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शरद पूर्णिमा 2021: आकाश से होगी अमृत वर्षा, चांद की रोशनी में खीर रखने की है परंपरा, जानिए कब और कैसे करें पूजन

शरद पूर्णिमा 2021 शरद पूर्णिमा को ही समुंद्र मंथन में निकली थीं लक्ष्मीजी। इस दिन आकाश में अमृत की वर्षा होती है। चांद की रोशनी में खीर रखने की प्राचीन परंपरा है। इस दिन से सर्दियों का आरंभ होता है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 07:49 AM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 07:49 AM (IST)
शरद पूर्णिमा 2021: आकाश से होगी अमृत वर्षा, चांद की रोशनी में खीर रखने की है परंपरा, जानिए कब और कैसे करें पूजन
शरद पूर्णिमा में खीर बनाकर आकाश में रखा जाता है।

संवाद सहयोगी, भागलपुर। अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह पूर्णिमा तिथि धनदायक पूर्णिमा मानी जाती है। इस लेकर 20 अक्टूबर की सुबह शहर के गंगा घाटों पर गंगा स्नान को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी। मान्यता है कि इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इसी दिन से सर्दियों का आरंभ माना जाता है।

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बूढ़ानाथ मंदिर के आचार्य पंडित टुन्नाजी कहते हैं कि इस बार शरद पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर मंगलवार को है। शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे खास माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन चंद्र पूजा भी की जाती है।

शरद पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक मान्यताओं अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं। अपने भक्तों पर धन की देवी कृपा बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी से पूरी धरती सराबोर रहती है और अमृत की बरसात होती है। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर ऐसी परंपरा बनाई गई है कि रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने से उसमें अमृत समा जाता है।

ऐसे करें शरद पूर्णिमा की पूजा

शरद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो घर में पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं और इस स्थान को गंगाजल से पवित्र कर लें। इस चौकी पर अब मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और लाल चुनरी पहनाएं। इसके साथ ही धूप, दीप, नैवेद्य और सुपारी आदि अर्पित करें। मां लक्ष्मी की पूजा करते हुए ध्यान करते हुए लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। शाम को भगवान विष्णु की पूजा करें और तुलसी पौधा के पास घी का दीपक जलाएं। इसके साथ ही चंद्रमा को अघ्र्य दें। चावल और गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें। कुछ घंटों के लिए खीर रखने के बाद उसका भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में पूरे परिवार को खिलाएं।

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