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घर सजे मंजूषा से : निर्मला ने खड़ी कर दी मंजूषा कलाकारों की फौज

निर्मला देवी का जन्म चंपानगर और शादी मोहद्दीनगर में हुई। पति के बीमार पडऩे के बाद इनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई। लिहाजा उन्होंने मंजूषा कला को जीवनयापन का साधन बना लिया।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 18 Feb 2020 10:31 AM (IST)Updated: Tue, 18 Feb 2020 10:31 AM (IST)
घर सजे मंजूषा से : निर्मला ने खड़ी कर दी मंजूषा कलाकारों की फौज
घर सजे मंजूषा से : निर्मला ने खड़ी कर दी मंजूषा कलाकारों की फौज

भागलपुर [जितेंद्र कुमार]। अंग महाजनपद की लोककला मंजूषा पेंटिंग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मोहद्दीनगर की निर्मला देवी ने काफी संघर्ष किया। कई बाधाएं आईं, विरोध हुए पर अपने संकल्प से पीछे नहीं हटीं। सामाजिक बेडिय़ों को तोड़ आगे बढ़ीं और निकल पड़ीं मंजूषा कलाकारों की फौज खड़ी करने।

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शुरुआत अपने ससुराल से की। आस-पास की महिलाओं, युवतियां व बच्चों को मंजूषा कला का निशुल्क प्रशिक्षण देना शुरू किया। धीरे-धीरे कारवां आगे बढ़ा। आज उनके सैंकड़ों शिष्य विभिन्न जगहों पर मंजूषा कला का प्रसार कर रहे हैं। इस जज्बे के कारण उन्हें दर्जनों सम्मान से नवाजा जा चुका है। 2013-14 में मुख्यमंत्री के हाथों बिहार कला पुरस्कार भी प्राप्त किया। बिहार ललित कला अकादमी द्वारा आयोजित विक्रमशिला महोत्सव में कार्यशाला और मंजूषा कला पर आधारित डिजाइन डेवलपमेंट सेंटर कोलकाता की कार्यशाला में सहभागिता की। मंजूषा कला के प्रचार-प्रसार के लिए वे राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक से सम्मानित हो चुकी हैं। 2012 में मंजूषा कला के लिए जिला प्रशासन ने इन्हें नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा और भी कई पुरस्कार प्राप्त कर उन्होंने भागलपुर का मान बढ़ाया।

मंजूषा ही जीवनयापन का साधन

निर्मला देवी का जन्म चंपानगर और शादी मोहद्दीनगर में हुई। पति के बीमार पडऩे के बाद इनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई। लिहाजा उन्होंने मंजूषा कला को जीवनयापन का साधन बना लिया। विवाह में उपयोग होने वाले घड़े में मंजूषा आर्ट करने करने लगीं। लोगों ने इसका काफी विरोध भी किया। कहा कि यह कौन सी कला है जिसमें न आंख का पता है और न कान का। सांप, चंपा, बिहुला व शिव का चित्र बनाने में क्या खास है। मंजूषा कला का नाम सुनते ही लोग ताना मारते थे। पर इससे उनका हौसला डिगा नहीं, इच्छाशक्ति और मजबूत हुई।

निर्मला बताती हैं कि चंपानगर में मायका होने की वजह से नाथनगर की चक्रवर्ती देवी से काफी कुछ सीखने को मिला। प्रचार-प्रसार हुआ तो पटना के अधिकारी मंजूषा कला देखने आने लगे। यह सिलसिला 1992 से शुरू हुआ। उस वक्त बहुत कम लोग मंजूषा कला को जानते थे। 2005 में माया तेतर लोक सेवा संस्थान व कला सागर संगठन के माध्यम से मंजूषा महोत्सव की शुरुआत हुई। साल भर बाद दिशा ग्रामीण और नाबार्ड ने दराधी में प्रशिक्षण शिविर लगाया। इसमें उन्होंने मंजूषा कला का निशुल्क प्रशिक्षण दिया। यह सिलसिला अब भी जारी है।


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