Self-employment: नौकरी छोड़ घर पर शुरू किया मछली पालन, लाखों कमा रहे, लोगों को भी दे रहे रोजगार
आशुतोष कुमार कहते हैं कि वे दिल्ली में एक निजी कंपनी में लगभग 25 हजार महीना पर कंप्यूटर सहायक की नौकरी करते थे। वो नौकरी तो कर रहे थे लेकिन इसमें उन्हें अपना भविष्य उज्ज्वल नजर नहीं आ रहा था। दूसरा गांव छूट गया था।
सहरसा [पवनदेव सिंह]। रोजगार का विकल्प सिर्फ नौकरी नहीं है। यह स्वरोजगार भी हो सकता है। धबौली दक्षिणी पंचायत के वार्ड छह निवासी आशुतोष कुमार ने कंम्प्यूटर सहायक की नौकरी छोड़ खुद का न सिर्फ कारोबार शुरू किया है बल्कि अब वो दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। आशुतोष मत्स्य पालन की आधुनिक तकनीक के माध्यम से मछली पालन कर रहे हैं। वहीं दूसरों को भी प्रशिक्षण दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश में लिया मत्स्य पालन का प्रशिक्षण
आशुतोष कुमार कहते हैं कि वे दिल्ली में एक निजी कंपनी में लगभग 25 हजार महीना पर कंप्यूटर सहायक की नौकरी करते थे। वो नौकरी तो कर रहे थे लेकिन इसमें उन्हें अपना भविष्य उज्ज्वल नजर नहीं आ रहा था। दूसरा गांव छूट गया था। इसलिए उन्होंने नौकरी छोडऩे का फैसला कर अपना कारोबार शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने मध्यप्रदेश में मत्स्य पालन करने के लिए प्रशिक्षण लिया तथा अपने घर पर मत्स्य पालन करने के लगभग 15 लाख की लागत से 09 टैंक बनाया है। बायोफ्लाक तकनीक के माध्यम से उन्होंने अलग-अलग टैंक में 20 हजार मछलियों का पालन शुरू किया। वो इसमें देसी मछलियों का पालन कर रहे हैं। छह महीने सभी टैंक से एक साथ लगभग 09 ङ्क्षक्वटल मछली निकाला जाता है। उक्त योजना से छह महीने में लगभग 09 लाख रुपये से अधिक की मछली का उत्पादन होता है।
दूसरों को दे रहे हैं प्रशिक्षण
आशुतोष कुमार कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश युवा वेरोजगार हैं। उन्हें आर्थिक विकास के लिए मत्स्य पालन करने का मुफ्त प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि छोटी-छोटी यूनिट बनाकर मछली के कारोबार का विस्तार दिया जा सके। वो बताते हैं कि इस कार्य के लिए विभाग द्वारा उन्हें अब तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है।
क्या है बायोफ्लाक तकनीक
मछली की बढ़ती खपत को देखते हुए मत्स्य पालक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नयी तकनीक को अपना रहे हैं। इसके लिए कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन करने हेतु बायोफ्लॉक तकनीक अपना रहे है। बायोफ्लॉक तकनीक एक आधुनिक व वैज्ञानिक तरीका है। इसके माध्यम से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन करते हैं। खेत या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट टैंक में मछली पालन कर सकते हैं। तालाब और बायोफ्लॉक तकनीक में अंतर है कि तालाब में सघन मछली पालन नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डाली तो तालाब का अमोनिया बढ़ जाएगी तालाब गंदा हो जाएगा और मछलियां मर जाऐंगी। जबकि इस बायोफ्लॉक सिस्टम में आसानी से किया जा सकता है। इस तकनीक में फीड की काफी सेङ्क्षवग होती है। अगर तालाब में फीड की तीन बोरी खर्च होती है तो इस तकनीक में दो बोरी ही खर्च होती है।