अमृत पानी-खाद से फसलों की बीमारी करें दूर
पर्यावरण और जल संरक्षण दोनों की ओर किसानों ने कदम बढ़ाए हैं। इसके छिड़काव से गेहूं, धान, सब्जी और दलहन की फसल कीड़ों से बची रहती है।
भागलपुर। फसल को कोई बीमारी न लगे और अच्छी पैदावार हो, यही दुआ किसान की रहती है। फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किसान अपने हाथ से तैयार अमृत पानी और खाद का प्रयोग करने लगे हैं। इसके लिए पर्यावरण और जल संरक्षण दोनों की ओर किसानों ने कदम बढ़ाए हैं। इसके छिड़काव से गेहूं, धान, सब्जी और दलहन की फसल कीड़ों से बची रहती है। अमृत पानी कीड़ों को मारता नहीं है बल्कि भगाता है।
अमृत खाद के इस्तेमाल से रसायनिक खाद की तुलना में कम पानी लगता है। रसायनिक खाद से अगर पाच बार पानी देना पड़ता है तो अमृत खाद से चार बार ही देना पड़ता है। अमृत पानी में फसल के लिए उपयोगी नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास होने से फसल की अच्छी होती है। अमृत पानी के छिड़काव से बाद यूरिया का उपयोग 60 फीसद तक कम हो जाता है। मधेपुरा जिले के सरोपट्टी, सिंघेश्वर-पटोरी, नवगछिया, बिहपुर समस्तीपुर के मोहद्दीनगर, नालंदा जिले के कई गावों में अमृत पानी और अमृत खाद से किसान खेती कर रहे हैं।
अमृत पानी बनाने की विधि : गोमूत्र एक लीटर, गाय का गोबर एक किग्रा, एक किग्रा नीम की पत्ती, एक किग्रा चने या अन्य दाल का बेसन, सौ ग्राम को दस लीटर पानी में मिलाकर प्लास्टिक के डिब्बे में रखकर घुमाएं। फिर ढक्कन पर मिट्टी लगाकर सही ढंग से बंद कर दें। फिर 15 दिन के लिए छाव में रख दें। इसके बाद आठ किग्रा गाढ़ा घोल अमृत पानी के रूप में तैयार हो जाएगा। इसे छानकर प्लास्टिक की बोतल में भर कर रख लें। 15 मिलीलीटर अमृत पानी को इतनी ही मात्र के सामान्य पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करें। एक एकड़ में एक लीटर अमृत पानी इस्तेमाल होगा।
अमृत खाद बनाने की विधि : एक कुंतल गोबर में दस लीटर पानी लेकर उसको घोलते हैं। फिर उसे पुआल, प्लास्टिक या जूट के टाट से ढक देते हैं, ताकि गोबर की गैस न निकले। करीब 35 से 40 दिन के बाद यह खाद भूरे रंग के रूप में तैयार हो जाएगी। छह कुंतल प्रति एकड़ में इसका उपयोग कर सकते हैं।
इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक धु्रव कुमार ने बताया कि अमृत पानी व खाद बनाने के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। तमाम किसानों ने इस तकनीक को अपनाया है।