घर लौटने पर भी कम नहीं हो रही मुसीबत
घर लौटने पर भी प्रवासियों की परेशानी कम नहीं हो रही है। महिलाओं को काम के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।
भागलपुर। घर लौटने पर भी प्रवासियों की परेशानी कम नहीं हो रही है। महिलाओं को काम के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। पुरुषों को काम तो मिल रहा है, लेकिन मजदूरी आधी दी जा रही है।
कहलगांव के सदानंदपुर वैसा पंचायत के दो दर्जन परिवार झारखंड के बड़हरवा में ईट भट्ठे पर काम करते थे। एक हजार ईट बनाने के एवज में 480 रुपये मिलते थे। मालिक की तरफ से रहने-खाने की व्यवस्था की गई थी। लॉकडाउन के बाद ईट भट्ठा को बंद कर दिया गया। कुछ दिनों तक मालिक ने रखा, बाद में भोजन-पानी की व्यवस्था खुद करने को कह दिया। इसके बाद वहां से 50 की संख्या में वे लोग बच्चों के साथ पैदल ही घर के लिए चल पड़े। घर लौटने पर भदेश्वर पहाड़ क्वारंटाइन सेंटर में रख दिया गया। दस दिन भी पूरा नहीं हुआ कि क्वारंटाइन सेंटर खाली करने के लिए कहा दिया। घर में जो जमा-पूंजी थी वह खाने-पीने और इलाज में खत्म हो गया।
गुलशन की पत्नी मालती देवी गर्भवती है। घर लौटने पर वह बीमार पड़ गई। इलाज के लिए उसे अपने जेवर बेचने पड़े। पल्टू की पत्नी कारी देवी ने बताया कि घर लौटने पर सोचे थे कि काम मिल जाएगा, लेकिन लोग हमलोगों से काम नहीं कराना चाहते हैं। लोग कहते हैं कि बाहर से आए हो, अभी काम नहीं कराएंगे। कुछ ऐसी ही परेशानी से गब्बर की पत्नी पिंकी देवी, कृष्ण ऋषि की पत्नी ननकी देवी, कन्हाय की पत्नी सीता देवी, अजय ऋषि की पत्नी शांति देवी भी गुजर रही है। गुलशन ने बताया कि काम नहीं मिलने के कारण भरपेट भोजन भी नहीं मिल पा रहा है। मजदूरी के नाम पर दो से ढाई सौ रुपये मिलता है। इससे परिवार का गुजर बसर नहीं हो पा रहा है।