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अलम और ताजिया जुलूस में जंजीरी मातम कर गम का किया इजहार

भागलपुर जिले में आसानंदपुर के बड़ी इमामबाड़ा से शनिवार को मुहर्रम की 11वीं तारीख को अलम व ताजिया जुलूस निकाला गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 09:41 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 09:41 PM (IST)
अलम और ताजिया जुलूस में जंजीरी मातम कर गम का किया इजहार
अलम और ताजिया जुलूस में जंजीरी मातम कर गम का किया इजहार

भागलपुर। आसानंदपुर के बड़ी इमामबाड़ा से शनिवार को मुहर्रम की 11वीं तारीख को अलम व ताजिया का जुलूस निकाला गया। इसमें बड़ी संख्या में शिया समुदाय के लोगों ने उपस्थिति दर्ज की। सभी इमाम हुसैन की शहादत को याद कर जंजीरी मातम कर गम का इजहार कर रहे थे। विक्टर, सोनू जीशान हुसैन, नायाब, समर सहित अन्य नोहा पढ़ा। आसानंदपुर से होते हुए अलम जुलूस लल्लो मिया के इमामबाड़ा पहुंचा। इमामबाड़ा परिसर में मौजूद अलम जुलूस में शामिल हो गए। यहा बूढ़े, बच्चे व जवानों ने जंजीरी मातम किया। खुद को लहूलुहान करते हुए उनकी शहादत को बेकार नहीं जाने का संदेश दिया। इसे देखने के लिए काफी संख्या में लोग जुटे थे। शिया समुदाय ने कर्बला मैदान में शहीद हुए इमाम हुसैन की याद में मातमी जुलूस में शामिल हुए।

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डिस्ट्रिक सेवा वक्फ कमेटी के सचिव सैयद जी साह हुसैन ने बताया कि मुहर्रम माह की 11वीं तारीख थी। पूरा महीना गम का होता है। इतने दिनों तक इस समुदाय के लोग कोई शुभ कार्य नहंी करते हैं। शाम पाच बजे शाहजंगी कर्बला मैदान पहुंचा। यहा अलविदा नोहा के साथ पहलाम संपन्न किया गया है। इसके बाद शिया समुदाय के लोग ताजिया लेकर वापस इमामबाड़ा लौट आए। सचिव ने बताया कि इमाम हुसैन की शहादत को याद कर मातम व गम का इजहार किया गया। इमाम हुसैन जो कि पैगम्बर मोहम्मद साहब के नाती थे। इस्लाम धर्म को बचाने के लिए उस वक्त के ईराक के कर्बला में यजींद नामक शासक के आगे इमाम हुसैन नहीं झुके। उन्होंने इस्लाम धर्म को बचाने के लिए अपनी शहादत दे दी। कमेटी के प्रो. फारुख अली, महबूब आलम, रिजवान खां, जुमन साह को और जिला प्रशासन को मुहर्रम शांतिपूर्ण संपन्न कराने के लिए बधाई दी।


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