पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेगा पौराणिक मंदार पर्वत
नालंदा, बोधगया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह ही अब पौराणिक मंदार
बांका [राहुल कुमार] नालंदा, बोधगया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह ही अब पौराणिक मंदार पर्वत की महत्ता भी बच्चे अपनी पाठ्यपुस्तकों में पढ़ सकेंगे। जल्द ही इसका एक अध्याय उनकी पुस्तक में जुड़ने वाला है। मंदार की महत्ता और विशेषता पर मंथन के लिए देश के 100 से अधिक विद्वान पर्वत पर जुट रहे हैं।
21 और 22 अप्रैल को वे इस पर मंथन करेंगे। मंदार के हर पहलू का इस दौरान बारीकी से अध्ययन भी किया जाएगा। इसके बाद इसकी रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपी जाएगी। इसी आधार पर इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। मंदार की विशेषता पर मंथन का बीड़ा इतिहास संकलन समिति ने उठाया है। इसी के बैनर तले मंदार में विद्वानों के जुटान की तैयारी हो रही है। इसमें बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी, पुरातत्व विभाग के अधिकारी व आरएसएस के शीर्ष अधिकारी हिस्सा लेंगे। पूर्व सांसद पुतुल ¨सह इस आयोजन समिति की प्रमुख बनाई गई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवों और दानवों ने मिलकर सागर मंथन करते समय मंदार को ही मथानी बनाया था। इस पर्वत का पूरा हिस्सा ग्रेनाइट पत्थर के एक टुकड़े जैसा है। पर्वत के मध्य में गरुड़ रथ के पहिये और सर्प के निशान हैं, ऐसा लोगों का विश्वास है। पर्वत से ¨हदुओं, वनवासियों और जैन धर्म के लोगों का जुड़ाव है। हर साल देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालु यहां पहुंचकर पर्वत के ऊपरी शिखर पर अवस्थित ¨दगबर जैन मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। पर्वत पर लखदीपा मंदिर, सीता कुंड, पाल कालीन मृदभांड़, शंखकुंड आदि के निशान इसके ऐतिहासिक होने का प्रमाण देते हैं।
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इस देश का इतिहास यूरोपियन और वामपंथी विचारों से प्रभावित इतिहासकारों ने लिखा है। इसमें भारतीय दृष्टिकोण का अभाव है। इतिहास संकलन समिति विद्वानों और पुरातत्वविदों की सहायता से ऐसे स्थलों का पता लगा रही है। ऐसे स्थलों की सूची में मंदार भी शामिल है। देश के विभिन्न हिस्सों से विद्वान इसकी महत्ता जानने पहुंच रहे हैं। इसके बाद इसे पाठ्यक्रम में शामिल कराने का प्रस्ताव मानव संसाधन विकास विभाग और केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।
- अरुण
प्रांत संगठन सचिव, इतिहास संकलन समिति