Makar Sankranti 2021 : इस मंदिर में कल लगेगा माता को 56 भोग, जानिए महत्व
सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने के दिन मनाया जाने वाला पर्व मकर संक्रांति इस वर्ष 14 जनवरी गुरुवार को मनाया जाएगा। इस पावन पर्व के अवसर पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी इलाके की खुशहाली के लिए उग्रतारा माता को 56 भोग लगेगा।
जागरण संवाददाता, सहरसा । Makar Sankranti 2021 सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने के दिन मनाया जाने वाला पर्व मकर संक्रांति आज , मकर संक्रांति के अवसर पर उग्रतारा माता को 56 व्यंजनों की भोग लगाने की प्राचीन परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि भगवती को लगने वाला 56 भोग क्षेत्र में सुख समृद्धि और खुशहाली लेकर आती है।
बाजारवाद हो रहा हावी
मंदिर में श्रद्धा अर्पण वाले पुजारी और ग्रामीणों के सहयोग से 56 भोग की तैयारी बड़े पैमाने पर की जाती है। यह अलग बात है कि अति प्राचीन मानी जाने वाली इस परंपरा पर अब बाजारवाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कुछ वर्ष पहले तक माता के 56 भोग ग्रामीणों के सहयोग से प्राप्त अन्न और सब्जियों से तैयार किया जाता था। इसके लिए गांव के कई समाज सेवकों द्वारा रसोई तैयार की जाती थी लेकिन, अब पुजारियों द्वारा अधिक से अधिक बाजार से खरीदे गए फल और मिठाई के साथ कुछेक पाक्य भोज्य पदार्थ खिचड़ी,सब्जी,विभिन्न प्रकार के तरूआ,खीर से माता की भोग की थाली सजायी जाती है।
माता के 56 भोग में शामिल होने दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
गाजर,मूली,गोभी और आंवले से बने स्वादिष्ट पकवान से सजी माता की थाली और उसपर तिलकूट,लाय और दही की गर्माहट के बीच माता के अन्नपूर्णा स्वरूप से मंगलकामना की आस लिए पटना,खगडिय़ा,नवगछिया, मधेपुरा,सुपौल सहित अन्य स्थलों से तंत्र साधक और श्रद्धालुओं का इस विशेष भोग को देखने आते हैं।
क्या है मान्यता
यूं तो मिथिला में नव्य अन्न की परंपरा नवान के दिन से ही मानी जाती है लेकिन महिषी के लोगों का नव्यअन्न मकरसंक्रांति को माता को भोग लगाने के बाद शुरू होता है। इस संबंध में पं.जवाहर पाठक का कहना है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य पुराण के अनुसार तारा सूर्य की आदी शक्ति है। मकरसंक्रांति के बाद सूर्य का ताप बढऩे लगता है सूर्य के ताप को नियंत्रित करने की कामना से माता तारा को अन्न का भोग लगाया जाता है। वहीं इस संबंध में मंदिर के पुजारी ताराकांत झा,सुन्दर कांत झा,प्रेम कांत झा का कहना है कि उग्रतारा की तंत्र पूजन विधि से माता का भोग जनकल्याण की कामना के लिए लगाया जाता है।