हम चुप हुए तो सुनाई देने लगी कोयल की कूक
68 दिनों के लॉकडाउन में प्रकृति खुलकर सास ले रही है। इन चंद दिनों में चारों ओर हरियाली दिखने लगी। पशु-पक्षी स्वच्छंद होकर विचरण करने लगे।
भागलपुर। 68 दिनों के लॉकडाउन में प्रकृति खुलकर सास ले रही है। इन चंद दिनों में चारों ओर हरियाली दिखने लगी। पशु-पक्षी स्वच्छंद होकर विचरण करने लगे। आसमान साफ और नीला दिखने लगा। शहर प्रदूषण मुक्त हो गया। गंगा नदी का जल पारदर्शी हो गया। जल से दुर्गंध आना कम हो गया है। टर्बीडीटी अर्थात घोलापन कम हो गया है। मछुआरों की मानें तो गंगा नदी में अब कई ऐसी प्रजातियों की मछलियां दिखाई दे रही हैं, जो केवल नाम के रह गए थे जैसे कि रीठा, अखारी, बचवा, पत्थरचट्टा, कुरसा, भगन, रेवा आदि।
पक्षियों पर शोध कर रहे पीजी जंतु विज्ञान विभाग के प्राध्यापक प्रो. डीएन चौधरी के अनुसार पक्षियों का वर्तमान समय में प्रजनन का चल रहा है। सुबह होते ही उनकी आवाज अब स्पष्ट सुनाई देती हैं। बुलबुल, कोयल, धोबन, रोबिन महोखा, खरवा, कौआ, मैंनी आदि की बोलियों में मिठास है। प्रदूषण मुक्त वातावरण में उछल-कूद कर रही है, चहक रहीं हैं। ध्वनि व वायु प्रदूषण के अचानक कम हो जाने के कारण ही इनकी सुरीली और मीठी आवाज हमारे कानों तक आसानी से पहुंच रही है। ऑस्ट्रेलियन पक्षी मैगपाइ रोबिन इस बार यहीं रुक गई। कई साइबेरियन पक्षी भी अपने देश वापस नहीं गई।
प्रो. चौधरी ने बताया कि बरारी पुल घाट के पास कुछ दिन पूर्व चार पाच डॉल्फिन उछल-कूद करते दिख थे। हाल के वर्षो में डॉल्फिन इंजीनियरिंग कॉलेज के सामने या मुख्यधारा में ही दिखाई देते थे, लेकिन पुल घाट के पास अचानक डॉल्फिन का दिखना सचमुच एक शुभ संकेत है। घटता प्रदूषण, अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं होने के कारण डॉल्फिन दिख रहे हैं। प्रदूषण कम होने के कारण छोटी-छोटी मछलियों की उपस्थिति ने इन डॉल्फिनों को यहा तक खींच लाया। डॉल्फिन तथा पक्षियों को देखने के लिए पहले टापू पर कैंप लगाता था। गंगाजल में घोलापन अब पहले से कम और गंगाजल पहले से कुछ ज्यादा साफ-स्वच्छ लग रहा है।
मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा कहते हैं कि पशुओं की चहलकदमी, पक्षियों की चहचहाट, उनकी सुरीली तान, हमारे आंगन तथा बगिये में उनका पुन: दस्तक देना शुभ संकेत है। गंगा नदी में डॉल्फिन की अठखेलिया दिखने लगी हैं। प्रकृति अपने पुराने स्वरूप में लौट रही है।