NTPC Kahalgaon : प्रदूषणमुक्त ऊर्जा विकल्पों पर विचार हो, बिजलीघर के राख प्रबंधन और निपटान पर हुई चर्चा
NTPC Kahalgaon बिजलीघर के राख प्रबंधन और निपटान पर कहलगांव में परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में ऑफलाइन और ऑनलाइन अच्छी संख्या में लोग जुड़े। इस अवसर पर बिजली उत्पाद पर भी चर्चा हुई। इस दौरान कई सुझाव भी आए।
जागरण संवाददाता, भागलपुर। एनटीपीसी से उत्सर्जित राख निपटान एवं रखरखाव के अभाव में पर्यावरण के लिए गंभीर स्थिति पर रविवार को परिचर्चा का आयोजन किया गया। एसएसवी कॉलेज के निकट स्थित कर्मभूमि कोचिंग सेंटर में इसका आयोजन नागरिक संघर्ष मोर्चा एवं गंगा मुक्ति आंदोलन के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। परिचर्चा में ऑफलाइन और ऑनलाइन अच्छी संख्या में लोग जुड़े। विषय प्रवेश कराते हुए डॉ. पवन कुमार सिंह ने कराया।
उन्होंने कहा कि बिजलीघर की उत्सॢजत राख के निपटान और रखरखाव की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए नकारात्मक एवं सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा करते हुए परिचर्चा आरंभ की। गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े कैलाश साहनी ने कहा कि कहलगांव बिजलीघर के चालू होने के बाद कभी कभी कोआ नदी के माध्यम से तैलीय पदार्थ गंगा में आता है, जिससे गंगा में मछलियों की कमी हो गई है। गौतम मल्लाह ने कहा कि राख के कारण इस इलाके में दलहन उत्पादन में कमी आई है। अब एनटीपीसी को प्रदूषणमुक्त ऊर्जा विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए। पर्यावरण पर शोधकर्ता नीरज कुमार के अनुसार राख के प्रभाव से आम की फसल छोटी हो गई है। होम्योपैथ चिकित्सक डॉ. विप्लव कुमार चौधरी ने कहा कि स्थानीय लोगों की कलह की वजह से एनटीपीसी के विरोध में उठे स्वर दब जाते हैं। यहां अब कुकुरखांसी, न्यूमोनिया अस्थमा जैसे रोगों के मरीज बढ़े हैं। भोलसर ग्रामपंचायत के पैक्स अध्यक्ष धनजंय यादव ने बताया कि हमारे गांव में भोजन बनाना, कपड़े सुखाना आदि का संकट उत्पन्न हो गया है। भोजन में भी राख और धुले कपड़ों पर भी राख जम जाती है। कर्मभूमि कोचिंग के संचालक रवि कुमार ने कहा कि औद्योगिक विकास बेशक हो लेकिन पर्यावरण के मूल्यों पर नहीं। अर्थशास्त्र के प्राध्यापक डॉ. नमन कुमार ने कहा कि कहलगांव वायु प्रदूषण के भयावह संकट से जूझ रहा है। गूगल पर सुबह सुबह एयर इंडेक्स भयावह दिखता है।
वहीं, आशुतोष ने कहा कि कोयला आधारित बिजलीघरों को प्रदूषण के कारण बंद करना जरूरी है, लेकिन इनकी कीमत पर परमाणु बिजलीघर भी बेतहाशा न बनें। ऐश पौंड की राख का सड़क निर्माण, नहरों के तटबंध, कोयला के खाली खदानों को भरने में उपयोग इत्यादि कर ऐश पौंड में अत्यधिक राख जमा करने से बचा जा सकता है। इस परिचर्चा को अमित चमडिय़ा ने भी संबोधित किया।