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जयंती विशेष: आजाद भारत की कमान गांधीजी के हाथों में देना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के गांधीजी से मतभेद से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि नेताजी स्‍वतंत्र भारत की कमान गांधी के हाथों में ही देखना चाहते थे। पढ़ें यह खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 12:10 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 08:47 PM (IST)
जयंती विशेष: आजाद भारत की कमान गांधीजी के हाथों में देना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस
जयंती विशेष: आजाद भारत की कमान गांधीजी के हाथों में देना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस

भागलपुर [विकास पांडेय]। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी से भले ही वैचारिक मतभेद रहा, लेकिन उनके मन में गांधीजी के लिए बड़ा सम्‍मान था। नेताजी ने जब आजाद हिंद फौज की स्थापना की तब उन्‍होंने अपने रेडियो प्रसारण में गांधीजी को 'राष्‍ट्रपिता' संबोधित करते हुए आशीर्वाद मांगा था। इतना ही नहीं, वे देश को आजादी दिला उसकी बागडाेर भी गांधी जी को सौंप देना चाहते थे। यह बड़ा खुलासा है नेताजी के निेकट सहयोगी रहे भागलपुर के आनंद मोहन सहाय की बेटी आशा चौधरी का।

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आनंद मोहन सहाय नेताजी की आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल थे। उनकी बेटी आशा चौधरी भी आजाद हिंद फौज की सहयोगी रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं।

देश को आजादी दिला कांग्रेस को सौंपना चाहते थे सत्ता
आशा चौधरी बताती हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की योजना थी कि आजाद हिंद फौज के सिपाही लड़ाई में ब्रिटिश सेना को परास्‍त कर देश के स्वाधीनता आंदोलन के सिपाहियों से जा मिलेंगे और फिरंगियों से भारत माता को स्वाधीन करा लेंगे। नेताजी कहा करते थे कि उनकी व आजाद हिंद फौज की जिम्मेदारी सिर्फ भारत को आजाद करना है। उसके बाद सत्ता महात्मा गांधी व कांग्रेस के हाथों में सौंप दी जाएगी।
रानी झांसी रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं आशा चौधरी
आशा चौधरी भागलपुर के नाथनगर प्रखंड के पुरानी सराय की निवासी हैं। वे आजाद हिंद फौज की सहयोगी रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं। उनके पिता आनंद मोहन सहाय नेताजी के निकट सहयोगी और आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल थे। उनकी माता सती सहाय पश्चिम बंगाल के चोटी के कांग्रेसी नेता व बैरिस्टर चित्तरंजन दास की भांजी थीं। सती सहाय भी स्वतंत्रता सेनानी थीं।

गया में नेताजी की आनंद मोहन सहाय से हुई थी पहली मुलाकात
गया कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष बोस अध्यक्ष चितरंजन दास के निजी सचिव बन कर आए थे। वहां आशा चौधरी के पिता आनंद मोहन सहाय को चित्तरंजन दास के कैंप की सुरक्षा का दायित्व मिला था। नेताजी से सहायजी की पहली भेंट वहीं हुई थी।
अमेरिकी एटम बमों ने तोड़ दी जापान की कमर
आशा चौधरी बतातीं हैं कि नेताजी सुभाष चद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय फौज की बर्मा की सीमा पर अंग्रेजी फौज से जाे लड़ाई हुई थी, उस दौरान मूसलधार बारिश शुरू हो गई। नेताजी की रणनीति थी कि बारिश के बाद दोगुनी शक्ति के साथ फिरंगियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी जाए, लेकिन इसी बीच जापान के नागासाकी व हिरोसीमा पर अमेरिका द्वारा एटम बम गिरा दिए जाने से उसकी कमर ही टूट गई। वह आजाद हिंद फौज को सहयोग करने की स्थिति में नहीं रह गया।
चौधरी बताती हैं कि नेताजी की योजना देश को आजाद कराकर उसकी बागडोर महात्मा गांधी जी और कांग्रेस के हाथों में सौंपने की थी। लेकिन अमेरिकी एटम बमों ने न केवल जापान को घुटने टेकने को मजबूर किया, बल्कि इसने नेताजी के सपने को भी तोड़ दिया।

दृढ़ देशभक्त थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
आशा चौधरी का कहना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस दृढ़ प्रतिज्ञ देशभक्त स्वाधीनता सेनानी थे। उन्होंने तत्कालीन शक्तिशाली देश जापान के सहयोग से भारत को स्वतंत्र करने का बीड़ा उठाया था। कुछ अपरिहार्य कारणों से भले ही उनके उस अभियान को सफलता नहीं मिल पाई थी, लेकिन उस युद्ध के बाद ब्रिटिश सल्तनत इतनी भयभीत हो गई थी कि आखिरकार उसे देश छोड़कर जाने का फैसला करना पड़ा था।

मातृभूमि की आजादी की रक्षा में सभी नागरिकों को रहना चाहिए तत्पर 
आशा चौधरी ने बताया कि नेताजी ने लड़ाई के दिनों में एक बार कहा था कि आजाद हिंद फौज व भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों से हमारी मातृभूमि को अंग्रेजों से आजादी तो बहुत जल्द मिल जाएगी, लेकिन उस आजादी को अक्षुण्ण बनाए रखना देशवासियों की सबसे बड़ी जिम्मेवारी होगी। स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के प्रति हमें हमेशा तत्पर रहना होगा।


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