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अब बंजर भूमि पर भी लहलहाएगी फसल, बीएयू ने किया तरल जैव उर्वरक रिलीज

BAU लाभकारी बैक्टीरिया से निर्मित तरल जैव उर्वरक है। इसका उपयोग एक वर्ष तक किया जा सकता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है। इको फ्रेंडली है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 01:34 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 01:34 PM (IST)
अब बंजर भूमि पर भी लहलहाएगी फसल, बीएयू ने किया तरल जैव उर्वरक रिलीज
अब बंजर भूमि पर भी लहलहाएगी फसल, बीएयू ने किया तरल जैव उर्वरक रिलीज

भागलपुर [ललन तिवारी]। किसानों के लिए अच्छी खबर है। सबौर राइजो, सबौर फास्फोबैक्टिन, सबौर नाइट्रोफिक्स और संयुक्त नाइट्रोफिक्स तरल जैव उर्वरक से बंजर भूमि में फसल लहलहाएगी। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के विज्ञानी ने बिहार में पहली बार जैव उर्वरक विकसित किया है। बीएयू ने प्रायोगिक सफलता के बाद इसे किसानों के लिए रिलीज कर दिया है। इसका उपयोग कर किसान वायुमंडल में बेकार पड़े नाइट्रोजन और मिट्टी में मृत हो चुके फास्फोरस को जीवंत कर फसल का उत्पादन कर सकेंगे। जल्द ही विवि किसी कंपनी से एमओयू कर बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की तैयारी कर रहा है। सरकार से हरी झंडी मिलते ही उत्पादन आरंभ कर दिया जाएगा। भागलपुर जिले में 68 हजार हेक्टेयर भूमि असिंचित है। यदि सब कुछ ठीकठाक रहा तो असिंचित भूमि पर भी फसल उगेगी।

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क्या है तरल जैव उर्वरक

विज्ञानी डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया कि लाभकारी बैक्टीरिया से निर्मित तरल जैव उर्वरक है। इसका उपयोग एक वर्ष तक किया जा सकता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है। इको फ्रेंडली है। बीज की बोआई करने के पहले पांच एमएल प्रति किलो मिलाना है। मिट्टी में भी इसे वर्मी कंपोस्ट के साथ मिलाकर पांच से सात सौ एमएल प्रति हेक्टेयर डालने से बंजर भूमि भी जीवंत हो उठेगी।

तरल जैव उर्वरक बंजर भूमि को नया जीवन देगा। वहां खेती हो सकेगी। बहुत जल्द किसानों को यह उपलब्ध कराया जाएगा। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति बीएयू सबौर

बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर 

बिहार कृषि विश्वविद्यालय किसानों और पशुपालकों को लिए विभिन्न प्रयोग करती है। नवीन वैज्ञानिक शोध पर आधारित इस प्रयोग से कम लागत में उच्छी उपज होती है। किसानों और पशुपालकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कारण एेसे लोग उन्नत तकनीक से पैदावार और पशुपालन करते हैं। भागलपुर सहित अासपास के कई जिलों के किसान और पशुपालन यहां आते हैं। यहां किसान और पशु मेला भी लगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिक लगातार शोध करते हैं। 


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