चकाचौंध के बीच भारतीय कला-संस्कृति को जिंदा रखे हैं राकेश प्रवीर, जानिए... उनकी खासियत Bhagalpur News
राकेश कहते हैं कि सितार वादन गुरुमुखी विद्या है। इसमें गुरु शिष्य की कला को तराशते हैं। कला केंद्र में आज करीब 30 छात्र-छात्राएं सितार वादन सीख रहे हैं।
भागलपुर [रजनीश]। भागलपुर की भूमि कला-संस्कृति के क्षेत्र में उर्वर रही थी। यहां शास्त्रीय गायन, नृत्य और वाद्य-वादन के एक से बढ़कर एक कलाकार थे। कलांतर में पश्चिमी संगीत ने इसे प्रभावित किया। ऐसे में राय राकेश प्रवीर उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं जिन्होंने शास्त्रीय संगीत को फिर से मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया। राकेश ने तिलकामांझी विवि से डिप्लोमा इन म्यूजिक (सितार) से डिग्री ली। इसके बाद कोई सरकारी नौकरी न कर 2014 से शास्त्रीय संगीत की विद्या को जिंदा करने की ठान ली। छात्र-छात्राओं को निश्शुल्क सितार वादन और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दे रहे हैं।
प्रशिक्षित शिष्य अपनी विद्या का मनवा चुके हैं लोहा
राकेश कहते हैं कि सितार वादन गुरुमुखी विद्या है। इसमें गुरु शिष्य की कला को तराशते हैं। कला केंद्र में आज करीब 30 छात्र-छात्राएं सितार वादन सीख रहे हैं। यहां से निकलने छात्र असम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, दिल्ली और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।
पिता से मिली थी प्रेरणा
राकेश प्रवीर का कहना है कि उनके पिता स्व. कपिलदेव राय भी सितार वादक और शास्त्रीय संगीत के शिक्षक थे। कॉलेज जीवन में पढ़ाई के बाद प्रतिदिन शाम में दो से तीन घंटे पिताजी प्रशिक्षण देते थे। उन्हीं की प्रेरणा से आज वे सितार वादन का प्रशिक्षण दे रहे हैं।