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जाड़ा और बंसत में फलने वाला 'अमरूद' बाजार में सेब को देगा टक्कर

चूंकि अब अमरूद का फलन वर्ष में तीन बार होता है। इस बावत किसान अपनी आय दोगुनी करने की सोच से इसका उत्पादन बाजार की मांग पर ले सकते हैं। इसके लिए तैयारी की जा रही है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 10:37 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 08:50 AM (IST)
जाड़ा और बंसत में फलने वाला 'अमरूद' बाजार में सेब को देगा टक्कर
जाड़ा और बंसत में फलने वाला 'अमरूद' बाजार में सेब को देगा टक्कर

भागलपुर (अमरेन्द्र कुमार तिवारी)। वर्ष में तीन बार फलन देना वाला अमरूद किसानों के आर्थिक विकास का नया द्वार खोलेगा। इसकी सघन बागवानी और बाजार मांग के अनुरूप उत्पादन करने से किसान मालामाल होंगे।

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जाड़ा एवं बसंत ऋतु में फलने वाला अमरूद इतना गुणवत्तापूर्ण होता है कि लोग सेव से ज्यादा अमरूद को खाना पसंद करने लगते हैं। बाजार में इसका मूल्य भी सेब को टक्कर देने लगता है।

अमरूद की सघन बागवानी से दोगुनी होगी आय

अमरूद की सघन बागवानी अब जिले के किसानों की किस्मत बदलेगी। परंपरागत खेती को छोड़ अब किसान इसकी सघन बागवानी कर दोगुनी उत्पादन प्राप्त करेंगे जो उनके आर्थिक समृद्धि का नया द्वार खोलेगा।

केवीके की वैज्ञानिक बागवानों को कर रही जागरूक

कृषि विज्ञान केंद्र सबौर की उद्यान वैज्ञानिक डॉ. ममता कुमारी किसानों को अमरूद की सघन बागवानी के लिए जागरूक करने में बीते पांच वर्षो से लगी है। केंद्र के प्रायोगिक प्रक्षेत्र में लगे अमरूद के सघन बागों को दिखा उन्हें प्रायोगिक के साथ-साथ तकनीकी पहलुओं की जानकारी प्रखंड बार दे रहीं हैं। उद्यान वैज्ञानिक ने बताया कि अब तक 4000 किसानों को इस तकनीकी से अवगत कराया जा चुका है।

पड़ोसी जिले के बागवान भी सीख रहे हैं तकनीक

उन्होंने कहा कि केंद्र से फलों का पौध खरीदने आ रहे राज्य के अन्य जिले मधेपुरा, कटिहार, पूर्णिया एवं बांका के किसानों को भी सघन बागवानी की जानकारी दी जा रही है।

बागों का करें प्रबंधन

उद्यान वैज्ञानिक डॉ. ममता बागवानों को बागों के प्रबंधन की भी जानकारी दे रहीं हैं। उन्होंने बागवानों से प्रबंधन के संबंध में कहा है कि अमरूद में नए फल कल्लों में निकलते हैं। इसके लिए पौध में नए कल्लों को सृजित करना आवश्यक होता है। इसके लिए मुख्य रूप से अमरूद में तीन बार कटाई छटाई की जाती है। प्रथम कटाई बाग स्थापना के चार-पांच माह बाद अक्टूबर में की जाती है। उपर से तीन-चार शखाओं को चुन कर उसे 50 फीसद तक काट दी जाती है। शाखा के कटे भाग पर तुतिया अवश्य लगानी चाहिए एवं पौधों की सिंचाई उर्वरक प्रबंधन के साथ अनिवार्य रूप से करनी चाहिए। पुन दूसरी कटाई फरवरी में एवं तीसरी कटाई मई-जून में होना चाहिए। दो वर्षो तक कटाई-छटाई कर पौधों की संरचना का विकास किया जाता है। इसके उपरांत तीसरे वर्ष से उत्पादन शुरू हो जाता है।

एक वर्ष में तीन बार फलन

उद्यानी फसलों में अमरूद एक ऐसा फल है जिसका फलन वर्ष में तीन बार होता है। बरसात, जाड़ा और बसंत। हालांकि बरसात के मौसम में फलने वाले अमरूद की गुणवत्ता थोड़ी कम होती है। उसमें जाड़े के फल से आधी मात्रा में विटामीन सी पाया जाता है। बाजार में इसकी कीमत भी कम मिलती है।

गरीबों का सेब है अमरूद

अमरूद गरीबों के लिए सेब के समान है। इस पौध को गांव-घर में लगाकर किसान इसका खूब सेवन करते हैं। यह स्वास्थ्यवद्र्धक भी है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामीन सी के अलावा अन्य पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं।

सहज प्रबंधन, दोगुनी उत्पादन

अमरूद की सघन बागवानी में फलों का उत्पादन दोगुनी होती है। इसका प्रबंधन भी सहज है। यह वैज्ञानिक तरीका किसानों की आय दोगुनी करने वाली है। पुराने तरीके से खेती करने पर उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर होता है। जबकि सघन बागवानी में इसका उत्पादन 30 से 50 टन प्रति हेक्टेयर तक होता है। इसमें पौध छोटे होते हैं और प्रबंधन में आसानी होती है। बीमारी की संभावना भी इस विधि में कम होती है और गुणवत्तापूर्ण फल प्राप्त होते है। सघन बागवानी करने से तीसरे वर्ष में यह परंपरागत की तुलना में दोगुना फल देने लगता है।

पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं विटामीन

अमरूद में विटामिन सी की मात्रा अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसमें विटामिन ए और बी की भी मात्रा होती है। इस फल में लोहा, चूना एवं फास्फोरस की भी अच्छी मात्रा पाई जाती है।

मूल्य संवर्धन में भी खास

इस फल का मूल्य संवर्धन जैम, जैली एवं टॉफी के रूप में किया जा सकता है। अधिक सहिष्णु होने के कारण सफल खेती अनेक प्रकार की मिट्टी और जलवायु में की जा सकती है। इसके लिए गर्म एवं शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त है। यह गर्मी और पाला दोनों को बर्दाश्त कर सकता है।

बाजार की मांग पर ले उत्पादन

चूंकि इसका फलन वर्ष में तीन बार होता है। इस बावत किसान अपनी आय दोगुनी करने की सोच से इसका उत्पादन बाजार की मांग पर ले सकते हैं। अमरूद के फल का बेहतर बाजार मूल्य जाड़ा और बसंत के मौसम में मिलता है। बरसात में जहां इसकी प्रति किलो कीमत 20 से 30 रुपए होती है वहीं जाड़ा और बसंत में इसका बाजार भाव काफी तेज हो जाता है। यूं कहे कि यह कश्मीर के सेब को भी टक्कर देने की स्थिति में होती है।

बीएयू के कुलपति डॉ. अजय कुमार सिंह ने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक विकसित तकनीकी को किसानों तक पहुंचाने में लगे हैं। अमरूद की सघन बागवानी भी किसानों की आर्थिक उन्नति का नया द्वारा खोलेगा। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए विवि प्रतिबद्ध है।


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