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तेजी से माइग्रेन की चपेट में आ रहे बच्चे

माइग्रेन की चपेट में बच्चे तेजी से आ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Sep 2019 07:09 PM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 07:09 PM (IST)
तेजी से माइग्रेन की चपेट में आ रहे बच्चे
तेजी से माइग्रेन की चपेट में आ रहे बच्चे

भागलपुर। माइग्रेन की चपेट में बच्चे तेजी से आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण जीवनशैली में बदलाव है। अत्यधिक तनाव और खानपान में असंतुलन भी बच्चों में माइग्रेन का प्रमुख कारण है।

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जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में माइग्रेन के कुल मरीजों में से लगभग पांच फीसद बच्चों का इलाज किया जाता है। इनमें किशोर भी शामिल हैं। प्रतिदिन किया जा रहा दो से तीन बच्चों का इलाज

पिछले 10 वर्षो में माइग्रेन से पीड़ित बच्चों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार भगत के मुताबिक माइग्रेन से पीड़ित बच्चों में पांच फीसद की वृद्धि हुई है। 10 वर्ष पूर्व सप्ताह में एक या दो माइग्रेन पीड़ित बच्चे इलाज करवाने आते थे, अब प्रतिदिन दो से तीन बच्चे इलाज करवाने आ रहें हैं। बीमारी के लक्षण

सिर के एक हिस्से में दर्द होना, आंखों के सामने आड़ी-तिरछी लाइनें बनना, सिर पर हथौड़े जैसे चोट का अनुभव करना, दर्द बढ़ते जाना आदि इस बीमारी के लक्षण हैं। क्यों होती है यह बीमारी

जिनके परिजन माइग्रेन से पीड़ित हैं उनके बच्चे भी इससे ग्रसित हो सकते हैं। इसके अलावे पढ़ाई का टेंशन, मानसिक तनाव, ठंड के मौसम में सुबह स्कूल जाते वक्त ठंड लगना, ज्यादा पावर की दवाओं का सेवन करना, घंटों भूखे रहना, भोजन में अनियमितता, तेज धूप में घूमना, अत्यधिक शारीरिक और मानसिक श्रम करना आदि माइग्रेन के कारणों में शामिल हैं। क्या बरतें सावधानी

माइग्रेन से बचने के लिए हर दिन छह से आठ घंटे तक गहरी नींद लें, तेज धूप में घर से बाहर निकले तो छाता ले लें, तनाव लेने से बचें, दिनचर्या नियमित बनाएं, प्रतिदिन व्यायाम करें, सुबह उठने का प्रयास करें, प्रतिदिन आठ ग्लास पानी पीएं और फास्ट फूड का सेवन करने से बचें। कोट :

अभिभावकों को बच्चों पर पढ़ाई या किसी अन्य मामलों में अत्यधिक दवाब नहीं देना चाहिए। हालांकि, उन्हें बच्चों की दिनचर्या पर भी ध्यान रखना चाहिए। उन्हें भरपूर प्यार दें। संभव हो तो साथ बैठकर भोजन भी करें। इससे बच्चों में अभिभावकों के प्रति प्रेम भी बढ़ेगा और अपने दिल की बात करने में भी संकोच नहीं करेंगे।

डॉ. कुमार गौरव, सह प्राध्यापक, मानसिक रोग विभाग, जेएलएनएमसीएचे


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