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दक्षिण भारतीयों को भा रही मंजूषा वाली साड़ी

लोक कला मंजूषा को राष्ट्रीय फलक पर ले जाना और सुदूर दक्षिण में इसे स्थापित करना पवन सागर के लिए आसान नहीं था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 02:18 AM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 06:12 AM (IST)
दक्षिण भारतीयों को भा रही मंजूषा वाली साड़ी
दक्षिण भारतीयों को भा रही मंजूषा वाली साड़ी

भागलपुर। लोक कला मंजूषा को राष्ट्रीय फलक पर ले जाना और सुदूर दक्षिण में इसे स्थापित करना पवन सागर के लिए आसान नहीं था। पवन शुरुआती दौर में किसी को मंजूषा पेंटिंग भेंट करने को जाते तो सांप-बिच्छू की कला कहकर इनका मजाक उड़ाया जाता था। कई वीआइपी नेताओं ने तो उपहार तक स्वीकार नहीं किया। ललक थी कुछ कर दिखाने की, इसलिए हार नहीं मानी। नतीजा आज देश भर में इस कला की मांग बढ़ी है। खासकर दक्षिण भारत के तमिलनाडु, कनार्टक और केरल में मंजूषा कला वाली साड़ी मंगाई जा रही है। मंजूषा ही पवन की आय का मुख्य स्रोत बन चुकी है।

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कला को बनाया ध्येय तो बरसने लगे अवार्ड

मोहद्दीनगर निवासी पवन ने जब इस कला को अपना ध्येय बनाया तो उन्हें जरा भी इसका भान नहीं था कि एक दिन यह उन्हें प्रसिद्धि भी दिलाएगी। कूची से मंजूषा में रंग भरते रहे और यह कला भी अवार्ड से इनकी झोली भरती रही। पिछले साल ही पवन को मंजूषा कला के लिए रियल इंटरनेशनल एक्सीलेंस अवार्ड मिला। यह सम्मान संयुक्त राष्ट्र संघ से संबद्ध आर्ट एंड पीस ऑफ इंडिया की ओर से उन्हें हरियाणा के करनाल में दिया गया। भारतीय सांस्कृतिक मंत्रालय के पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता की ओर से भी 2015 में आयोजित भारत लोक पर्व में भी इन्हें अवार्ड मिल चुका है। पवन पिछले 20 वर्षो से मंजूषा से जुड़े हैं और अब तक उन्हें स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई अवार्ड मिल चुके हैं।

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नबार्ड का मिला साथ तो रास्ता हुआ आसान

2006 में नाबार्ड ने जिले के सभी प्रखंडों में मंजूषा कला प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया था। इसके माध्यम से 300 कलाकार तैयार किए गए। यही वह समय था जब मंजूषा कला ट्रैक पर चल पड़ी। बिहार शिक्षा परियोजना ने ज्ञान ज्योति कार्यक्रम चलाया। इसके तहत पवन ने खरीक, सुलतानगंज और कहलगांव के प्रखंड संसाधन केंद्रों (बीआरसी) में मंजूषा कला का प्रशिक्षण दिया।

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मंजूषा का कर रहे प्रचार-प्रसार

निर्मला देवी व मनोज पंडित से मंजूषा का हुनर सीखने के बाद से इस कला के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। इन दिनों शाहकुंड प्रखंड के स्वास्थ्य केंद्र की दीवारों पर जागरुकता के लिए मंजूषा कला शैली में पेंटिंग कर रहे हैं। इनकी प्रदर्शनी पटना के ललित कला अकादमी में लगाई गई है। कला से जुड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में मंजूषा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पुरस्कार भी जीत चुके हैं।


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