लहसुन की नई किस्म से दोगुना होगा उत्पादन
बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिकों ने लहसुन की दो नई किस्म विकसित की जिससे बंपर होगा उत्पादन।
भागलपुर [ललन तिवारी]। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर के वैज्ञानिकों ने लहसुन की दो नई किस्मों को विकसित किया है। औषधीय गुणों से लैस और रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त ये किस्में सामान्य से दोगुना उत्पादन देने में सक्षम है।
बिहार सहित देश के कई संस्थानों में इसका सफलतापूर्वक मूल्यांकन अंतिम पड़ाव पर है। बीएयू दोनों किस्मों को राष्ट्रीय फलक पर रिलीज करेगा। पीआरओ डॉ. आरके सोहाने ने बताया कि लहसुन में औषधीय गुण तो होते ही हैं, साथ ही यह मसाला, कीटनाशी, फुफंदनाशी के रूप में भी इस्तेमाल होता है। देश में नकदी फसल के रूप में इसकी खेती होती है। बिहार की मिट्टी और जलवायु इस किस्म को भा रही है। नकदी फसल के रूप में इसकी खेती कर किसान समृद्ध बनेंगे।
रिसर्च कर रहीं वैज्ञानिक संगीता श्री कहती हैं कि विगत सात वर्ष में 142 किस्मों का अध्ययन करते हुए बीआरजी 13 गुलाबी और दूसरा बीआरजी 14 चमकदार सफेद किस्म विकसित की गई हैं। बीएयू के कुलपति डॉ. अजय कुमार सिंह ने बताया कि लहसुन की दोनों किस्मों को राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज किया जाएगा। नई किस्म किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगी। यहां किया जा रहा मूल्यांकन
प्याज और लहसुन अनुसंधान केंद्र राजगुरु नगर पुने और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, नई दिल्ली सहित देश के कई बड़े संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों, बीएयू से संबद्ध कॉलेजों और तीन जोन में किसानों के खेतों में दोनों प्रभेद का मूल्यांकन अंतिम पड़ाव पर है। दोगुना उत्पादन देने में सक्षम
लहसुन का औसत उत्पादन 5.76 टन प्रति हेक्टेयर है। नए प्रभेदों की उत्पादन क्षमता 15 से 16 टन प्रति हेक्टेयर है। अन्य फसलों के साथ मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक इसे लगाया जाता है। 135 से 140 दिनों में तैयार हो जाता है। किस्म में सल्फर और फास्फोरस की टेस्टिंग हुई है जो काफी उत्साहजनक है। रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक रहने के कारण खेत से लेकर भंडारण तक में होने वाला नुकसान भी कम होने की बात कही जा रही है।