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कभी समृद्ध किसान की थी पहचान, कटाव ने छीन ली रोजी, रोटी

कटिहार। गंगा व महानंदा नदी के कटाव ने पिछले चार दशक में मनिहारी, अमदाबाद एवं बरारी प्रखंड में जमकर तबाही मचाई है। कटाव से विस्थापित हुए कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास 50 से 80 बीघा तक कृषि योग्य भूमि थी। लेकिन नदी के गर्भ में खेती योग्य जमीन समा जाने के कारण विस्थापित होकर मजदूरी व बंटाईदारी कर विस्थापित परिवार अपने परिवार का भरण पोषण करने को विवश हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Jun 2018 01:22 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jun 2018 01:22 PM (IST)
कभी समृद्ध किसान की थी पहचान, कटाव ने छीन ली रोजी, रोटी
कभी समृद्ध किसान की थी पहचान, कटाव ने छीन ली रोजी, रोटी

कटिहार। गंगा व महानंदा नदी के कटाव ने पिछले चार दशक में मनिहारी, अमदाबाद एवं बरारी प्रखंड में जमकर तबाही मचाई है। कटाव से विस्थापित हुए कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास 50 से 80 बीघा तक कृषि योग्य भूमि थी। लेकिन नदी के गर्भ में खेती योग्य जमीन समा जाने के कारण विस्थापित होकर मजदूरी व बंटाईदारी कर विस्थापित परिवार अपने परिवार का भरण पोषण करने को विवश हैं। अपने सुंदर आशियाने में संपन्नता का जीवन जीने वाले किसान परिवार तटबंध व सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं। मनिहारी व अमदाबाद प्रखंड में ऐसे परिवारों की संख्या सबसे अधिक है। नदियों के रौद्र रूप व कटाव ने दाने- दाने को इन परिवारों को मोहताज बना दिया है। अपने पुराने दिनों को याद कर विस्थापित परिवारों की आंखों से बरबस ही आंसू निकल पड़ते हैं। वर्ष 1973 में गंगा नदी के कटाव से किसानों की सबसे अधिक आर्थिक संपन्नता को छीना। कभी लहलहाते खेत गांव की संपन्नता की पहचान हुआ करती थी। वहीं आज नदी की धारा बह रही है। दियारा की उपजाऊ जमीन पर कटाव व बाढ़ के कारण रेत की चादर फैलने से जमीन बंजर बन चुकी है। पहले ठाठ से चलती थी किसानी, आज दूसरे के खेत में करते मजदूरी

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कटाव के कारण विस्थापित कई समृद्ध किसान आज मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मनिहारी प्रखंड के बैजनाथपुर दियारा गांव के रामप्रसाद ¨सह वर्ष 1973 तक क्षेत्र के संपन्न किसान के रूप में जाने जाते थे। कटाव के कारण उनकी सौ बीघा उपजाऊ जमीन गंगा नदी ने लील ली। विस्थापित होकर रामप्रसाद वर्तमान में मनिहारी के मारीटोला में अपने परिवार के साथ रहे हैं। मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। मेदनीपुर के हेमचंद्र ¨सह का परिवार मनिहारी अनुमंडलीय अस्पताल के समीप विस्थापित होकर रह रहे हैं। हेमचंद्र के पुत्र पप्पू ¨सह मनहारी घाट पर गंगा नदी में नाव परिचालन की देख रेख कर अपने परिवार का परविरिश कर रहे हैं। बैजनाथपुर के विश्वनाथ ¨सह छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ किसी तरह कर लेते हैं। इसी गांव के रामनगीना ¨सह मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं। अमदाबाद प्रखंड के जामुनतल्ला के रहने वाले खुशीलाल चौधरी अपने परिवार के साथ शंकर बांध पर रहे हैं। बंटाईदारी पर खेती व मजदूरी कर परिवार का लालन- पालन कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति खट्टी के रामवतार ¨सह, धन्नीटोला के अर्जुन मंडल, गोलाघाट के जयराम ¨सह, एवं बालमुकुंद टोला के रामदेव ¨सह की है। बरारी प्रखंड के गुरूमेला निवासी मांगन साह एव काढ़ागोला घाट के पंकज चौधरी की खुशियां भी गंगा नदी के कटाव ने छीन ली है। कटाव के दर्द व पीड़ा से दर्जनों विस्थापित परिवार हैं। जिन्हें आज तक सरकारी स्तर से पुनर्वासित करने की दिशा में कोई पहल नहीं की गई है।


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