गेडा नदी काट रही भूमि, बर्बाद हो रहे लोग, जानिए क्षेत्र के लोगों की परेशानी
कोसी-त्रासदी के 13 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां के किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया। हजारों हेक्टेयर उपजाऊ जमीन में आज भी बालू की मोटी परत पड़ी हुई है। प्रत्येक वर्ष बरसात के महीने में दर्जनों हेक्टेयर जमीन को गेडा नदी अपने में समा जाती है।
सुपौल [रौशन झा] । 2008 में आई प्रलयंकारी बाढ़ के बाद हजारों जिंदगियां तबाह हो गई थी। हजारों हेक्टेयर उपजाऊ भूमि पर बालू भर गए। इस क्षेत्र के विभिन्न छोटी नदियों ने अपना भौगोलिक स्वरूप बदल लिया। बाढ़ के बाद सरकार ने इसकी भरपाई के लिए कई योजनाएं चलाई। परंतु जमीनी स्तर पर हकीकत आज भी प्रलय का गवाह बनी हुई है। छातापुर प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न पंचायतों के बीच होकर बहने वाली गेडा नदी ने जो अपना बहाव क्षेत्र बदला था उसे आज तक दुरुस्त नहीं किया गया।
कब्रिस्तान को काट रही नदी
लक्ष्मीनियां पंचायत पंचायत के वार्ड 13 में अवस्थित कब्रिस्तान की कई हेक्टेयर जमीन कटाव की भेंट चढ़ चुकी है। खेत में पिछले 13 वर्षों से बालू के टीले को हटाया नहीं जा सका है। राष्ट्रीय राजमार्ग 57 एवं रेलवे लाइन बनने के क्रम में किसानों के खेत से आंशिक बालू हटाया गया अधिकांश जगहों पर स्थिति जस की तस है। जो लोगों के बीच स्थाई समस्या बन कर रह गई है। समय-समय पर स्थानीय जनप्रतिनिधि द्वारा लोगों को आश्वासन दिया जाता है कि चुनाव बाद इस गंभीर विषय पर पहल कर समाधान किया जाएगा। परंतु कई वर्ष बीतने के बाद स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
कहते हैं ग्रामीण
लक्ष्मीनियां निवासी संजीव कुमार कहते हैं कि 2008 में आई बाढ़ के बाद गेडा नदी ने जो अपना भौगोलिक स्वरूप बदला है। उसे अपने पुराने स्वरूप में लाने की दिशा में आज तक पहल नहीं की गई। जिससे नदी किनारे बसे गांवों के लोगों को बरसात के दिनों में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है। योगानंद कामत कहते हैं हमारा गांव नदी किनारे बसा हुआ है बरसात के महीने में होने वाली समस्याओं से हमलोग अवगत हैं। खेतों में जमा बालू के कारण बरसात के महीने में नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है जिससे लोगों के घरों तक पानी आ जाता है। डोडरा निवासी अमरेन्द्र मिश्रा मिंटू कहते हैं कि गेडा नदी में अविलंब बांध की जरूरत है। साथ ही साथ सैकड़ों हेक्टेयर जमीन में लगी बालू को हटाए जाने की आवश्यकता है। इन समस्याओं के कारण किसानों के लिए 13 वर्ष पूर्व आई प्रलय आज भी जस की तस है। मु. फिरोज कहते हैं कि प्रत्येक वर्ष बरसात के मौसम में सैकड़ों घर नदी में विलीन हो जाते हैं। वहीं हमारे गांव में अवस्थित कब्रिस्तान लगभग आधा नदी में विलीन हो चुका है। विभाग को इस दिशा में अविलंब पहल करने की आवश्यकता है।
क्या कहते हैं सहायक अभियंता
जल संसाधन विभाग वीरपुर के सहायक अभियंता अरविंद कुमार ने कहा कि नदी को अपने पुराने धारा में लाने का काम ड्रेनेज विभाग का है। जहां तक खेतों में लगे बालू के उठाव की बात है तो किसान इसमें खुद भी लगे हुए हैं और जिन उपजाऊ खेतों में अभी भी बालू है ऐसे खेतों में सरकार द्वारा किये जा रहे भूमि सर्वेक्षण के बाद पानी मुहैया कराई जाएगी। घरों एवं जमीनों के हो रहे कटाव में जनप्रतिनिधियों को पहल करनी चाहिए। इसके रोकथाम के लिए सरकारी योजनाएं चल रही है।