Russia Ukraine War से घाटे में पहुंचा बिहार: भागलपुर को करोड़ों का नुकसान, 129 दिनों ने छीना चैन
Russia Ukraine War - चार महीनों से ज्यादा का समय बीत चुका है। ऐसे में यूरोपीय देशों से जुड़े भारत के व्यवसाय पर भी खासा असर पड़ा है। बिहार को सबसे ज्यादा घाटा उठाना पड़ रहा है। बात करें सिल्क सिटी भागलपुर की तो यहां के रेशम व्यापार को...
जितेंद्र, भागलपुर: Russia Ukraine War - रूस-यूक्रेन युद्ध से पूरी दुनिया किसी ना किसी रूप में परेशान है। भागलपुर का सिल्क उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहा। पिछले चार माह से दो दर्जन बुनकरों के पास 20 करोड़ के कपड़े डंप पड़े हुए हैं। यूरोपीय देशों से इन कपड़ों के आर्डर लिए गए थे। बदले में एक्सपोर्टरों ने बुनकरों को 10 प्रतिशत राशि एडवांस में दी थी। युद्ध के कारण वहां के खरीदारों ने तैयार माल लेेने से इन्कार कर दिया है। अब बुनकर युद्ध विराम की आस देख रहे हैं।
रूस, यूक्रेन, फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, इटली, स्पेन, स्वीडन समेत दो दर्जन से अधिक यूरोपीय देशों में भागलपुर से सिल्क के कपड़े भेजे जाते हैं। बुनकरों का कहना है कि यूरोपीय देशों में सिल्क कपड़े की मांग अधिक है। वहां वाल फर्नीशिंग, बैग-पर्स निर्माण के अलावा अन्य कार्यों में सिल्क कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। पहनने के लिए भी लोग सिल्क कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इनकी मोटाई अधिक रखी जाती है। अधिसंख्य यूरोपीय देशों में ठंड अधिक पड़ने के कारण ऐसा होता है। इस कारण इन कपड़ों की भारत में अधिक मांग नहीं होती है।
- - 20 करोड़ का माल डंप, बुनकरों को मिली है सिर्फ 10 प्रतिशत की एडवांस राशि
- - दो दर्जन बुनकर रूस-यूक्रेन के बीच युद्धविराम का कर रहे इंतजार
1989 दंगे में भी हुआ था नुकसान
बुनकरों ने यूरोपीय देशों के लिए सिल्क, लिनेन व जूट के धागों से कपड़े तैयार किए हैं। तांती बाजार के बुनकर विनय लाल ने कोलकाता के एक्सपोर्टर से आर्डर लेकर डेढ़ करोड़ के कपड़े तैयार किये थे। इस काम के लिए कर्ज भी लेना पड़ा। अब इनके 200 कार्टन कपड़े धूल फांक रहे हैं। बुनकरों का रोना है कि लाकडाउन के बाद यूक्रेन युद्ध की मार उनपर पड़ गई। विनय के 23 पावरलूम पिछले तीन माह से बंद पड़े हैं। 1989 में भागलपुर दंगे के दौरान भी ऐसा ही झटका लगा था। धागे की कमी के कारण 50 लाख रुपये का आर्डर बुनकर पूरा नहीं कर सके थे। तब बुनकरों ने कपड़ों की कतरन से गद्दे बनाकर दान कर दिए थे।
सिल्क के बने कपड़ों को एक्सपोर्ट करने वाले एनके झा बताते हैं, 'भागलपुर में 1990 से पहले तक यूरोप के देशों के अलावा अमेरिका व जापान जैसे देशों से भी कपड़ों की मांग होती थी। तब लगभग 300 करोड़ का कारोबार हुआ करता था। अब 100 करोड़ रुपये का भी नहीं रहा। 90 के बाद एक्सपोर्टरों का पलायन शुरू हुआ। इसमें बनारस हाउस, गणपति एक्सपोर्ट, जयनीत एक्सपोर्ट समेत दर्जन भर एक्सपोर्टर बाजार नहीं मिलने से भागलपुर से चले गए। अब देशी बाजार में खपत बढ़ी है। कुछ स्थानीय स्तर के एक्सपोर्टर कार्य कर रहे हैं।'
वहीं, केंद्रीय रेशम बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय के त्रिपुरारी चौधरी विज्ञानी ने कहा, 'भागलपुर में बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट होता था तो केंद्रीय रेशम बोर्ड द्वारा संचालित तकनीकी सेवा केंद्र यहां कार्यरत था। 20 वर्ष पहले केंद्र बंद कर दिया। यहां से कपड़े की गुणवत्ता जांच के बाद प्रमाण-पत्र मिलता था। अभी निर्यात से संबंधित कपड़ों की जांच बेंगलुरु स्थित कार्यालय में होती है।'