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प्रवासी पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा गंगा-कोसी का इलाका, लुभा रहे पर्यटकों को

सरकार अगर ध्यान दे तो इस क्षेत्र को इन पक्षियों के माध्यम से अंतराराष्ट्रीय पहचान मिल सकती है। यहां कई विदेशी सैलानी भी गरुड़ का प्रजजन स्थल देखने आते हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 04:52 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 04:52 PM (IST)
प्रवासी पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा गंगा-कोसी का इलाका, लुभा रहे पर्यटकों को
प्रवासी पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा गंगा-कोसी का इलाका, लुभा रहे पर्यटकों को

भागलपुर [अमरेन्द्र कुमार तिवारी]। शरद ऋतु के आगमन होते ही प्रवासी पक्षियों के कलरव से गंगा और कोसी के धार और छाडऩ क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के मधुर कलरव से गूंजायमान होने लगता है। यहां की आवोहवा प्रवासी पक्षियों को खूब भाने लगी है। इन मेहमानों ने नारायणपुर, बिहपुर, पसराहा, जगतपुर एवं खैरपुर पंचायत के कासीमपुर, लखमिनिया, आश्रम टोला, कचहरी टोला, बरारी टोला, प्रतापनगर, खलीफा टोला, बिंद टोली एवं पचगछिया क्षेत्र को अपना बसेरा बना लिया है।

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डीएफओ एस सुधाकर ने बताया कि यहां उन्हें सुलभता से आहार उपलब्ध हो जाता है। इसलिए प्रजजन को आते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार अगर ध्यान दे तो इस क्षेत्र को इन पक्षियों के माध्यम से अंतराराष्ट्रीय पहचान मिल सकती है। यहां कई विदेशी सैलानी भी गरुड़ का प्रजजन स्थल देखने आते हैं। जाड़े का मौसम शुरू होते ही इस क्षेत्र में अक्टूबर-नवंबर माह से विदेशी पक्षियों का आगमन शुरू हो जाता है।

ग्रामीण हो रहे जागरूक

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा लगातार जागरूकता अभियान चलाने से अब यहां के लोग इन पक्षियों का शिकार नहीं करते हैं। जिसका सकारात्मक परिणाम है कि कदवा दियारा में गरुड़ पक्षियों की संख्या 125 घोसलों में बढ़ कर 550 के करीब पहुंच गई है। अब यहां गरुड़ के प्रवास के लिए कदम के पेड़ लगा रहे हैं। मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा बताते हैं कि पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन एवं सुरक्षा कारणों से भी प्रवासी पक्षियों का यहां आगमन होता है। इन दिनों गंगा प्रसाद एवं जगतपुर झील में पर्याप्त पक्षियों को देखा जा रहा है।

इन पक्षियों का होता है आगमन : लालसर, करला, टिकारी, सरखाब, खंजन, दिघोंच, गरुड़, सरार एवं अरूण सहित अन्य शामिल है।

परिस्थिति विषम होने पर आती हैं प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षियां चीन, तिब्बत, साइबेरिया, रसिया, कजिस्तान एवं मंगोलिया से आती हैं। वहां भीषण बर्फबारी से झीलों का पानी जम जाता है। परिस्थितियां विषम हो जाती हैं। तब वहां की पक्षियों का गंगा व कोसी क्षेत्रों में आगमन होता है। बता दें कि विश्व में आधे से अधिक गरुड़ नवगछिया अनुमंडल में पाए जाते हैं। पहले यह असम एवं कंबोडिया में अधिक संख्या में पाया जाता था।

गरुड़ सेवा एवं पुनर्वास केंद्र की स्थापना

विलुप्त हो रहे गरुड़ पक्षी को बचाने की दिशा में भागलपुर के सुंदरवन में दो वर्ष पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा गरुड़ सेवा एवं पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई है। जो देश का एकलौता केंद्र है। जहां घायल गरुड़ को लाकर उसका इलाज किया जाता है। स्वस्थ्य होने पर उन्हें पुन प्राकृतिक क्षेत्र में मुक्त कर दिया जाता है। कुछ दिन पूर्व राज्य के डिप्टी सीएम ने यहां से छह स्वस्थ गरुड़ को प्राकृतिक क्षेत्र के लिए मुक्त किया था।

प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए शुरू किया गया इको टूरिज्म

गंगा के प्राकृतिक सौंदर्य एवं प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए बीते 20 नवंबर को डिप्टी सीएम द्वारा मुसहरी घाट से शंकरपुर दियारा तक गंगा में नौका विहार यानि इको टूरिज्म शुरू किया गया है। अब शहर के लोग इसका आनंद लेने लगे हैं।


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