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Pashupati Kumar Paras: शहरबन्नी से संघर्ष करते हुए पारस पहुंचे दिल्ली, जानिए... उनका राजनीति सफर

Pashupati Kumar Paras कोसी कालेज खगडिय़ा पारस की पहली राजनीतिक पाठशाला। बड़े भाई रामविलास पासवान की छत्रछाया में शुरू की राजनीति। हाल में लोजपा में मचे घमासान के बाद पशुपति और चिराग एक-दूसरे पर राजनीतिक रूप से हमलावर हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Thu, 08 Jul 2021 08:47 AM (IST)Updated: Thu, 08 Jul 2021 08:47 AM (IST)
Pashupati Kumar Paras: शहरबन्नी से संघर्ष करते हुए पारस पहुंचे दिल्ली, जानिए... उनका राजनीति सफर
पशुपति नाथ पारस को केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनाया मंत्री।

जागरण संवाददाता, खगडिय़ा। हाजीपुर सांसद पशुपति कुमार पारस का राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा है। स्व. रामविलास पासवान के अनुज पशुपति कुमार पारस के शहरबन्नी से दिल्ली तक के सफर में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। हाल में लोजपा में मचे घमासान के बाद चाचा-भतीजा (पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान) एक-दूसरे पर राजनीतिक रूप से हमलावर हैं। शहरबन्नी पशुपति कुमार पारस का पैतृक गांव है।

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खगडिय़ा जिले के शहरबन्नी से निकलकर देश के पटल पर छा जाने वाले पारस का बचपन गरीबी में बीता। पारस के माता-पिता (जामुन दास-सिया देवी) विशुद्ध ग्रामीण परिवेश के लोग थे। पारस के बड़े भाई रामविलास पासवान की आंखों में कई सपने थे। इस सपने के साझीदार उनके अनुज पारस और रामचंद्र पासवान भी बने। आज रामविलास पासवान और रामचंद्र पासवान इस दुनिया में नहीं हैं।

बुधवार से पारस राजनीति की नई पारी की शुरुआत कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान मिला हैं। इसको लेकर शहरबन्नी (पारस के पैतृक गांव) और परमानंदपुर (पारस की ससुराल) में खुशी है। पशुपति कुमार पारस की पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई शहरबन्नी प्राथमिक विद्यालय में हुई। आगे की पढ़ाई मेघौना मध्य विद्यालय और जगमोहरा उच्च विद्यालय में हुई। जगमोहरा से वे जेएनकेटी इंटर विद्यालय खगडिय़ा, (उस समय पीडब्ल्यू हाई स्कूल के नाम से प्रसिद्ध) में पढऩे चले आए। हायर सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोसी कालेज खगडिय़ा से स्नातक किया। कोसी कालेज उनकी राजनीति की प्रथम पाठशाला है।

1977 में जनता पार्टी से पहली बार पशुपति कुमार पारस ने अलौली विधानसभा का चुनाव जीता। उन्होंने दिग्गज कांग्रेसी मिश्री सदा को तीन हजार 607 मतों से हराया था। 1980 में उन्हें कांग्रेस के मिश्री सदा से हार का मुंह देखना पड़ा। 1985 से 2005 तक लगातार छह बार उन्होंने अलौली विधान सभा का प्रतिनिधित्व किया। 1985 में उन्होंने एलकेडी उम्मीदवार के रूप में अलौली विधान सभा से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के वाजेश्वर पासवान को 21699 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की। वहीं 1995 में 21699 मतों से मिश्री सदा को व 2000 में रामवृक्ष सदा को 4686 मतों से हराया। 2005 में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर वे अलौली विधानसभा से चुनाव लड़े। उन्होंने राजद की मीरा देवी को 9711 मतों से हराया। 2005 में उन्होंने दो बार विस चुनाव जीता था। वहीं 2010 और 2015 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2019 में राम विलास पासवान ने अपनी सीट हाजीपुर से उन्‍हें लोकसभा प्रत्‍याशी बनाया। वे चुनाव जीत गए।


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