साहब को मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं ...
मैं तो रस्ते से जा रहा था, तुमको मिर्ची लगी.... सच पूछिए तो यह गीत दो साहबों के बीच चल रहा है। आजकल तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स गा रही हैं, जिन पर चल रहा है शहर स्मार्ट कब बनेगा।
भागलपुर [संजय कुमार]। गोविंदा की फिल्म कुली नंबर एक का गीत आपको याद होगा- मैं तो रस्ते से जा रहा था, मैं तो भेलपूड़ी खा रहा था, तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं.... सच पूछिए तो यह गीत दो साहबों के बीच चल रहा है। आजकल तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स गा रही हैं, जिन पर चल रहा है शहर स्मार्ट कब बनेगा। जवाब कहीं से नहीं मिल रहा है। एक साहब कुछ करते हैं तो दूसरे साहब को मिर्ची लग जाती है। छोटे साहब कहते हैं तूझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं।
कुछ दिन पहले की ही बात है सरकार की तरफ से प्रधान टाइप के बड़े साहब शहर में आए। उन्होंने शहर में विकास करने की घोषणाओं की झड़ी लगा दी। माहौल इस कदर बना। बस कुछ दिन में शहर चकाचक हो जाएगा। जगह-जगह कूड़े ढ़ेर समाप्त हो जाएंगे। साहब गए और उनकी घोषणाएं भी साथ चली गई। प्रधान टाइप साहब के जाने के बाद छोटे वाले साहब ने फाइलों को हिलाया डुलाया। फाइलों को हिलते देख बड़के साहब फिर भड़क गए। इतना भड़क गए की छोटे साहब सारी फाइलें खंगाल डाली। मामला कुछ बना नहीं तो शांत हो गए। फिर छोटके साहब थोड़े सक्रिय हुए और शहर को सुंदर बनाने की सोचने लगे। कुछ बड़ी कंपनी वालों को बुला लिया ताकि कुछ शहर में हो सके। बड़े साहब फिर नाराज हो गए। उन्होंने तत्काल एक बैठक बुला ली। छोटे साहब के सभी फैसले को एक सिरे से नकार दिया।
खैर, बड़के साहब ने एक भला काम जरूर किया। बैठक के दौरान कुछ लोगों को नौकरी दे दी। साहब ने नौकरी में आधी आबादी का पूरा ख्याल रखा। वैसे बड़के साहब की आधी आबादी पर मेहरबानी पहले से रही है। छोटे साहब की सारी कवायद पर बड़के साहब ने पानी फेर दिया। छोटे साहब के पास सिर खुजाने के अलावा कोई चारा नहीं था। वैसे भी सिर पर बाल नहीं है। रहते तो बाल खुजाते। बड़के साहब की मीटिंग समाप्त होने के दो दिन बाद छोटे साहब शहर से निकल लिए। शायद कुछ तनाव कम हो जाए।
पता नहीं कहां से खोज लाएं मैडम को
आधी आबादी को मतदान के लिए जागरूक करने के लिए जिले का बोझ उठाने वाले साहब पता नहीं कहां से ऑइकान खोज लाएं। शायद साहब को आशंका होगी इस शहर की महिलाएं मतदान के लिए जागरूक नहीं है। पर साहब को क्या पता इस शहर में हाल के दिनों में आधी आबादी ही नेता बनने की होड़ में है। बिना जागरूक हुए कोई नेता बन सकता है भला। पर साहब को कौन समझाए। साहब जिन्हें शहर में लेकर आने की तैयारी में है उन्हें ही इस शहर में अभी पहचान की जरूरत है। क्योंकि ऑइकान मैडम का कार्यक्षेत्र तो दूसरे जिले में रहा। उसी जिले के लोग मैडम को पहचानते हैं।
मैडम ने सिर पर ताज पहनकर भले ही देश का नाम रोशन किया हो। पर ये शहर सिर पर ताज वाली मैडम को सेलीब्रेटी माने तब ना। फिर साहब को अपने फैसले पर मिर्ची लगेगी। तब सब कहेंगे आपको मिर्ची लगी तो हम क्या करें।