Lockdown 4 : मजबूरी की 'मैराथन' में मेडल न तालियां, एक महीने बाद यहां पैदल पहुंचे एक दर्जन प्रवासी
Lockdown 4 कोरोना वायरस से बचने और इसके प्रसार को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगा है। इस कारण सिकंदराबाद से पांव पैदल ही एक दर्जन प्रवासी चल पड़े। जानिए।
भागलपुर, जेएनएन। यह किसी भी मैराथन से कहीं अधिक है। फर्क बस इतना कि इसमें न मेडल है, न तालियां। घर पहुंच गए तो यही सबसे बड़ी जीत। तेलंगाना से पांव पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े प्रवासियों की कहानी। एक महीने के बाद घर पहुंचे तो उनकी खुशी देखते बनती थी, जैसे मैराथन जीत ली हो। इनमें बच्चे भी शामिल थे। तेलंगाना राज्य के सिकंदराबाद शहर की एक फैक्ट्री में सुरेश साह, विनोद साह सहित आधा दर्जन लोग काम करते थे। कोरोना का मामला सामने आने के बाद देश में लॉकडाउन लगते ही फैक्ट्री बंद हो गई।
कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक-ठाक रहा। इसके बाद परिवार का पेट पालना मुश्किल होने लगा। मकान मालिक किराया मांगने लगे। दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया। सुरेश ने अपने साथियों से संपर्क किया तो विनोद साह सहित आधा दर्जन लोग पैदल ही चलने को तैयार हो गए। बाल-बच्चों को लेकर ये निकल पड़े। सभी भागलपुर के अंबे पोखर के पास के निवासी हैं। 22 अप्रैल को तेलंगाना से चले ये प्रवासी आंध्रप्रदेश, ओडिसा, झारखंड होते हुए सोमवार को भागलपुर पहुंचे। सुरेश और विनोद रो पड़े।
उन्होंने बताया कि एक-एक दिन काटना मुश्किल था। क्या करते, पैदल ही चल दिए। पैरों में छाले पड़ गए, पर चलते गए। रास्ते में तीन जगहों पर दयावान ट्रक चालकों ने मदद कर दी तो परेशानी थोड़ी कम हो गई। करीब 1400 किमी पैदल ही चले। किसी ने कुछ दिया तो खा लिया, अन्यथा भूखे चलते रहे। जत्थे में शामिल पूजा और पिंकी बताती हैं कि जिस ठीकेदार के सहारे गए उसने भी पैसा नहीं दिया। दोनों की आंखें छलक उठीं। वे बोलीं, घर में कमाने वाला कोई नहीं था, इसलिए बाहर जाना पड़ा। भागलपुर पहुंचने के बाद राहत की सांस ली। इन प्रवासियों ने कहा कि अब दोबारा इतनी दूर कमाने नहीं जाएंगे।