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जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में मधेपुरा का कैप्टन आशुतोष शहीद, लोगों में गम और गुस्सा

मधेपुरा के घैलाढ़ प्रखंड के भतरंथा परमानपुर पंचायत के रहने वाले थे आशुतोष। वह अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। उनके पिता रवींद्र यादव पशु अस्पताल में कार्यरत हैं। उनके निधन से गांव में मातम का माहौल है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 12:20 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 10:12 AM (IST)
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में मधेपुरा का कैप्टन आशुतोष शहीद, लोगों में गम और गुस्सा
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हुए कैप्शन आशुतोष कुमार अपने माता पिता के साथ। फाइल फोटो।

 मधेपुरा, जेएनएन। जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हुए कैप्शन आशुतोष कुमार मधेपुरा के घैलाढ़ प्रखंड के भतरंथा परमानपुर पंचायत के रहने वाले थे। उनके पिता रवींद्र यादव पशु अस्पताल में कार्यरत हैं। वह अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। माता गीता देवी गृहणी हैं। उनकी दो बहने हैं, जिनका नाम खुशबू कुमारी और अंशू कुमारी शामिल है।

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स्वजनों का रो-रोकर बुरा हाल

कैप्टन आशुतोष के निधन की सूचना मिलते ही गांव में शोक छा गया। उनके घर पर लोगों का तांता लग गया। वहीं, स्वजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। हालांकि देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति देने वाले सपूत पर लोगों को गर्व है। लोगों का कहना है आशुतोष के शहीद होने दुख तो है पर जम्मू कश्मीर में तीन आतंकियों को मार गिराए जाने को लेकर संतोष है।

बचपन से ही मेधावी थे आशुतोष

ग्रमीणों ने बताया कि आशुतोष मिलनसार थे। वह पढऩे के दौरान काफी मेधावी थे। गांव आने पर वह नौजवानों को सेना में जाने के लिए काफी प्रेरित करते थे। वह युवाओं को सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे। उनके निधन से आसपास के गांवों में युवा भी गमगीन हैं।

आशुतोष की शहादत पर ग्रामीणों को है गर्व

मधेपुरा के घैलाढ़ प्रखंड के भतरंथा परमानपुर पंचायत के रहने वाले थे आशुतोष की शहादत पर ग्रामीणों को गर्व है। ग्रामीणों ने बताया कि मधेपुरा का इतिहास रहा है कि स्वतंत्रता संग्राम में भी यहां के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कारगिल युद्ध के दौरान भी सहरसा का एक लाल शहीद हुआ था। आशुतोष की शहादत से ग्रामीण दुखी तो हैं पर दुश्मन देश और आतंकवाद के खिलाफ उनके मन में आक्रोश भी है। ग्रामीणों का कहना है कि आतंकियों के साथ जिस तरह लोहा लेते हुए आशुतोष न अपनी शहादत दी, उससे यह गांव नहीं बल्कि पूरे जिले का नाम रोशन हुआ है। शहीद आशुतोष के शव के आने का इंतजार इलाके के लोग बेताबी से कर रहे हैं।


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