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आजादी के मतवालों का एक ऐसा गांव... लेकिन दुर्भाग्य यहां एक भी स्नातक नहीं

बांका में शिक्षा जंगल और पहाड़ से घिरे बांका के इस आदिवासी गांव की कहानी। जहां हुए कई क्रांतिकारी। लेकनि इस गांव में अबतक मैट्रिक पास पांच तथा इंटर पास दो ही लोग हुए है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 02:38 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 02:38 PM (IST)
आजादी के मतवालों का एक ऐसा गांव... लेकिन दुर्भाग्य यहां एक भी स्नातक नहीं
आजादी के मतवालों का एक ऐसा गांव... लेकिन दुर्भाग्य यहां एक भी स्नातक नहीं

बांका [दिलीप कुमार सिंह 'ललन']। देश को आजादी दिलाने में अग्रणी रहने वाला बांका जिले के फुल्लीडूमर प्रखंड का कुर्थीबारी गांव आजादी के सात दशक बाद भी शिक्षा की रोशनी से अछूता बना हुआ है। इस गांव में एक भी स्नातक पास व्यक्ति नहीं है। मैट्रिक और इंटर पास युवा भी अंगुली पर गिने चुने ही हैं। इस गांव में अबतक मैट्रिक पास पांच तथा इंटर पास दो ही लोग हुए है। अब जाकर एक युवक संजय हांसदा किसी रिश्तेदार के यहां बाहर रहकर स्नातक में प्रवेश पा सका है। गांव चारों ओर से जंगल और पहाड़ों से घिरा है। इस आदिवासी आबादी बहुल गांव में करीब 60 परिवारों की कुल आबादी 500 के आसपास है। आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देने वाले अमर सेनानी महेंद्र गोप की कर्म स्थली यही गांव रही है। उनके कारनामों से ब्रिटिश संसद तक तक थर्रा उठा था। वहां के राजनेता पूछने लगे थे कि यह महेंद्र गोप कौन है.। अंतत: अंग्रेजों ने उस जांबाज को फांसी दे दी थी। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में आगे रहने वाले उस गांव में अबतक शिक्षा की किरण नहीं पहुंच पाई है। इसके कारण इस गांव से कई अन्य समस्याएं भी हैं।

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बुनियादी सुविधा को भी तरस रही आबादी

इस गांव में सिर्फ नवसृजित प्राथमिक विद्यालय ही है। मध्य विद्यालय गांव से चार किलोमीटर दूर नरकट्टा में है। दो उच्च विद्यालय गांव से 15 व 14 किमी दूर समुखिया मोड़ व फुल्लीडूमर में हैं। अभिभावक बच्चों को उतनी दूर भेजना नहीं चाहते हैं। फलत: उनकी पढ़ाई वहीं रुक जाती है।

क्या कहते हैं ग्रामीण

ब्रह्मदेव मुर्मू कहते हैं कि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पढ़े लिखें। लेकिन गरीबी के कारण वे पेट भरने में ही व्यस्त रहते हैं। रंजीत हेम्ब्रम ने बताया कि ढाई से तीन किलोमीटर जंगल एवं पहाड़ पार कर दूर पढऩे जाना बच्चों के लिए संभव नहीं है। कोई नेता भी इस गांव की सुध नहीं लेते हैं। हीरालाल हेम्ब्रम बताते हैं कि उनके पुरखों ने महेंद्र गोप, श्रीधर सिंह, परशुराम सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर आजादी की लड़ाई में योगदान दिया है। उम्मीद थी कि आजादी के बाद उनका गांव आगे बढ़ेगा। लेकिन महान क्रांतिकारी के गांव की हालत यह है कि यहां के बच्चे पढ़-लिख भी नहीं पा रहे हैं।

गांव पहाड़ी इलाके में है। कुछ परेशानियां हैं। वह वहां की समस्या के समाधान में लगी हैं। बच्चों को आंगनबाड़ी का लाभ दिलाने, नलजल से पेयजल उपलब्ध कराने का प्रयास हो रहा है। पंचायत में हाईस्कूल भी अगले महीने से शुरू होना है। - निभा कुमारी, मुखिया, सादपुर, फुल्लीडुमर


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