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आशा को जांच नहीं, पैसे से मतलब, प्रसव के समय दम तोड़ रहीं गर्भवतियां

गर्भवतियों की समय-समय पर जांच कराने की जिम्मेदारी बेशक आशा को दी गई है। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। लेकिन आशा को सिर्फ पैसे से मतलब होता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 09:01 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 09:01 AM (IST)
आशा को जांच नहीं, पैसे से मतलब, प्रसव के समय दम तोड़ रहीं गर्भवतियां
आशा को जांच नहीं, पैसे से मतलब, प्रसव के समय दम तोड़ रहीं गर्भवतियां

भागलपुर [अशोक अनंत]

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गर्भवतियों की समय-समय पर जांच कराने की जिम्मेदारी बेशक आशा को दी गई है। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। लेकिन आशा को सिर्फ पैसे से मतलब होता है। गर्भवती की जांच हो या न हो इससे लेना-देना नहीं। यही कारण है कि जिले में 50 फीसद से अधिक गर्भवतियों की जांच उस समय होती है जब उन्हें प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। ऐसे में सिजेरियन की नौबत आने पर हिमोग्लोबिन की कमी और अत्यधिक रक्तस्राव के कारण गर्भवतियों की मौत हो जाती है।

कोई भी महिला जब गर्भवती होती है तो आशा की यह जिम्मेवारी होती है कि वह तीन, छह और नौ माह में गर्भवती महिला की जांच कराए। लेकिन ऐसा नहीं होता। इसके लिए आशा को जांच और प्रसव करवाने के एवज में कुल सात सौ रुपये मिलते हैं। लेकिन जेएलएनएमसीएच और लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल में प्रसव करवाने के लिए भर्ती 50 फीसद महिलाओं में हिमोग्लोबिन की मात्रा सात ग्राम से भी कम रहती है। हालांकि सदर अस्पताल में सात ग्राम हिमोग्लोबिन से कम गर्भवती महिलाओं को भर्ती ही नहीं किया जाता, जेएलएनएमसीएच रेफर कर दिया जाता है।

सिजेरियन के दौरान रक्त देने से कतराते हैं परिजन

अस्पताल में भर्ती एक सौ गर्भवती में से तीन महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। 50 फीसद ऐसी गर्भवती महिलाएं हैं जो गर्भधारण के बाद जांच ही नहीं करवातीं। इन महिलाओं में जहां हिमोग्लोबिन की कमी रहती है वहीं चिकित्सक को बचाने में मशक्कत करनी पड़ती है। अगर सिजेरियन की नौबत आती है तो परिजन खून तक नहीं देना चाहते।

सुल्तानगंज की अंशु कुमारी को पांच ग्राम हिमोग्लोबिन

नाथनगर बिंद टोला की रुबी देवी को सदर अस्पताल में भर्ती किया गया। उसे अस्पताल लाने वाली आशा सुनीता कुमारी ने बताया कि पहले किसी प्रकार की जांच नहीं कराई गई है। जिच्छो की पूनम देवी के शरीर में हिमोग्लोबिन चार ग्राम है। वहीं सुल्तानगंज की अंशु कुमारी के शरीर में पांच ग्राम हिमोग्लोबिन है। इन महिलाओं ने बताया कि अस्पताल में भर्ती होने के बाद ही जांच कराई गई।

80 फीसद महिलाओं में हिमोग्लोबिन की कमी

जेएलएनएमसीएच में प्रतिमाह तकरीबन 150 महिलाओं का प्रसव कराया जाता है। इनमें 80 फीसद महिलाओं में हिमोग्लोबिन की कमी रहती है। 75 फीसद महिलाओं की जांच जब प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती होती हैं तब की जाती है। जिन महिलाओं में दो से लेकर पांच ग्राम हिमोग्लोबिन होता है उसकी नार्मल प्रसव करवाने में परेशानी होती है। सिजेरियन के दौरान रक्तश्राव होने से उनकी मौत हो जाती है।

नार्मल हिमोग्लोबिन की मात्रा 10 ग्राम है

अगर 10 ग्राम भी हिमोग्लोबिन है तो शरीर में सूजन नहीं होगा। इससे नार्मल प्रसव की संभावना ज्यादा रहती है। सांस लेने में परेशानी नहीं होगी। इससे कम हिमोग्लोबिन रहने पर प्रसव के दौरान मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है।

गर्भधारण करते ही आयरन की गोली का सेवन आवश्यक

गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोली अवश्य लेना चाहिए। इतना ही नहीं दवा के साथ ही केला, अमरूद, सेवा, हरी पत्तेदार सब्जियां खाने से खून की कमी नहीं होगी।

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कोट : अस्पताल में भर्ती 50 फीसद गर्भवती महिलाओं में खून की कमी रहती है। वहीं परिजन भी खून नहीं देना चाहते।

डॉ. आरसी मंडल, अधीक्षक, जेएलएनएमसीएच

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कोट खून की कमी की वजह से गर्भवती महिलाएं संक्रमित हो जाती हैं। 50 फीसद महिलाओं की जांच अस्पताल में की जाती है। पहले महिलाओं की जांच नहीं होने से उनकी परेशानी बढ़ जाती है।

डॉ. रोमा यादव, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जेएलएनएमसीएच


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