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बंदर मित्र बने संजय : अंतिम यात्रा निकालकर बंदरों का वैदिक रीति से होता है दाह-संस्कार Bhagalpur News

भागलपुर में दशकों से बड़ी संख्या में बंदरों का वास है। यहां के बंदर का चेहरा काला होता है। इसलिए उसे लोग हनुमान भी कहते हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 09 Oct 2019 10:16 AM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 10:16 AM (IST)
बंदर मित्र बने संजय : अंतिम यात्रा निकालकर बंदरों का वैदिक रीति से होता है दाह-संस्कार Bhagalpur News
बंदर मित्र बने संजय : अंतिम यात्रा निकालकर बंदरों का वैदिक रीति से होता है दाह-संस्कार Bhagalpur News

भागलपुर [रजनीश]। भागलपुर के भीखनपुर निवासी संजय कुमार को लोग 'बंदरों के मित्र' के नाम से जानते हैं। ये बजरंगबली के भक्त हैं। इसी भक्ति से प्रेरित होकर संजय बंदरों की सेवा करते हैं। मृत्यु होने पर उसे लाल कफन देकर अंतिम यात्रा निकालते हैं और वैदिक रीति-रिवाज से दाह-संस्कार कराते हैं। पिछले दस वर्षों से वे घायल बंदरों की सेवा और मृत बंदरों के दाह संस्कार करा रहे हैं।

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भागलपुर में दशकों से बड़ी संख्या में बंदरों का वास है। यहां के बंदर का चेहरा काला होता है। इसलिए उसे लोग हनुमान भी कहते हैं। शहर में नुक्कड़ , चौराहे या कहीं सड़क पर करंट या अन्य कारणों से कोई बंदर मृत पड़ा होता है तो संजय उसे लाल कफन देकर दाह संस्कार कराते हैं। कोई घायल बंदर दिखा तो उसका पशु चिकित्सालय में इलाज करवाते हैं और खुद अस्पताल में बंदर की सेवा करते हैं।

गंगा स्नान छोड़ बंदर को ले गए अस्पताल

संजय बताते हैं 20 साल की उम्र में दोस्तों के साथ वह गंगा स्नान करने जा रहे थे। रास्ते में देखा कि करंट की चपेट में आने से एक बंदर बुरी तरह जख्मी है। तब गंगा स्नान छोड़ घायल बंदर को पशु अस्पताल ले गए। उसकी सेवा की। दो दिन के बाद जब बंदर को अस्पताल से छुट्टी दी गई तो वह संजय के पास से जाना ही नहीं चाहता था। इसके बाद बंदरों के प्रति उनका लगाव बढ़ता चला गया।

ठेले पर बाजे के साथ मोहल्ले में निकाली जाती है यात्रा

मृत बंदरों का दाह-संस्कार करने के लिए ठेले पर अंतिम यात्रा निकाली जाती है। साथ में कई लोग रहते हैं। इस दौरान लोग खुशी से दान भी देते हैं। संजय बताते हैं कि दान में मिले पैसे से ठेला भाड़ा और बाजे वाले का पेमेंट दिया जाता है। शेष पैसे को बजरंगबली पर प्रसाद चढ़ाकर लोगों में बांटा जाता है।


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