सुर साधना के लिए समर्पित है पूजा का जीवन, राष्ट्रीय स्तर पर मिली है पहचान Khagaria News
पूजा बचपन से ही गुनगुनाती रहती थीं। वे स्वर को तुरंत पकड़ लेती थीं और फिर उसे अपने कंठ में उतार लेती थीं। उनकी प्रतिभा को देख उनके माता-पिता ने उन्हें संगीत की ओर प्रेरित किया।
खगडिय़ा [जेएनएन]। खगडिय़ा जिले के परबत्ता के सुदूर गंगा किनारे स्थित कन्हैयाचक की बेटी पूजा आज देश के कोने-कोने में स्वर की सरिता बहा रही हैं। 22 वर्षीय पूजा दस वर्ष की उम्र से ही संगीत की साधना कर रही हैं। हिंदी, मैथिली और अंगिका गीतों में उन्हें महारथ हासिल है। अपनी बेहतर प्रस्तुति के बल पर वे कई संस्थाओं की ओर से पुरस्कृत की जा चुकी हैं।
पूजा बताती हैं कि वह बचपन से ही गुनगुनाती रहती थीं। वे स्वर को तुरंत पकड़ लेती थीं और फिर उसे अपने कंठ में उतार लेती थीं। उनकी इस प्रतिभा को देख उनके माता-पिता रुना देवी व पंकज चौधरी ने उन्हें संगीत की शिक्षा दिलाने को ठानी। डुमरिया बुजुर्ग गांव के प्रसिद्ध संगीतज्ञ रामावतार सिंह (अब स्वर्गीय) पूजा के संगीत गुरु बने। रामावतार सिंह के सानिध्य में इन्होंने शास्त्रीय और लोक गीत-संगीत की बारीकियां सीखीं। फलत: इन्होंने पारंपरिक और आधुनिक दोनों संगीत विद्याओं में महारथ हासिल की। फिर वह लगातार आगे बढ़ती चली गईं। वह संगीत से पीजी की डिग्री प्राप्त कर चुकी है। पूर्णिया व पटना से लेकर वह दिल्ली तक में अपने सुर साधना से श्रोताओं को मोहित कर चुकी हैं। जब वह 'उजरल घर मैया अहां बसाबे छी' से लेकर 'जब आंचल रात का लहराए' साधिकार गाती हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। वर्ष 2017 में उनकी शादी सिहमा, बेगूसराय के अमितेश सिंह से हुई। लेकिन इससे उनकी संगीत साधना पर कोई असर नहीं पड़ा है। वह बताती हैं कि पति अमितेश भी इन्हें गायन में प्रोत्साहित करते रहते हैं।
पूजा कहती हैं- संगीत साधना है। वह रोज नया सीखने का प्रयास करती हैं। इनके लिए श्रोताओं का स्नेह व संतुष्टि ही सबसे बड़ी पूंजी है।