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Pitru Paksha 2021 : दूसरे दिन तिल और सत्तू के तर्पण का विधान, प्रेत योनि से पूर्वजों को मिलेगी मुक्ति

Pitru Paksha 2021 पितृपक्ष के दूसरे दिन यानी प्रौष्ठप्रदी श्राद्ध का बड़ा महत्व है। कहते हैं इस दिन कर्मकांड करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। इसके लिए तिल और सत्तू का तर्पण विधि विधान के साथ करना चाहिए।

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Mon, 20 Sep 2021 09:36 PM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 06:55 AM (IST)
Pitru Paksha 2021 : दूसरे दिन तिल और सत्तू के तर्पण का विधान, प्रेत योनि से पूर्वजों को मिलेगी मुक्ति
Pitru Paksha 2021 : दूसरे दिन का महत्व।

 आनलाइन डेस्क, भागलपुर। Pitru Paksha 2021 के दूसरे दिन मंगलवार को प्रतिपदा श्राद्ध है। प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध या प्रौष्ठप्रदी श्राद्ध के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने वालों के धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है। वहीं, पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि पितृपक्ष के दूसरे दिन का महत्व है।

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दूसरे दिन तिल और सत्तू के तर्पण का विधान है। श्राद्ध कर्म के दौरान इसे सम्मलित करना चाहिए। तिल और सत्तू अर्पित करते हुए पूर्वजों से प्रार्थना करनी चाहिए। सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं। फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करें। 'ब्रह्मा से लेकर चिट्ठी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं।' ऐसा करने से कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है.

मुंगेर में श्राद्धकर्म-

मुंगेर के बेलन बाजार निवासी प्रेम कुमार कहते हैं, 'भले ही आज माता -पिता जी साथ में नहीं है, पर इनका आशीर्वाद पूरे परिवार पर सदैव बना है। पूरा परिवार आज जो कुछ भी है, इन्हीं दोनों के आशीष से हैं। माता-पिता का तर्पण करते हैं, तर्पण करने से आत्म संतुष्टि मिलती है। पितृ पक्ष में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं। माता-पिता बचपन से ही बड़े बुजुर्गो व गुरुजनों का सम्मान करने का सीख देते थे। इंसानियत की जिंदगी जीने का पाठ पढ़ाया करते थे, उनकी सीख को जीवन भर याद रखने का संकल्प ले रखा हूं, इससे जिंदगी की राह आसान हो गई है। 

डा हर्षवर्धन कहते हैं, 'मैं आज कुछ भी हूं वह अपने पिता के कारण हूं। पिता जी स्व. भगवान प्रसाद गोविंदा साथ में नहीं है। हर कठिन परेशानियों में उनके स्मरण मात्र से ही काम आसान हो जाता है। पिता जी को तर्पण कर श्रद्धांजलि देते हैं। पिता जी का जीवन सादगीपूर्ण भरा रहा । उनके विचार और कर्म बहुत ऊंचे थे। उनके यादों को ताजा कर आज भी हमारी आंखें भर जाती है। आज हम उनके लिए कुछ कर तो नहीं सकते लेकिन तर्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। उनके आदर्शो पर चलने का संकल्प लेते हैं। पूरे परिवार पर पिता जी का आशीर्वाद है। उनके बताए रास्ते पर चल रहे हैं, कहीं फंसते हैं पिता जी को याद कर लेते हैं। यह कहना है पुत्र डा. हर्षवर्धन का।


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