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मधुमिता के सपनों ने तोड़े बंधन तो घर हुआ रोशन

सगे-संबंधी और समाज के लिए वह सिर्फ और सिर्फ एक लड़की भर थी जिसकी आखिरी सीमा शादी का बंधन है। लेकिन उस लड़की के सपनों में तो इस बंधन से कहीं बहुत आगे की उड़ान और उसे मुकाम मिला तो घर रोशन हो उठा मधुमिता की रोशनी से।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Oct 2019 01:53 AM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 06:25 AM (IST)
मधुमिता के सपनों ने तोड़े बंधन तो घर हुआ रोशन
मधुमिता के सपनों ने तोड़े बंधन तो घर हुआ रोशन

भागलपुर । सगे-संबंधी और समाज के लिए वह सिर्फ और सिर्फ एक 'लड़की' भर थी, जिसकी आखिरी सीमा शादी का बंधन है। लेकिन उस लड़की के सपनों में तो इस बंधन से कहीं बहुत आगे की उड़ान और उसे मुकाम मिला तो घर रोशन हो उठा मधुमिता की रोशनी से। अपने मां-बाप की दुलारी लाडो मधुमिता रोशन!

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सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कार्यरत उसी मधुमिता की आंखों में देश के दुश्मनों के लिए है धधकती आग। यही उसका सपना था। बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में गुजर-बसर कर रहे एक परिवार की बेटी के यहां तक पहुंचने की संघर्ष भरी कहानी प्रेरणा भी है, बेटियों के जज्बे का संदेश भी।

मधुमिता बताती हैं, बचपन से ही तेज धाविका बनने और वर्दी पहनने की इच्छा थी। सबौर में खेल मैदान पर हर दिन दौड़ लगाती थी। धीरे-धीरे बड़ी होती गई तो लोगों की निगाहों को भी पढ़ा, जिसमें ताने के भाव थे। वह जगह छोड़ दी और आठ किलोमीटर दूर सैंडिस कंपाउंड में दौड़ लगाने लगी। सौ मीटर की दौड़ में लगातार तीन बार जिले की चैंपियन बनी तो उड़नपरी कहलाने लगी। आर्थिक स्थिति यह नहीं थी कि स्माइक शू या ट्रैक सूट खरीद सके, पर हौसले में कोई कमी नहीं। एक के बाद एक मेडल अपने नाम करती गई। सपने को पूरा करने का वक्त आ चला था। वर्ष 2007 में रांची में एसएसबी जवानों की बहाली के लिए शिविर लगा और प्रथम ट्रायल में ही खेल कोटे से चयन हो गया। वह दिन यादगार रहेगा, जब 14 मई, 2018 को वर्दी पहन दिल्ली के गिटोरनी में सेवा पर तैनात हो गई। इसके बाद भूटान सीमा, पश्चिम बंगाल, नेपाल सीमा पर तैनाती हुई। फिरहाल सुपौल के वीरपुर में नेपाल सीमा पर पदस्थापित हैं। मधुमिता ने एसएसबी में भी कई अवार्ड जीते। बड़े भाई नीलमणि रोशन को आयकर निरीक्षक बनाने में भी बड़ी भूमिका निभाई। वे अभी पुणे में पदस्थापित हैं।

मधुमिता की माता संगीता देवी और पिता बबन कुमार रजक बेटी के बारे में बात करते-करते भावुक हो उठते हैं। वे कहते हैं-बेटी जब दौड़ लगाती थी तो लोग उपेक्षित भाव से देखते ही थे, सगे-संबंधी शादी करने की सलाह दे जाते थे। लेकिन हमने बेटी के कदमों को नहीं रोका। आज वही तारीफ के पुल बांधते हैं।

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मधुमिता की उपलब्धियां

सौ मीटर में लगातार तीन बार भागलपुर की चैंपियन। वर्ष 2003 में आंध्रप्रदेश में आयोजित अंडर 14 सब जूनियर एथलेटिक में बिहार के लिए 100 व 800 मीटर की दौड़ में स्वर्ण और लंबी कूद में रजत पदक जीता। वर्ष 2005 में जमालपुर रेलवे द्वारा गोड्डा में आयोजित जिलास्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता में चैंपियन रहीं। वर्ष 2007 में पटना के मिथिलेश स्टेडियम में राष्ट्रीय महिला खेल महोत्सव में लंबी कूद में तीसरा स्थान प्राप्त किया। तमिलनाडु, हरिद्वार, मदुरै, हरियाणा और बेंगलुरू में आयोजित राष्ट्रीय महिला महोत्सव में एथलेटिक्स में अंडर सिक्स में स्थान। एसएसबी में योगदान के बाद कोलकाता में वर्ष 2009 में अखिल भारतीय पुलिस मीट में 400 मीटर की दौड़ में पांचवां स्थान। वर्ष 2019 में शस्त्रीकरण का अवार्ड मिला। रेजिंग डे परेड में आयोजित बाइक डेमो में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर वाहवाही लूटी।


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