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थाइलैंड के अमरुद से महकेगी किशनगंज की बगिया

ड्रैगन फ्रूट के बाद अब थाइलैंड के अमरूद की खेती की जा रही है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 01:11 PM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 01:11 PM (IST)
थाइलैंड के अमरुद से महकेगी किशनगंज की बगिया
थाइलैंड के अमरुद से महकेगी किशनगंज की बगिया

किशनगंज (मयंक प्रकाश)। जिले में अनानास व ड्रैगन फ्रूट के बाद अब थाइलैंड के अमरूद की खेती की जा रही है। किशनगंज में लोग अब थाइलैंड के अमरुद का स्वाद चखेंगे। अभी प्रयोग के तौर पर इस प्रजाति के कुछ ही पौधे टीएसपी परियोजना के तहत चयनित आदिवासी बहुल गांवों में लगाए गए हैं। दरअसल आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार व उन्हें सबल बनाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सौजन्य से जिले के आदिवासी बहुल नौ गांवों में टीएसपी परियोजना को साकार किया जा रहा है। इसी के तहत आदिवासियों को कुपोषण से बचाने के लिए किचेन गार्डेन में लगाने के लिए थाइलैंड प्रजाति के अमरुद की विकसित प्रभेद वीएनआर-वीही के पौधे दिए गए हैं। राज्य में पहली बार वीएनएआर(कंपनी का नाम) बीज से अमरुद का उत्पादन होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर किशनगंज, कटिहार व बांका के कृषि विज्ञान केंद्र को इसके पौधे उपलब्ध कराए हैं। इनमें 50 पौधे किशनगंज के आदिवासी महिलाओं को दिए गए हैं। किशनगंज के अलावा कटिहार में 50 व बांका के लिए 100 पौधे दिए गए हैं। यह पौधे छतीसगढ़ स्थित वीएनआर नर्सरी से मंगाए गए हैं। जिले में आदिवासी बहुल गांवों में बांटने के बाद कुछ पौधे कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र में भी लगाए गए हैं। ताकि किसान इसके पौधे देखकर इसकी खेती की ओर अग्रसर हो सके। जिले में यह परियोजना ठाकुरगंज प्रखंड के पांच व पोठिया प्रखंड के चार गांवों में चल रही है। इनमें ठाकुरगंज का पथरिया,सखुआडाली, बेसरबाटी, कुकुरबाटी व हुलहुली तथा पोठिया का महसूल, पनासी, पोखरिया व सारोगोड़ा शामिल हैं।

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वीएनआर-वीही अमरुद की क्या है खासियत

यह थाइलैंड प्रजाति की अमरुद है। इसका फल 3 सौ ग्राम से लेकर 12 सौ ग्राम तक होता है। इसका फलन सालोंभर होता है। इसकी विशेषता है कि इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पायी जाती है। इसके खाने से कुपोषण भी दूर होगा। साथ ही यह मधुमेह और एसीडिटी की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए भी लाभदायक होगा। इसके फल के अंदर बीजों की संख्या कम होती है। गुदायुक्त फल होता है। यह दो वर्षों के अंदर फल देने लगता है। आदिवासी परिवार बेमौसम में इस फल को बचेकर अच्छी आमदनी कर सकते हैं। सामान्य अमरुद की तुलना में इसका स्वाद भी बेहतर होता है।

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कोट:- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा टीएसपी परियोजना के तहत चयनित आदिवासी गांवों के लिए वीएनआर-वीही थाइलैंड प्रजाति के अमरुद के पौधे दिए गए हैं। इनमें कृषि विज्ञान केंद्र किशनगंज व कटिहार के लिए 50-50 व बांका के लिए 100 पौधे दिए गए हैं। इन सभी पौधों को आदिवासी बहुल गांवों में किचेन गार्डेन में लगाने के लिए आदिवासियों को दिया गया है। ताकि उन्हें कुपोषण से बचाया जा सके।

- डॉ. आर. के. सोहाने, निदेशक, प्रसार शिक्षा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर।

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कोट:- वीएनआर-वीही थाइलैंड प्रजाति के अमरुद के पौधे टीएसपी परियोजना के तहत चयनित आदिवासी बहुल गांवों में बांटे गए हैं। इसका उद्देश्य आदिवासियों को कुपोषण से बचाना व उन्हें सबल बनाना है। किचेन गार्डेन में लगाने के लिए इसके पौधे दिए गए हैं। कुछ पौधे कृषि विज्ञान केंद्र प्रक्षेत्र में भी लगाए गए हैं।- डा. हेमंत कुमार ¨सह, उद्यान वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र किशनगंज।

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