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ललन सिंह और नारायण प्रसाद ने बांका के सिद्धपीठ तिलडीहा दुर्गा मंदिर पर टेका माथा, कही ये बातें

बांका पहुंचे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह मुंगेर सांसद ललन सिंह और पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद ने यहां के सिद्धपीठ तिलडीहा दुर्गा मंदिर पर माथा टेका। इस दौरान दोनों ने मंदिर के महत्व और मान्यता के बारे में पुजारी से जानकारी लेते हुए कहा कि...

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 05:01 PM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 05:01 PM (IST)
ललन सिंह और नारायण प्रसाद ने बांका के सिद्धपीठ तिलडीहा दुर्गा मंदिर पर टेका माथा, कही ये बातें
बांका पहुंचे मुंगेर सांसद ललन सिंह पूजा अर्चना करते हुए

संवाद सूत्र, शंभुगंज (बांका)। प्रसिद्ध सिद्धपीठ तिलडीहा दुर्गा मंदिर सोमवार को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह मुंगेर सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) , राज्य के पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद माथा टेकने मंदिर पहुंचे। जहां मंदिर के गर्भगृह में भगवती के साकार पिंड के दर्शन किए। प्रधान पुजारी श्याम आचार्य ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा-पाठ कराया। राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पर्यटन मंत्री ने पुजारी से तिलडीहा के पौराणिक इतिहास एवं महत्ता के बारे में जानकारी ली। पुजारी ने बताया कि यह सिद्धपीठ स्थान है। यहां आने वाले भक्तों की मुरादें पूर्ण करती है।

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राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि तिलडीहा रमणीक स्थान है। इस स्थान को और अधिक बेहतर बनाने में सरकार पीछे नहीं हटेगी। पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद ने कहा कि तिलडिहा सिद्धपीठ स्थान के साथ पर्यटन का भी द्वार खोलती है। इसके लिए सरकार जल्द ही कोई विचार करेगी। इस मौके पर बांका डीएम सुहर्ष भगत, एसपी अरविंद कुमार गुप्ता, एसडीओ प्रीति, एसडीपीओ डीसी श्रीवास्तव के अलावे बीडीओ, सीओ एवं थानाध्यक्ष सहित मुंगेर जिले के प्रशासनिक पदाधिकारी मौजूद थे।

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  • जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह एवं पर्यटन मंत्री ने की तिलडीहा मंदिर में पूजा अर्चना

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मंदिर में पाठा बलि हुआ शुरु

सिद्धपीठ दुर्गा मंदिर में सोमवार से पाठाबलि शुरू हो गया है। प्रथम दिन प्रमुख लोगों के अलावे मेढ़पति परिवार एवं कुछ स्थानीय लोगों का पाठा बलि पड़ा। मेढ़पति सदस्यों ने तीन सौ के करीब पाठा बलि होने की बात कही। बताया कि आम श्रद्धालूओं के लिए मंगलवार एवं बुधवार को पाठाबलि होगा। ज्ञात हो कि काेरोना काल के कारण पाठा बलि बंद था। दुर्गा पूजा में भी बलि पर रोक थी। लगभग प्रत्येक साल दशहरा में 30 से 35 हजार पाठा बलि होता है।


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