World radio day : कभी उद्घोषक को देखने उमड़ पड़ती थी भीड़... अब तो श्रोताओं के पत्र भी नहीं आते
आज से 10 वर्ष पूर्व तक भागलपुर से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को बिहार—झारखंड के 17 जिलों में सुना जाता था। लेकिन स्थिति अब पूरी तरह बदल गई।
भागलपुर [दिलीप कुमार शुक्ला]। एक समय था जब घर—घर रेडियो बजा करती थी। सड़क पर अगर आप गुजर रहे हों तो आप पूरा कार्यकम बिना कहीं रुके भी सुन सकते थे। यानी हरेक 50 कदम की दूरी पर एक रेडियो बजता था। लेकिन आज स्थिति बदल गई। अब रेडियो के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। आधुनिकता की इस दौर में लोग रेडियो को भूलने लगे हैं। इंटरनेट, मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया के अलावा संचार के अन्य उपकरणों ने रोडियो की उपयोगिता को लगभग समाप्त कर दिया है। एक समय था जब रेडियो के उद्घोषक की आवाज सुनकर श्रोता उनका नाम बता देते थे। रेडियो सुनने वाले श्रोताओं की संख्या में शहर में भले ही कमी आई हो, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी रेडियो सुनना लोग पसंद करते हैं। मन की बात को दुनिया के सामने परोस कर प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने रेडियो में और भी चार चांद लगाने के साथ-साथ इसकी महत्ता सामने रखने का महती कार्य किया है। आज की तारीख में रेडियो से लगभग 22 भाषाओं और 46 बोलियों में विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण विधिवत हो रहा है।
कभी 17 जिलों के लोग सुनते थे आकाशवाणी भागलपुर का कार्यक्रम
आज से 10 वर्ष पूर्व तक भागलपुर से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को बिहार—झारखंड के 17 जिलों में सुना जाता था। लेकिन स्थिति अब यह है कि यहां से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम 20 किमी के दायरे में भी किसी तरह लोग सुन पा रहे हैं। इस संबंध में कार्यक्रम अधिकारी डॉ प्रभात नारायण झा ने बताया कि यहां का ट्रांसमीटर काफी पुराना है। अक्सर खराब होते रहता है। इसके उपकरण अब उपलब्ध नहीं हैं। इंजीनियर किसी तरह इस ट्रांसमीटर को जुगाड़ तंत्र के माध्यम से चला रहे हैं। जब तक ट्रांसमीटर की स्थिति में सुधार नहीं होगा, हम रोडियो को अपने प्रसार क्षेत्र तक नहीं पहुंचा सकते।
ग्रामजगत खुलामंच कार्यक्रम की होती थी प्रशंसा
आकाशवाणी भागलपुर के वरीय उद्घोषक डॉ विजय कुमार मिश्र ने बताया कि 90 के दशक में कई विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण यहां से होता था। ग्रामजगत खुला मंच को देखने हजारों लोग आते थे। इसका रेडियो से सीधा प्रसारण किया जाता था। हिजला मेला, गोड्डा मेला, बौसी मेला सहित अन्य जगहों पर आयोजित इस कार्यक्रम की जानकारी पहले ही श्रोता ले लेते थे। उन्होंने कहा कि उनसे मिलने श्रोता रास्ते पर खड़े रहते थे। कई बार भीड़ इतनी बढ़ जाती थी कि उन्हें पुलिस की सहायता लेनी पड़ती थी। इसके अलावा आकाशवाणी भागलपुर से प्रसारित ग्रामजगत, युववाणी, घर आंगन, आपकी पसंद, पत्रोत्तर, गूंजे बिहार, अंग दर्पण, लोकगीत, नाटक, रूपक आदि सुनने वाले श्रोताओं की संख्या काफी होती थी।
कभी दो बोरा आता था पत्र
कभी आकाशवाणी भागलपुर में प्रतिदिन दो बोरा पत्र आया करता था। अब शायद ही पत्र देखने को मिलता है। इस संबंध में डॉ विजय कुमार मिश्र ने बताया कि अब आकाशवाणी का भी डिजीटलीकरण हो गया है। पत्र की जगह मेल आते हैं। साथ ही फोन पर हेलो फरमाइस कार्यक्रम के जरिए श्रोता अपनी आवाज रेडियो पर सुनते हैं। उन्होंने कहा अब आकाशवाणी में अत्याधुनिक उपकरण लगाए गए हैं। इस कारण कार्यक्रम के प्रसारण में सुविधा होती है।
मोबाइल पर अब रेडियो उपलब्ध
कार्यक्रम अधिकारी डॉ प्रभात नारायण झा ने बताया कि अब मोबाइल एप पर आकाशवाणी के सभी केंद्र उपलब्ध हैं। रेडियो पर भले ही सभी जगह इस केंद्र का कार्यक्रम नहीं सुनाई दे, पर मोबाइल एप के माध्यम से कहीं भी किसी भी रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम को सुना जा सकता है।
क्षेत्रीय भाषा पर कार्यक्रमों का होगा जोर
डॉ प्रभात नारायण झा ने कहा कि रेडियो को आम लोगों से जोड़ने के लिए क्षेत्रीय भाषा में कई कार्यक्रम किए जाएंगे। पिछले कुछ वर्षों से इस केंद्र से ज्यादातर कार्यक्रम हिंदी भाषा में प्रसारित किए जा रहे हैं। इस कारण श्रोता हमसे दूर हुए। उन्होंने कहा शीघ्र ही इस अंग क्षेत्र में अंगिका आधारित कार्यक्रम होंगे। ग्रामजगत कार्यक्रम में तीन उद्घोषक दिए जाएंगे, जिसमें एक अंगिका भाषा में बोलेंगे। इसके अलावा अंगिका में सामाचार वाचन भी होगा। उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति और यहां की धरोहरों की रक्षा आकाशवाणी के माध्यम से की जाती है। अभी भी आकाशवाणी से कोई अमर्यादित गीत नहीं बजते हैं। आज रेडियो प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजर रहा है। बेहतर और क्षेत्रीय भाषा पर आधारित कार्यक्रम तैयार कर रेडियो की ओर लोगों को आकर्षित किया जाएगा।
कम स्टॉफ के कारण हो रही परेशानी : आकाशवाणी भागलपुर में सात कार्यक्रम अधिशासी के जगह पर मात्र दो ही कार्यरत हैं। इसके अलावा चार ड्यूटी अफसर के जगह मात्र दो, 24 इंजीनियर के जगह 12, चार उद्घोषक की जगह मात्र एक।
विरजू भाई अौर चंपा बहन की जोड़ी टूटना असहनीय
पुराने श्रोता गीतकार राजकुमार ने कहा कि रेडियो से उतरने वाली सुरलहरियों, विश्व में विभिन्न स्थलों पर घटित होने वाली अच्छी-बुरी घटनाओं से संबंधित समाचारों, खेती गृहस्थि जैसे जनोपयोगी कार्यक्रमों से लोग आज भी हृदय और मस्तिष्क से जुड़़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि आकाशवाणी भागलपुर पूर्वार्द्ध से उत्तरार्द्ध के तेवर में थोड़ी कमी आई है। आकाशवाणी में पू्र्ववत कार्यक्रमों की गुणवत्ता से समझौता कर उसमें हेर-फेर करना श्रोताओं को भा नहीं रहा है। अंगिका और हिंदी के विभिन्न कार्यक्रमों से आवाज के जादूगर डा. विजय कुमार मिश्र ' विरजू भाय' और सांत्वना साह 'चंपा बहन' की जोड़ी का टूटना, इसका एक कारण माना जा सकता है। चंपा बहन के निधन से रेडियो के श्रोता अब भी उबर नहीं पाए हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की अंग-अंगिका की अस्मिता से पूर्व परिचित एवं संवेदनशील होने के साथ-साथ जाग्रत और इसे ऊंचाई देने के लिए प्रयत्नशील कार्यक्रम प्रसारित करने के लिए अधिकारी लगे हुए होंगे। गीतकार राजकुमार ने केंद्रनिदेशक ग्रेस कुजूर की कार्यशैली की प्रशांसा करते हुए कहा कि उनकी कलात्मकता ने आकाशवाणी भागलपुर को ऊंचाई प्रदान की थी। उन्होंने आकाशवाणी का कई लाइव स्टेज कार्यक्रम कराया था। उनके समय कवि सम्मलेन भी हुआ करता था।
अब भी याद हैं पुराने उद्घोषक
रेडियो श्रोताओं का दर्द इस बात से साफ दिखाई पड़ता है कि अब पुराने उद्घोषक नहीं हैं। जो नए हैं, वे श्रोताओं को जोड़ नहीं पाते। श्रोता अब भी सांत्वना साह, हरिराम पांडेय, ओंकार नाथ मिश्र, विरेंद्र प्रेमी, विनोद वाला सिंह, वीरेंद्र शुक्ल, श्रीनिवास सहाय, डॉ मणिकांत झा, नौमी शांति हेम्ब्रम, शिवमंगल सिंह मानव, अंशुमाला झा, डॉ मीरा झा, विजया लक्ष्मी, हरेराम पांडेय, कुसुमाकर दूबे को याद करते हैं। इसमें से ज्यादातर का निधन हो गया है। वहीं, वासुकी प्रसाद शर्मा, उत्तम सागर दत्ता, केका घोष, अर्चना, साधना पाठक, प्रीति दूबे, मीनू प्रियदर्शिनी को भी सुनना पसंद करते थे। इसमें से भी ज्यादातर अब सेवा में नहीं हैं।
लोगों का रूझान घटा
गायक रवि शंकर रवि ने कहा कि पहले और आज के रेडियो कार्यक्रम में काफी बदलाव आया है। पहले दूरदर्शन नहीं थे। रेडियो घर—घर रहता था। फिल्मगीत सुनना हो या समाचार, इसके लिए रेडियो के अलावा अन्य कोई साधन नहीं थे। लेकिन आज इंटरनेट, टीवी, मोबाइल के युग में रेडियो के प्रति लोगों का रूझान घटा है। इस कारण अब रेडियो पर श्रोताओं को जोड़ने वाले कार्यक्रमों की संख्या भी घट गई है। उन्होंने कहा कि गायक होने के कारण वे रेडियो पर ज्यादा संगीत के कार्यक्रम सुना करते थे। आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे।
विरजू भाई हैं पसंदीदा उद्घोषक
रेडियो श्रोता इंग्लिश फरका सबौर के विनोद कुमार यादव ने बताया कि उन्हें ग्रामजगत कार्यक्रम काफी पसंद है। हालांकि उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा अब पहले जैसे कार्यक्रम नहीं होते हैं। कभी ग्रामजगत में डॉ विजय कुमार मिश्र और सांत्वना साह को सुनने के लिए लोग इंतजार करते थे। ये दोनों उद्घोषक ग्रामजगत में विरजू भाई और चंपा बहन के नाम से आते थे। इसके अलावा हेलो फरमाइस में फोन पर डॉ विजय कुमार मिश्र की आवाज सुनने लोग ललाइत रहते थे। उन्होंने कहा कि आज भी हम लोग विरजू भाई के कारण ही रेडियो सुनते हैं। हालांकि उनका कार्यक्रम अब बहुत कम आता है।
रेडियो पर बजते हैं दुर्लभ गीत
रेडियो श्रोता गंगजला सहरसा से राधे कुमार विद्यार्थी ने बताया कि उन्हें रेडियो सिलोन से प्रकारित होने वाला दुर्लभ गीत काफी पसंद है। आल इंडिया रेडियो उर्दू सर्विस, एफएम रेनवो और गोल्ड सुनना भी पसंद है। वे आकाशवाणी भागलपुर भी सुनते हैं। यहां से उनको डॉ विजय कुमार मिश्र को सुनना अच्छा लगता है।
भूले—बिसरे गीत सुनना अच्छा लगता है
रेडियो श्रोता भागलपुर के खालिद अंसारी ने कहा कि विविध भारती पर नए—पुराने गीतों के अलावा भूले—बिसरे गीत सुनना उन्हें अच्छा लगता है। उन्होंने कहा विविध भारती में भी अब पहले जैसा कार्यक्रम नही होता। वहां भी पहले जैसा उद्घोषक भी अब नहीं हैं।
बीबीसी सुना करते थे
गुरिया, बौंसी, बांका के रेडियो श्रोता अनीश झा ने कहा कि हम शुरू से ही रेडियो पर बीबीसी सुना करते थे। उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि अब रेडियो पर बीबीसी उपलब्ध नहीं है। इस कारण वे देश—दुनिया की जानकारी सीटक और सही नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। वे आकाशवाणी भागलपुर के युववाणी कार्यक्रम को अक्सर सुनते थे।
दिनक्रम रेडियो से ही तय होता है
नवगछिया के जफर अंसारी ने कहा कि उनका दिनक्रम रेडियो से ही तय होता है। रेडियो के कार्यक्रमों से सुनकर वे समय का पता लगा लेते थे। लोकगीत बज रहा है तो मानो दोपहर का डेढ़ बज गया है। रविवार के दिन का उनको बेहद इंतजार रहता था। आपकी पसंद और पत्रोत्तर उनका पसंदीदा कार्यक्रम था।
अब तो रेडियो यहां बजता नहीं है
पाकूड़ के उत्तम कुमार भगत ने कहा कि अब तो रेडियो यहां बजता नहीं है। आकाशवाणी भागलपुर का ट्रांसमीटर इतना कमजोर है कि वे रेडियो सुन ही नहीं पाते। उन्हें रविवार को दोपहर में प्रसारित होने वाला नाटक सुनना अच्छा लगता था।
इनके पत्र आते थे
आकाशवाणी भागलपुर में इंग्लिश फरका सबौर के विनोद कुमार यादव, लालूचक भागलपुर से विष्णु कुमार चौधरी, ईशपुर बाराहाट अच्युत कुमार पोद्दार, कबीरपुर भागलपुर से मुन्ना खाना मुन्ना, तारा बैगम, मुजाहिदपुर पूरब टोला भागलपुर से मो खालीद अंसारी, मुजाहिदपुर से राजू खान, स्टेशनचौक खगडिय़ा से दिलावर हुसैन दिलकश, बैगम शैरू निशा दिलकश, अख्तर हुसैन, भागलपुर के खालिद अंसारी, भीखनपुर चौक भागलपुर से सलाउद्दीन परवाज, आयशा खातुन, मुंदीचक भागलपुर से दिलीप कुमार सोनी, कमल किशोर साह, अकबरनगर से अशोक कुमार गुप्ता, प्रसस्तडीह से अन्नू कुमारी, सियाडीह असरगंज से रामचंद्र राही, नवगछिया से जफर अंसारी, शौकत अंसारी, जोगसर से रवि राय, ममता राय, कटिहार से हरेंद्र प्रसाद साह, गंगजला सहरसा से राधे कुमार विद्यार्थी, गुरिया बौंसी बांका से अनीश झा, खगडिय़ा रहीमपुर से कविराज कुमार राय, दाननगर खगडिया से राजेश्वर यादव, महाराणी यादव, बहादूरपुर लोहची से रामदेव पटेल, अकबरनगर से अशोक कुमार गुप्ता, विनोद कुमार गुप्ता, कहलगांव विनोद बिहारी विधाता, शहजादपुर लखीसराय से भारती प्रियदर्शिनी सिंह, कुरसेला के ललन कुमार सिंह, पाकूड़ के उत्तम कुमार भगत, बड़ी खंजरपुर भागलपुर से गुलफराज आलम, बैगम समा आरा, महेशखूंट से अशोक प्रसाद मंडल, गायक रवि शंकर रवि, गीतकार राजकुमार आदि रेडियो श्रोताओं के अक्सर पत्र और फोन आया करते थे।