जानिए... राजनीति और अर्थनीति को कैसे समझा रहे प्रो. परमानंद सिंह
हमें आज की राजनीति व अर्थनीति समझना होगा। राजनेताओं को मिलने वाली सुख सुविधाओं व सत्ता के प्रति आसक्ति व उसके छिनने से होने वाली बयानबाजी राजनीति के नए चरित्र को परिलक्षित करती है।
भागलपुर [जेएनएन]। दैनिक जागरण कार्यालय में अकादमिक बैठक हुई। इसमें 'राजनीति में बढ़ती बदजुबानी' विषय पर गांधी विचार विभाग के अध्यक्ष प्रो.परमानंद सिंह ने व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए लोक कल्याण से जुड़े सिंद्धातों की राजनीति आवश्यक है। राजनीतिक पार्टियों को सत्यनिष्ठा के साथ काम करना चाहिए। रचनात्मक पारदर्शिता से ही देश की राजनीति में सकारात्मक बदलाव संभव है। धरातल पर लोगों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिल पाएगा। जबकि सिद्धांतविहीन राजनीति आगे चलकर व्यक्ति पर केंद्रीत हो जाती है। नेता देश की जमीनी हकीकत से दूर हो जाते हैं। वे जनता और समाज के स्पंदन को समझ नहीं पाते। इसका प्रतिफलन राजनीति में बदजुबानी के रूप में सामने आता है।
प्रोफेसर सिंह ने कहा कि 43 करोड़ आबादी को लेकर भारत आजाद हुआ था। पर आज भी देश में इतनी आबादी गरीब है। इनकी प्रतिदिन की आमदनी एक डॉलर से भी कम है। अर्थव्यवस्था को आपूर्ति के बजाय मांग आधारित होना चाहिए। ताकि असमर्थ को सामथ्र्य, सामर्थ्य को सक्रिय और सक्रिय को विस्तार दिया जा सके। 'राजनीति' कल्याण के विस्तार का पथ है। वर्तमान में राजनीतिक पार्टियां लोक कल्याण को भूल कर सत्ता सुख भोगने की फिराक में है। इस क्रम में देश की भोली-भाली जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए झूठ और प्रपंच का सहारा लिया जा रहा है।
हमें आज की राजनीति और अर्थनीति दोनों को समझना होगा। राजनेताओं को मिलने वाली सुख सुविधाओं और सत्ता के प्रति आसक्ति और उसके छिनने से होने वाली बेचैन बयानबाजी राजनीति के नए चरित्र को परिलक्षित करती है। यह भारतीय राजनीति में मूल्यों की गिरावट व वर्तमान राजनीति के ऐश्वर्यपूर्ण करियर होने का स्पष्ट पहचान चिन्ह है। यहीं कारण है कि भारतीय राजनीति की वर्तमान दशा-दिशा पर से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है। इसके पूर्व समाचार संपादक संयम कुमार ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि राजनेताओं को मूल्यों की राजनीति करनी होगी। देश की स्वस्थ्य सोशल इंजीनियरिंग को समझना पड़ेगा। बदजुबानी और छल प्रपंच की राजनीति से देश का भला होने वाला नहीं है।