावन माह की पहली सोमवारी को लेकर पास पड़ोस के जिले सहित स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ अजगवीनाथ में दिन भर लगी रही। हालांकि, मंदिर का पट बंद रहने के कारण लोग बाहर से ही पूजा अर्चना कर अपने घर चले गये।
श्रावण में नहीं चढ़ा केसरिया रंग का जादू
श्रावणी मेला आने से एक सप्ताह पहले से लेकर भाद्रपद की पूॢणमा तक पूरे शहर की हर सड़क केसरियामय हो जाती थी। लगभग डेढ़ हजार छोटी बड़ी कांवरिया से संबंधित दुकानें शहर को केसरिया कलेवर में ढंक देती थी। शहर 'सैफ्रोन सिटी' कहलाने का दम भरता था, लेकिन इस बार कहीं ऐसा कुछ नहीं है।
किराए के मिलते थे डेढ़ करोड़
श्रावणी मेला के नाम से चलने वाला कांवरिया मेला अब दो महीने तक अर्थात भाद्र पूर्णिमा तक लगभग एक सा चलता था। इस दौरान कांवर संबंधी सामानों की दुकानों के अलावा रेडिमेड कपड़ों, प्लास्टिक डिब्बे, लाठी की दुकानें खुलती थीं। भोजन के लिए दर्जनों मारवाड़ी बासा, फल और जूस तथा चाय पान की दुकानें भी खुलती थीं। इसके लिए दो माह का किराया न्यूनतम 2 हजार और अधिकतम 8 से 10 लाख था। इसके अलावा सड़कों में अस्थायी रेस्ट हाउस खोलने वाले भी 12 घंटों के ठहराव के हिसाब से मनमाना किराया वसूलते थे। एक अनुमान के आधार पर मेलावधि में केवल शहरी क्षेत्र में डेढ़ करोड़ केवल किराए के मिल जाते थे।
ट्रांसपोर्टरों की आय पर फिरा पानी
बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित नेपाल से भी प्रतिदिन सुल्तानगंज आने वाली सैकड़ों बसों के ट्रांसपोर्टरों को भी करोड़ों की आय से वंचित होना पड़ा। इसके अलावा सैकड़ों लग्जरी गाडिय़ों से भी कांवरिया आते हैं। उन किराए की लग्जरी गाडिय़ों के मालिकों को भी आर्थिक चपत लगेगी।
विद्युत विभाग एवं नगर परिषद के राजस्व को घाटा
मेला के दौरान लगने वाले अस्थायी दुकानों की संख्या 12 सौ से 15 सौ के आसपास हुआ करती थी। इनमें अस्थाई विद्युत संबंधन दिया जाता था। प्रति दुकान न्यूनतम पांच सौ की रसीद काटी जाती थी। इस राजस्व से विद्युत विभाग को वंचित होना पड़ा है। दूसरी ओर नगर परिषद भी प्रति दुकान और गंगाघाट पर प्रति चौकी टैक्स वसूली करता था। उसे भी इस अतिरिक्त राजस्व प्राप्ति से वंचित होना पड़ेगा।