32 सालों में नहीं भरा बाढ़ का घाव, पुनर्वास के इंतजार में कई जवान हो गए बूढ़े
भागलपुर जिला प्रशासन ने अबतक किसी भी विस्थापित परिवार का पुनर्वास नहीं कराया है। कुछ विस्थापित परिवारों को जमीन का पर्चा तो जरूर दिया गया, लेकिन पुलिस जमीन पर कब्जा नहीं दिला सकी।
भागलपुर [धीरज कुमार]। पुलिस जिला नवगछिया में अमूमन हर साल बाढ़ आती है और हजारों लोगों की जिंदगी तहस-नहस करती है। लेकिन बाढ़ के जाते ही हर वर्ष जिला प्रशासन सबकुछ भूल कर बैठ जाता है। मानो कुछ हुआ ही न हो। यही वजह होगी कि 32 साल पहले आई बाढ़ का जख्म आज भी हरा है। बाढ़ में सबकुछ गंवा चुके हजारों लोग तटबंध और सड़क किनारे तिरपाल की नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। पुनर्वास के इंतजार में कई जवान बूढ़े हो गए, जो बूढ़े थे वे स्वर्ग सिधार गए। खेती पर निर्भर सैकड़ों परिवार रोजी-रोटी की तलाश में परदेस चले गए, जो लौटकर नहीं आए। जून-जुलाई के महीने से गंगा-कोसी नदी उफनाने लगती है, जो चार-पांच माह तक तटवर्ती इलाकों में तबाही मचाती है।
कुछ को जमीन का पर्चा मिला, कब्जा नहीं
भागलपुर जिला प्रशासन द्वारा अबतक किसी भी विस्थापित परिवार का पुनर्वास नहीं कराया गया है। पुनर्वास के लिए कुछ विस्थापित परिवारों को जमीन का पर्चा तो जरूर दिया गया, लेकिन पुलिस आज तक जमीन पर कब्जा नहीं दिला सकी। एसडीओ मुकेश कुमार कहते हैं कि विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए सरकार कटीबद्ध हैं। कुछ परिवार को जमीन दी गई है, लेकिन वे लोग समूह से जाना नहीं चाहते हैं। बाकी विस्थापितों के लिए जमीन खोजी जा रही है।
1987 में जमींदोज हो गया था सहोड़ा गांव
नवगछिया के रंगरा प्रखंड के सहोड़ा गांव में 14 अगस्त 1987 को आई कोसी की प्रलंयकारी बाढ़ में पूरा गांव जमींदोज हो गया। अशोक कुमार यादव बताते हैं कि उस काली रात को मैं कभी नहीं भूल सकता। पहले पानी के आने की आवाज सुनी, फिर अचानक गांव में इतनी तेजी से पानी भरने लगा की हम सब डर गए। ग्रामीणों की मदद से अपने बच्चों के साथ वहां से चार किमी दूर निकल आए। तब जाकर जान बची। पूरा गांव कोसी नदी में विलीन हो गया। पल भर में एक हजार परिवार बेघर हो गए। गांव से चार किमी दूर मदरौनी के पास पुरानी रेलवे बांध पर सभी ने शरण लिया। लेकिन कटाव ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। पुरानी रेलवे बांध भी कटाव की भेंट चढ़ गया। यहां से भागकर सभी विस्थापित परिवारों ने एनएच-31 किनारे नया ठिकाना बनाया।
बालूटोला मदरौनी में 150 परिवार बेघर
1990 से ही रंगरा के बालूटोला मदरौनी में रूक-रूक कर कोसी नदी का कटाव हो रहा है। अब तक 150 परिवार का घर कोसी नदी में समा चुका है। दो वर्ष पूर्व गांव के पास बोल्डर पीचिंग कार्य होने से गांव बचा हुआ है। विस्थापित अधिकांश लोग गांव से पलायन कर गए हैं।
पुनामा प्रताप नगर और मिल्की का अस्तित्व समाप्त
2000 में नवगछिया के पुनामा प्रताप नगर और मिल्की गांव का कोसी नदी ने अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। मुखिया प्रलय कुमार विद्रोही ने बताया कि 1700 परिवार विस्थापित हो गए। विस्थापित कई परिवार नवगछिया के राजेद्र कॉलोनी में और गोशाला की जमीन पर शरण ले रखे हैं।
इस्माइलपुर और गोपालपुर में 5300 परिवार विस्थापित
2008 में इस्माइलपुर प्रखंड का कमलाकुंड गांव गंगा नदी में समा गया। 1800 सौ परिवार बेघर हो गए। पूर्व मुखिया ललन कुमार ने बताया कि कटाव से विस्थापित परिवार थाना के पास झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे हैं। बहुत से परिवार पलायन कर गए। एक वर्ष बाद गोपालपुर प्रखंड का बुद्धुचक गांव गंगा नदी में विलीन हो गया, जिसमें 3500 परिवार विस्थापित हो गए। विस्थापित सभी परिवार नवगछिया तेतरी के समीप जमींदारी बांध पर झोपड़ी बनाकर जीवन गुजर बसर कर रहे हैं।
खरीक में कोसी ने मचाई तबाही
खरीक प्रखंड के भवनपुरा गांव का आधा हिस्सा कोसी नदी में कट चुका है। इसके अलावा नवटोलिया, पीपरपांती, विशपुरिया, ढ़ोरिया आदि गांवों में 1990 से ही कोसी का कटाव हो रहा। जिला परिसद सदस्य गौरव राय ने बताया कि विस्थापित परिवार खरीक स्टेशन के पास रेलवे की जमीन पर शरण ले रखे हैं।