जो चीज मंहगी हो, उसका त्याग कर दो या उसका प्रयोग कम कर दो... Bhagalpur News
ऐसे व्यक्तियों को धंधा इसलिए मंदा लग रहा है क्योंकि पहले की तरह कमाई नहीं हो रही है और पांचवां मकान खरीदने की जगह चौथा बेचना पड़ रहा है।
भागलपुर [दिनकर चंद्र झा]। प्याज का दाम सुनकर सड़क पर एक लड़की चक्कर खाकर गिर पड़ी। भीड़ इकट्ठी हो गई। एक ताऊ भी देखने लगे और चिल्लाये- कोई नींबू-सोडा लाओ रे...। एक लड़का भागकर 100 रुपये खर्च करके नींबू-सोडा ले आया। ताऊ नींबू-सोडा खुद ही पी गए और बोले-अब ठीक लग रहा है...मुझसे ऐसे हादसे देखे नहीं जाते। नागरिक ने भागलपुर को आंखों-देखी सुनाई तो वह भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सका।
नागरिक ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि जानते हो गांधी जी ने क्या कहा था? वे कहते थे- जो चीज मंहगी हो, उसका त्याग कर दो या उसका प्रयोग कम कर दो...मुनाफाखोर अपने आप ठीक हो जाएंगे। मतलब ...नहीं रहेगा बांस और नहीं बजेगी बांसुरी।
भागलपुर ने कहा कि यह तो ठीक है लेकिन देश की अर्थव्यवस्था में काफी उठापठक है भाई। बाढ़ और बारिश ने तो व्यापारियों को परेशान कर दिया है। दुर्गापूजा सिर पर है। बाजार में रौनक नहीं है। लोग कह रहे हैं कि मंदी है। महंगाई दर बढ़ गई है। मेरे तो आजतक यह शब्द पल्ले ही नहीं पड़ा है।
नागरिक अभी भी चुहल के मूड में था। आदतन उसने मोबाइल निकाली और लगा सुनाने...। नागरिक ने कहा- अर्थशास्त्र उतना भी कठिन नहीं है यदि सही उदाहरण देकर समझाया जाए....। देखो सोशल साइट्स पर इस पर भी ज्ञान है। ज्ञानी कह रहे हैं- एक व्यापारी से मेरी बात हो रही थी । वह कह रहा था कि धंधा मंदा है, लगता है मकान बेचना पड़ेगा। मैने बोला अरे कोई बात नहीं मकान फिर खरीद लेना। बोला यह बात नहीं है, मकान तो मेरे पास चार हैं लेकिन रेट सही नहीं मिल रहे हैं। उसे व्यापार में आए कुल 15 साल हुए थे और चार मकान बना लिए।
ऐसे व्यक्तियों को धंधा इसलिए मंदा लग रहा है क्योंकि पहले की तरह कमाई नहीं हो रही है और पांचवां मकान खरीदने की जगह चौथा बेचना पड़ रहा है। जब हम कार स्टार्ट करते हैं तो शून्य से 60 किमी की स्पीड में पहुंचने में सिर्फ कुछ सेकेंड लगते हैं क्योंकि हम इंजन की पूरी ताकत इस्तेमाल कर लेते हैं। लेकिन उसके बाद हम एक ही स्पीड पर चलते रहते हैं, जिसे अज्ञानी मंदी कह सकते हैं, क्योंकि फिर और स्पीड नहीं बढ़ती है। ज्ञानी आगे लिखते हैं कि जब नई परिस्थितियां पैदा होतीं हैं तो अर्थव्यवस्था में पहले तेजी आती है। जब तेजी आती है तो उस से हर व्यक्ति फायदा उठाने के चक्कर में योग्य न होने पर भी उस में घुस जाता है। भीड़ बढऩे पर उसमें अराजकता पैदा होने लगती है और फिर सरकार उसको नियंत्रित करने के लिए नियम लाती है जिसके बाद भीड़ वहां से छंटने लगती है, उसका आकर्षण कम होने लगता है और लोग उसे मंदी का नाम दे देते हैं। शेयर मार्केट की तेजी मंदी, रियल इस्टेट की तेजी मंदी इसका उदाहरण है।
...और अंत में
सोशल साइट्स पर व्यवस्था के एक अंधभक्त लिखते हैं-मंदी कुछ भी नहीं है। यह आम जनता का बदला है व्यापारियों और सरकार से। जो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को एक ही बार में मार के खाना चाहते हैं। गीता में कहा गया है : संशयात्मा विनश्यति। अर्थात जो दुविधा में रहता है वह नष्ट हो जाता है।