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कभी बांका का स्वर्ग रहा नवलखा, अब नरक सा हाल, जानिए वजह

बदुआ नदी को बांध कर बना बदुआ यानी हनुमना डैम की नैसर्गिक सुंदरता अब भी अद्वितीय है। सत्तर से नब्बे के दशक तक इसे बांका के स्वर्ग की उपाधि मिल गई। खुद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह की सियासत का यह केंद्र बना।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 12:37 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 12:37 PM (IST)
कभी बांका का स्वर्ग रहा नवलखा, अब नरक सा हाल, जानिए वजह
स्वर्ण चंपा का बाग खंडहर में फैला रही खुशबू

बांका [ राहुल कुमार] । सत्तर के दशक में बदुआ नदी को बांध कर बना बदुआ यानी हनुमना डैम की नैसर्गिक सुंदरता अब भी अद्वितीय है। सत्तर से नब्बे के दशक तक इसे बांका के स्वर्ग की उपाधि मिल गई। खुद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह की सियासत का यह केंद्र बना। मुख्यमंत्री कार्यकाल सहित उनकी राजनीतिक पारी के दौरान तक यह स्वर्ग बना भी रहा। भागलपुर प्रमंडल ही नहीं राज्य स्तरीय कई प्रशासनिक और राजनीतिक बैठकें डैम के ऊपर बने नवलखा कोठी में हुई। मगर 1990 के बाद ही यह अपराधियों की शरणस्थली बन गई। सात जुलाई 1997 की शाम सात बजे की एक घटना ने तो इसके स्वर्ग बने रहने के सारे रास्ते ही बंद कर दिया। डैम के स्पील-वे में विधायक पुत्र सहित 10 को हाथ पैर बांध फेंक दिया गया। इसमें सात की डूबकर मौत हो गई। सभी डैम घूमने आए थे। इसके बाद लोग इसका रास्ता ही भूल गए। नवलखा कोठी की नैसर्गिक सुंदरता अब दो दशक बाद नरक में तब्दील हो गई है। 1965 में नौ लाख रूपया से बना आलीशान बंगला की खुबसूरती देख अब भी लोग चकित रह जाते हैं।

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नवलखा का दर्द टेटू पंडित की जुबानी

नवलखा कोठी के लॉन में खड़ा स्वर्ण चंपा का बाग अब भी इसके गौरवशाली अतित का बखान कर रहा है। डैम के आसपास रहने वाले टेटू पंडित कहते हैं कि साहब वन भी दिन था। नवलखा में फूलों की खुशबू लेने दूर-दूर से बड़े साहब आते थे। मजाल है कि ङ्क्षसचाई विभाग की कोठी में एक दाग-धब्बा या गंदगी मिल जाता। स्वर्ग से कम नहीं था। कई लोग आसपास की खुशबू बेचकर परिवार चला लेते थे। 20 साल तक इसमें कोई पर्यटक कौन पूछे, पुलिस भी आने से कतराती रही। लोग नवलखा कोठी की एक-एक खिड़की दरवाजा तक उखाड़ ले गए। टेटू को अब भी आने वालों से आस है। वह इसी खंडहर के जंगली फूलों का गुलदस्ता लेकर आने वालों के स्वागत को खड़ा है।

निर्जन बन गया बदुआ डैम

सात जुलाई 97 की घटना में मौत के मुंह से बच निकले तीन लोगों में एक धौरी-राजपुर निवासी मृगेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि उनकी घटना के बाद बदुआ डैम निर्जन बन गया। कुछ आपराधिक तत्वों ने बदुआ पर कलंक लगाया। अब समय-काल सब बदल गया है। इतनी सुंदर जगह बिहार में शायद ही कहीं हो। प्रशासन ने भी इसे लगातार नजरअंदाज कर दिया है। सुरक्षा के साथ थोड़ी-बहुत खर्च कर इसका दिन लौटाया जा सकता है।  


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